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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और महज दो महीने बचे हैं। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे महागठबंधन में सीटों का गणित पेचीदा होता जा रहा है। राजद की अगुवाई वाले इस गठबंधन में कांग्रेस ने अपनी मांगों के चलते समीकरण और जटिल कर दिए हैं। कांग्रेस ने न सिर्फ 70 सीटों का दावा ठोका है बल्कि इनमें से 27 को जिताऊ सीट बताते हुए उन पर विशेष रूप से जोर दिया है।
कांग्रेस ने चिन्हित की हैं 27 सीटें
कांग्रेस का कहना है कि ये वही सीटें हैं, जिन पर पार्टी ने 2020 के चुनाव में या तो जीत दर्ज की थी या बेहद मामूली अंतर से हार का सामना किया था। दरअसल, 2020 में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा और 19 पर जीत हासिल की। साथ ही, 8 सीटों पर पार्टी महज 5000 वोटों के अंतर से हार गई थी। अब कांग्रेस इन्हीं 27 सीटों को अपना "जिताऊ आधार" मानकर इस बार भी चाहती है कि उन्हें वही सीटें मिलें।
दूसरी ओर, 2020 के चुनाव में राजद ने 144 सीटों पर किस्मत आजमाई थी और 75 पर जीत हासिल की थी। इसके अलावा 17 सीटों पर वह बेहद कम अंतर से हार गया था। इस लिहाज से राजद के लिए 92 सीटें मजबूत मानी जा रही हैं। यही वजह है कि कांग्रेस की मांगें राजद के लिए दबाव का सबब बन गई हैं।
मामला सिर्फ कांग्रेस और राजद तक सीमित नहीं है। CPI (ML) लिबरेशन, CPI और CPM भी अपने-अपने आंकड़ों और पुराने नतीजों के आधार पर सीटों की मांग कर रहे हैं। CPI (ML) ने 2020 में 19 में से 12 सीटें जीती थीं और दो पर कम अंतर से हारी थी। यानी उसके लिए भी 14 सीटें "जिताऊ" मानी जा रही हैं। CPI और CPM को भी दो-दो सीटों पर जीत और एक-एक पर मामूली हार मिली थी। वे भी अपनी अच्छी सीटों को लेकर अडिग हैं।
इस बीच, कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु का बयान भी राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। उन्होंने साफ कहा कि सीटों का बंटवारा "अच्छी" और "बुरी" सीटों के बीच संतुलन के साथ होना चाहिए। किसी एक दल को सिर्फ कमजोर सीटें और दूसरे को सभी मजबूत सीटें मिलना न्यायसंगत नहीं होगा।
महागठबंधन के भीतर यह खींचतान बताती है कि 2025 का चुनाव सिर्फ एनडीए बनाम इंडिया ब्लॉक नहीं होगा, बल्कि सहयोगियों के बीच सीट बंटवारे की जद्दोजहद भी बड़ी चुनौती बनेगी। कांग्रेस जहां राहुल गांधी की हालिया यात्रा को अपने पक्ष में माहौल मान रही है, वहीं राजद को अपनी पकड़ बनाए रखना है। आने वाले दिनों में यह स्पष्ट होगा कि महागठबंधन इस पेचीदा समीकरण को कैसे सुलझाता है।
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