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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जारी मतदाता आंकड़े नए राजनीतिक समीकरणों का संकेत दे रहे हैं। राज्य के कुल 9 क्षेत्रों में से 5 में मतदाता संख्या बढ़ी है जबकि 4 में कमी दर्ज की गई है। इस कमी-बढ़ोतरी के बाद कुल मिलाकर 5.45 लाख नए वोटर जुड़े हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि जिन इलाकों में महागठबंधन की पिछली बार सबसे मजबूत पकड़ रही थी, वहीं सबसे ज्यादा मतदाता घटे हैं।
सारण और शाहाबाद क्षेत्र, जो 2020 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के लिए जीत का बड़ा आधार साबित हुए थे, इस बार वोटर संख्या में गिरावट दर्ज कर रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक दोनों संभागों को मिलाकर 1.69 लाख वोटर कम हुए हैं, जो राज्यभर में घटे कुल वोटरों का करीब 87% है।
सारण क्षेत्र में लोकसभा और विधानसभा स्तर पर महागठबंधन का वर्चस्व रहा है। 2020 चुनाव में यहां की 23 में से 17 सीटें महागठबंधन के खाते में गई थीं। इसी तरह शाहाबाद संभाग में भी 23 में से 17 सीटें महागठबंधन को मिली थीं। यानी दोनों मिलाकर 46 सीटों में से 34 पर कब्जा, जो लगभग 74% सफलता दर थी। ऐसे में वोटर घटने का असर सीधे राजनीतिक समीकरणों पर पड़ सकता है।
हालांकि माना जा रहा है कि मतदाता संख्या घटने के कई कारण हो सकते हैं। प्रवास, पलायन, मतदाता सूची से नाम कटना और जनसंख्या के स्थानीय बदलाव इस गिरावट की बड़ी वजह मानी जा रही है। लेकिन इसका राजनीतिक असर साफ तौर पर देखा जा सकता है। महागठबंधन जिन इलाकों में सबसे ज्यादा सफल रहा, वहीं अब मतदाताओं की संख्या घटने से सीटों का गणित बदल सकता है।
बिहार में 2020 के बाद से लगातार राजनीतिक खींचतान, गठबंधन की सियासत और जातीय समीकरणों ने चुनावी तस्वीर को और जटिल बना दिया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि 2025 के चुनाव में घटे हुए वोटर महागठबंधन के लिए चुनौती साबित होते हैं या विपक्ष के लिए मौके का नया रास्ता खोलते हैं।
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