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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों के ऐलान के साथ ही राज्य की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। सभी दलों ने मैदान में अपनी रणनीति तय कर ली है, लेकिन सत्ता पक्ष यानी एनडीए के भीतर सीट बंटवारे पर अब भी स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है। भाजपा और जदयू के बीच भले ही सहमति बनने की खबरें हैं, मगर चिराग पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने समीकरणों को पेचीदा बना दिया है।
सूत्रों के अनुसार, भाजपा और जदयू के बीच सीट फॉर्मूले पर सहमति लगभग बन चुकी है, लेकिन चिराग पासवान की पार्टी के साथ बातचीत अटक गई है। एलजेपी (रामविलास) ने 40 सीटों की मांग रखी है, जबकि भाजपा उन्हें 22 से 27 सीटों तक सीमित रखने के पक्ष में है। यह मतभेद एनडीए के भीतर बढ़ती असहजता की सबसे बड़ी वजह बन गया है।
इस खींचतान को सुलझाने के लिए भाजपा के वरिष्ठ नेता और बिहार चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने मंगलवार को दिल्ली में चिराग पासवान से मुलाकात की। बैठक करीब 40 मिनट तक चली, जिसमें दोनों पक्षों ने अपने-अपने तर्क रखे। चिराग पासवान ने साफ कहा कि उनकी पार्टी ने 2024 लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था और उस आधार पर विधानसभा में उन्हें सम्मानजनक हिस्सेदारी मिलनी चाहिए।
एलजेपी ने अपनी मांगों में यह भी जोड़ा कि जहां-जहां से उनकी पार्टी ने लोकसभा सीटें जीती हैं, वहां की कम से कम दो विधानसभा सीटें उनके खाते में दी जाएं। इसके साथ ही प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी समेत कई वरिष्ठ नेताओं की सीटों को लेकर पार्टी ने ठोस दावेदारी जताई है।
बीजेपी की ओर से धर्मेंद्र प्रधान ने चिराग को भरोसा दिलाया कि उनकी सभी मांगों पर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से चर्चा होगी और जल्द ही अंतिम फैसला सामने आएगा। हालांकि, एनडीए के भीतर के सूत्रों का कहना है कि चिराग की जिद से भाजपा और जदयू दोनों ही असहज हैं।
चिराग पासवान की राजनीतिक रणनीति हमेशा से स्वतंत्र और आक्रामक रही है। 2020 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने जदयू के खिलाफ प्रत्याशी उतारकर नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ाई थीं। अब 2025 में भी वह अपने राजनीतिक कद को कम नहीं होने देना चाहते। यही वजह है कि वह एनडीए में “समान भागीदारी” की शर्त पर ही बने रहना चाहते हैं।
एनडीए की दिक्कतें सिर्फ चिराग तक सीमित नहीं हैं। गठबंधन के एक और सहयोगी दल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के नेता जीतन राम मांझी भी लगभग 20 सीटों की मांग कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि धर्मेंद्र प्रधान, मांझी से भी लगातार संवाद बनाए हुए हैं ताकि सभी सहयोगी दलों के बीच तालमेल कायम रखा जा सके।
आपको बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव दो चरणों में होंगे। पहला चरण 6 नवंबर को और दूसरा चरण 11 नवंबर को होगा, जबकि मतगणना 14 नवंबर को होगी। ऐसे में अब भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने सहयोगियों के बीच संतुलन बनाना है ताकि गठबंधन एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतर सके।
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