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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने राज्य की राजनीति की दिशा बदल दी है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को मिली ऐतिहासिक जीत ने न सिर्फ महागठबंधन की रणनीति को ध्वस्त किया, बल्कि भाजपा के भीतर भी नेतृत्व की नई धाराएँ उभरीं। इसी माहौल में भाजपा ने अपने विधायी दल के उपनेता के रूप में विजय कुमार सिन्हा को चुना है, जिन्हें एक बार फिर डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी मिलने के कयास तेज हो गए हैं। यह सिर्फ एक राजनीतिक नियुक्ति नहीं, बल्कि भूमिहार समुदाय और भाजपा की व्यापक सामाजिक रणनीति को दर्शाता कदम माना जा रहा है।
243 सदस्यीय विधानसभा में एनडीए ने 202 सीटें हासिल कीं। भाजपा ने 89 और जेडीयू ने 85 सीटें लेकर सत्ता के समीकरण को पूरी तरह बदल दिया। इस जीत के बीच विजय कुमार सिन्हा का आगे आना संकेत देता है कि भाजपा उन्हें न सिर्फ प्रशासनिक टीम का प्रमुख चेहरा बनाना चाहती है, बल्कि उन्हें उस नेतृत्व की कतार में भी देख रही है, जो अगले दशक की राजनीति को आकार दे सकता है।
लखीसराय से लगातार पांचवीं बार जीतने वाले सिन्हा ने कांग्रेस उम्मीदवार अमरेश कुमार को लगभग 25 हजार वोटों से हराया। उनके पक्ष में पड़े एक लाख बाईस हजार से अधिक वोटों ने दिखा दिया कि स्थानीय जनाधार आज भी उनके साथ मजबूती से खड़ा है। उन्होंने चुनाव परिणाम आने के बाद कहा कि जनता का भरोसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की साझेदारी पर टिका है। यह जनादेश उन वर्गों का संदेश है जिन्हें विकास की सीधी जरूरत है, खासकर युवाओं, किसानों और महिलाओं का।
साधारण परिवार में जन्मे विजय कुमार सिन्हा ने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा जरूर किया, लेकिन पेशेवर करियर की बजाय उन्होंने राजनीतिक रास्ता चुना। एबीवीपी के दिनों से धीरे-धीरे भाजपा की स्थानीय राजनीति में उनकी पकड़ मजबूत होती गई। 2005 में लखीसराय से पहली जीत के बाद से इस सीट पर वे लगातार अपना प्रभाव बनाए हुए हैं। उनकी जीतों का अंतर और विरोधियों को मिले कम वोट दोनों इस बात की पुष्टि करते हैं कि उनका राजनीतिक आधार सिर्फ जातीय नहीं, बल्कि निरंतर सक्रियता और स्थानीय मुद्दों पर उनकी पकड़ से भी बना है।
नीतीश कुमार सरकार में मंत्री के रूप में उनकी शुरुआत हुई, जहां श्रम संसाधन विभाग में उन्होंने श्रमिक हितों पर गंभीरता से काम किया। 2020 में बिहार विधानसभा के स्पीकर बनने के बाद उनकी छवि एक सख्त और दृढ़ नेता के रूप में और उभरी। हालांकि 2022 में महागठबंधन बनने के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा, लेकिन इसी दौर में उनकी राजनीतिक आक्रामकता सबसे ज्यादा दिखाई दी। विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने राज्य सरकार की नीतियों पर लगातार सवाल उठाए और कई मुद्दों पर सरकार को असहज भी किया।
जनवरी 2024 में नीतीश कुमार के एनडीए में लौटने पर उन्हें फिर उपमुख्यमंत्री बनाया गया। सड़क से लेकर कला और खनन विभाग तक, कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभालते हुए उन्होंने प्रशासन में खुद को साबित करने की कोशिश जारी रखी। फरवरी 2025 में मिला कृषि विभाग का प्रभार इस बात का संकेत था कि भाजपा और जेडीयू उनकी क्षमता को और बड़े दायरे में देखना चाहते हैं।
हालिया चुनावों में खोरियारी गांव की घटना ने उन्हें विवादों में भी डाला, जब ग्रामीणों के विरोध के बीच उन्होंने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए बुलडोजर वाली टिप्पणी कर दी। विपक्ष ने इसे राजनीतिक अहंकार बताया, लेकिन मतदाताओं ने जिस तरह उन्हें भारी बहुमत दिया, उससे साफ हुआ कि स्थानीय मुद्दों पर उनकी पकड़ और राजनीतिक कैडर में उनकी ऊर्जा अभी भी बरकरार है।
अब जब भाजपा ने उन्हें एक बार फिर विधायी दल का उपनेता बनाया है, तो डिप्टी सीएम के रूप में उनकी दूसरी पारी लगभग तय मानी जा रही है।
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