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बिहार में अगले विधानसभा चुनाव से पहले इंडिया गठबंधन में सीटों की साझेदारी को लेकर खींचतान गहराती जा रही है। कांग्रेस और राजद के बीच बातचीत अब टकराव का रूप ले चुकी है। 2020 के चुनाव में 70 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस इस बार पिछली बार जैसी हिस्सेदारी के लिए तैयार नहीं दिख रही है। पार्टी का तर्क है कि कई सीटें ऐसी थीं जहां उसकी जीत की संभावना बेहद कम थी, जिसके कारण केवल 19 सीटों पर जीत मिली और दो विधायकों के अलग होने से मौजूदा संख्या 17 पर आ गई है।
2020 में हारी 37 सीटों कांग्रेस ने फंसा दिया पेंच
कांग्रेस उन 37 सीटों पर चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं है जहां 2020 में उसे हार का सामना करना पड़ा। इनमें से 21 सीटें तो ऐसी हैं जहां 2010 और 2015 दोनों ही चुनावों में महागठबंधन प्रत्याशी जीत नहीं पाए थे। वहीं 15 सीटें 2015 में जदयू ने महागठबंधन के साथ रहते हुए जीती थीं, जिन्हें 2020 में कांग्रेस ने लड़ा और हार गई। सकरा जैसी राजद की परंपरागत सीट भी कांग्रेस ने अपने खाते में लेकर गंवा दी।
तेजस्वी चाहते हैं कटौती, कांग्रेस की ख्वाहिश संतुलन
राजद अब कांग्रेस पर दबाव बना रही है कि सीटों की संख्या में कटौती की जाए ताकि गठबंधन की जीत की संभावना बढ़ सके। राजद नेताओं का कहना है कि 2020 में हर सीट पर गहन चर्चा के बाद ही फैसला हुआ था। कांग्रेस का मानना है कि सीटों का संतुलन जरूरी है ताकि किसी दल को केवल कठिन सीटें न मिलें और सभी के पास अच्छे और चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों का समान वितरण हो।
मौजूदा हालात में दोनों दलों के बीच समझौते का रास्ता केवल आपसी सहमति और अदला-बदली से निकल सकता है। साथ ही रालोजपा, वीआईपी और झामुमो जैसे नए सहयोगियों के लिए भी कुछ सीटों का समायोजन करना होगा। बिहार की राजनीति पर इसका सीधा असर पड़ सकता है क्योंकि सीट शेयरिंग का यह विवाद पूरे महागठबंधन की रणनीति को प्रभावित करेगा।