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बिहार की राजनीति इन दिनों लगातार करवट ले रही है। नई सरकार के गठन के बाद से एक सवाल बार-बार उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार का प्रभाव पहले जैसा नहीं रह गया है। सत्ता साझेदारी की मौजूदा व्यवस्था को देखें तो कई संकेत इसी दिशा में जाते दिखाई देते हैं। मंत्रिमंडल में बीजेपी के 14 मंत्री शामिल किए गए, जबकि जेडीयू सिर्फ आठ मंत्रियों पर सीमित रह गई। संख्या संतुलन ही नहीं, विभागों के बंटवारे ने भी चर्चाओं को और तेज कर दिया है।
नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने जरूर हैं, लेकिन 19 साल में पहली बार गृह मंत्रालय उनके पास नहीं है। यह अहम विभाग बीजेपी के सम्राट चौधरी को दिया गया, जिसके बाद राजनीति में यह चर्चा और गहरी हो गई कि सत्ता का वास्तविक नियंत्रण किसके हाथ में जा रहा है। अब विधानसभा अध्यक्ष का पद भी बीजेपी के खाते में जाने की चर्चा है, जिसे लेकर जेडीयू अभी तक प्रयासरत है, लेकिन स्थिति उनके अनुकूल नहीं दिख रही।
यह दावा करने वालों में सिर्फ राजनीतिक विश्लेषक ही नहीं, बल्कि सक्रिय नेता भी शामिल हैं। पप्पू यादव ने खुलकर कहा कि अगर स्पीकर का पद भी बीजेपी के पास चला जाता है, तो यह मान लेना चाहिए कि नीतीश कुमार के हाथ से नियंत्रण काफी हद तक निकल चुका है। उन्होंने इसे राजनीतिक समझदारी का मुद्दा बताया और कहा कि जेडीयू को किसी भी कीमत पर यह पद नहीं छोड़ना चाहिए।
इसी तरह, वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी ने भी पटना एयरपोर्ट पर बयान देते हुए कहा कि बीजेपी धीरे-धीरे नीतीश कुमार को साइडलाइन कर देगी। उनका कहना था कि सिर्फ नाम के लिए नीतीश कुमार को आगे रखा गया है, लेकिन अब बड़े-बड़े विभाग बीजेपी के पास जा रहे हैं। उनके मुताबिक गृह मंत्रालय दिया जाना पहला संकेत है और आने वाले समय में मुख्यमंत्री पद पर भी सवाल उठ सकता है।
हालांकि मौजूदा गठबंधन संरचना को देखें तो यह कहना जल्दबाजी होगी कि बीजेपी, नीतीश कुमार को पूरी तरह राजनीति से अलग कर देगी। बिहार की परिस्थितियों में जेडीयू की भूमिका अब भी अहम है और बीजेपी अकेले सरकार चला पाएगी, इसकी संभावना अभी कमजोर लगती है। फिर भी 89 सीटों के साथ बीजेपी जिस तरह ताकतवर स्थिति में है और जिस गति से उसके मंत्री लगातार निर्णायक भूमिकाओं में आ रहे हैं, उससे यह आकलन लगातार मजबूत हो रहा है कि सत्ता की बागडोर अब पहले जैसी संतुलित नहीं रही।
पप्पू यादव और मुकेश सहनी के आरोपों में राजनीतिक तुक कितना है, यह आने वाले दिनों में तय होगा, लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति एक और दिलचस्प मोड़ पर खड़ी है। क्या वाकई नीतीश कुमार की पकड़ ढीली पड़ रही है, या यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी का दौर है? इसका जवाब बिहार की आने वाली चालें ही देंगी।
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