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बिहार की सियासत एक नए घोटाले की आंच में उलझ गई है, जिसमें नगर विकास मंत्री जीवेश मिश्रा पर नकली दवाओं की सप्लाई के गंभीर आरोप लगे हैं। कांग्रेस ने इस मुद्दे को शोषण और राजनीति में मिलीभगत का उदाहरण बताया है। मामले के खुलासे और आरोप-प्रत्यारोप ने नीतीश सरकार की छवि को भी झकझोर दिया है।
कांग्रेस का तीखा आरोप: नैतिक धिक्कार बन गई राजनीति
पटना स्थित कांग्रेस कार्यालय में राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने जोरदार प्रेस वार्ता की। उन्होंने कहा कि "मार्केट में घटिया नकली सिप्रोलीन-500 दवा के आपराधिक वितरण से पता चलता है कि मंत्री मिश्रा ने नैतिक मर्यादा को ताक में रख दिया। बाज़ार में बिक रही घटिया दवा ने मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ किया है, लेकिन मंत्री पद पर बने रहना उनकी नीयत पर सवाल खड़े करता है।"
कांग्रेस ने सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जवाब मांगा कि क्या भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ उनका “जीरो टॉलरेंस” केवल बयानबाजी भर है? आम आदमियों पर कठोर कार्रवाई करने और नेताओं के मामले में जुबान बंद रखने में अंतर को दर्शाया है।
आपराधिक धाराओं के तहत गंभीर आरोप
नकली दवा कांड की जांच में पता चला कि जीवेश मिश्रा उस फार्मा कंपनी "ऑल्टो हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड" के निदेशक थे। राजस्थान से मिली रिपोर्ट में यह दवा दवाइयों की गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरी। भारतीय दवा कानून की धाराओं 16(1), 17(A) और 18 जैसी गंभीर धाराएं लागू होती है। आरोप है कि इनके तहत मंत्री की सज़ा 1 से 3 वर्ष तक की हो सकती थी, लेकिन उन्हें केवल प्रोबेशन ऑफिसर की निगरानी में छोड़ दिया गया — जिसे कांग्रेस ने "राजनीतिक संरक्षण" बताया।
कांग्रेस का कहना है कि इस मामले में सरकार की मौन प्रतिक्रिया राजनीतिक हितों का प्रतीक है। अगर आम इंसान गलत साबित होता, तो क्या स्पष्ट और कड़ी कार्रवाई की जाती? कांग्रेस का कहना है कि चुप्पी इस वस्तुस्थिति की गवाही है कि 'डबल इंजन' की सरकार किसी भी तरह के घपले पर पर्दा ढक रही है।