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बिहार की सियासी सरगर्मियां अब चरम पर पहुंचने लगी हैं और आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर हर कोई जानने को बेताब है कि आखिरकार राज्य की कमान अगले पांच साल के लिए किसके हाथों में होगी। इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश में लगी प्रमुख रिसर्च एजेंसी सी-वोटर के सितंबर महीने के ताजा सर्वेक्षण ने कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर किए हैं। इस सर्वे के मुताबिक, पसंदीदा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी यादव का दबदबा बरकरार है और वह लगातार सबसे पसंदीदा चेहरा बने हुए हैं। हालांकि, इस दौड़ में राजनीतिक रणनीतिकार से सीधे मैदान में उतरे प्रशांत किशोर ने एक बार फिर से तहलका मचा दिया है और अपनी लगातार बढ़ती लोकप्रियता के दम पर वह अब दूसरे स्थान पर काबिज हो गए हैं।
सर्वे के नतीजे बताते हैं कि सितंबर महीने में तेजस्वी यादव की स्वीकार्यता में एक बार फिर उछाल देखने को मिला है। अगस्त में उनकी रेटिंग में आई गिरावट के बाद उन्होंने फिर से जोरदार वापसी की है और 35.5 प्रतिशत लोगों ने उन्हें अपना पसंदीदा मुख्यमंत्री उम्मीदवार बताया है। यह उनकी फरवरी 2025 में मिली 40 प्रतिशत रेटिंग के करीब पहुंचना माना जा रहा है, जो महागठबंधन के लिए एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जा रहा है। वहीं, मौजूदा मुख्यमंत्री और जनता दल (यूनाइटेड) के प्रमुख नीतीश कुमार के लिए भी यह सर्वे कुछ राहत की खबर लेकर आया है। पिछले कुछ महीनों से उनकी लोकप्रियता में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही थी, लेकिन सितंबर में उनकी रेटिंग में मामूली सुधार हुआ है और अब वह 16 प्रतिशत पर पहुंच गई है।
इस सर्वे में सबसे ज्यादा चर्चा जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर के मजबूत प्रदर्शन की हो रही है। फरवरी में महज 14.9 प्रतिशत से शुरुआत करने वाले पीके ने एक स्थिर और निरंतर वृद्धि का रास्ता अपनाया है। जून महीने तक आते-आते उन्होंने 18.2 प्रतिशत रेटिंग हासिल करके नीतीश कुमार को पीछे छोड़ दिया और दूसरे स्थान पर कब्जा जमा लिया। सितंबर का सर्वे उनकी इस सफलता की गाथा को और आगे बढ़ाता है, जहां उनकी रेटिंग बढ़कर 23.1 प्रतिशत तक पहुंच गई है। यह उनकी बढ़ती राजनीतिक हैसियत और जमीनी स्तर पर हो रहे काम का स्पष्ट प्रतिबिंब माना जा रहा है।
वहीं, एनडीए गठबंधन के भीतर हालात पूरी तरह से अनुकूल नजर नहीं आ रहे हैं। लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की लोकप्रियता में उतार-चढ़ाव बना हुआ है। सितंबर में उनकी रेटिंग 9.5 प्रतिशत दर्ज की गई है, जो पिछले कुछ महीनों से लगभग इसी स्तर पर अटकी हुई है। सबसे ज्यादा निराशाजनक स्थिति भाजपा के डिप्टी मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की है, जिनकी स्वीकार्यता में भारी गिरावट दर्ज की गई है। सितंबर महीने में उनकी रेटिंग घटकर मात्र 6.8 प्रतिशत रह गई है, जो अगस्त में 9.5 प्रतिशत थी। यह गिरावट भाजपा के लिए चिंता का एक बड़ा विषय बनता जा रहा है।
कुल मिलाकर, यह सर्वे बिहार की राजनीति में एक नए और रोमांचक दौर के संकेत दे रहा है, जहां पारंपरिक दलों के साथ-साथ एक नए खिलाड़ी ने भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज करा दी है। अब देखना यह है कि चुनावी रणनीति और जनसमर्थन की यह लड़ाई आखिरकार बिहार की जनता के बीच किसके पक्ष में फैसला सुनाती है।
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