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बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के भीतर सीटों की राजनीति ने फिर तूल पकड़ लिया है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) ने तेजस्वी यादव के सामने बड़ा दावा रखते हुए बिहार में 12 सीटों की मांग की है। यह मांग पार्टी ने 243 सीटों के कुल आंकड़े के 5% के हिसाब से रखी है। झामुमो ने साफ कहा है कि अगर 15 अक्टूबर तक सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनती, तो पार्टी अपने स्वतंत्र रास्ते पर चलने के लिए बाध्य होगी।
झामुमो के केंद्रीय महासचिव और प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि बिहार की कई सीटें ऐसी हैं जहां उनके कार्यकर्ता और स्थानीय नेता प्रभावशाली हैं। अगर वहां झामुमो सक्रिय नहीं रहा तो महागठबंधन को सीधा नुकसान झेलना पड़ेगा। उन्होंने याद दिलाया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में झामुमो ने गठबंधन धर्म निभाते हुए राजद को सात सीटें दी थीं, जिनमें से राजद ने एक सीट (चतरा) पर जीत हासिल की थी।
सुप्रियो भट्टाचार्य ने आगे कहा कि 2024 के झारखंड चुनाव में भी झामुमो ने उदार रुख अपनाया था। झारखंड की कुल सीटों में से 5% सीटें राजद को दी गई थीं, जिनमें से राजद ने चार पर जीत दर्ज की। उन्होंने कहा कि अब वही ‘5 प्रतिशत फॉर्मूला’ बिहार में भी लागू होना चाहिए।
झामुमो नेताओं का मानना है कि बिहार के सीमावर्ती जिलों में उनका प्रभाव है, खासकर संथाल परगना से सटे इलाकों में जहां आदिवासी और मजदूर वर्ग की आबादी अधिक है। इन इलाकों में झामुमो के संगठन सक्रिय हैं और स्थानीय स्तर पर पार्टी की पकड़ मजबूत हुई है। पार्टी का दावा है कि अगर वे गठबंधन के हिस्से के रूप में प्रचार और संगठनात्मक समर्थन नहीं देंगे तो राजद और महागठबंधन उम्मीदवारों का प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।
झामुमो के इस रुख से तेजस्वी यादव के लिए नई राजनीतिक चुनौती खड़ी हो गई है। महागठबंधन में पहले से ही सीट शेयरिंग को लेकर असंतोष है। कांग्रेस पहले ही अधिक सीटों की मांग कर चुकी है, वहीं वाम दलों की भी अपनी रणनीति है। अब झामुमो की मांग ने गठबंधन के समीकरण को और उलझा दिया है।