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बिहार की राजनीति में एक बार फिर असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी AIMIM ने बड़ी उठापटक मचा दी है। महागठबंधन (RJD-Congress-Left) के सामने अब एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है – क्या ओवैसी को गठबंधन में शामिल किया जाए?
दरअसल, AIMIM ने महागठबंधन में शामिल होने के लिए आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव को औपचारिक पत्र भेजा है। AIMIM के बिहार प्रमुख अख्तरुल ईमान ने दावा किया कि इससे मुस्लिम वोट बंटवारा रुकेगा और महागठबंधन की सरकार बनेगी। लेकिन कांग्रेस और RJD को डर है कि ओवैसी के शामिल होने से BJP "हिंदू-मुस्लिम" कार्ड खेलकर फायदा उठा सकती है।
2020 का अनुभव: AIMIM ने पहुंचाया था नुकसान
पिछले विधानसभा चुनाव में AIMIM ने सीमांचल के 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जिससे महागठबंधन बहुमत से 12 सीटें पीछे रह गया था। हालांकि, बाद में 4 AIMIM विधायकों ने RJD में शामिल होकर सरकार बनाने में मदद की।
कांग्रेस और RJD की दुविधा
कांग्रेस का मानना है कि ओवैसी का समर्थन BJP को फायदा पहुंचाएगा, क्योंकि वह सेकुलर वोटों को बांटने का काम करता है। RJD भी सीमांचल में अपना वोट बैंक खोना नहीं चाहती, लेकिन ओवैसी के साथ जुड़ने से BJP के हमले का खतरा है।
ओवैसी की रणनीति: "BJP की B टीम" का टैग हटाना
ओवैसी चाहते हैं कि अगर महागठबंधन उन्हें रिजेक्ट कर दे, तो वह यूपी की तरह यह साबित कर सकें कि हमने सेकुलर वोटों को बचाने की कोशिश की, लेकिन हमें अलग रखा गया।