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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के बीच मोकामा विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर सुर्खियों में है। कभी शांत दिखाई देने वाला यह इलाका बाहुबल, जातीय समीकरण और राजनीतिक प्रभुत्व की जंग में फिर से उबल पड़ा है। पुराने बाहुबली नेता दुलारचंद यादव की हत्या ने बाढ़ और मोकामा टाल के राजनीतिक तापमान को अचानक बढ़ा दिया है। शुक्रवार को बाढ़ में जब उनके समर्थक शव लेकर प्रदर्शन पर उतरे, तो यह साफ हो गया कि मामला अब सिर्फ एक आपराधिक घटना नहीं, बल्कि सत्ता और जातीय वर्चस्व की लड़ाई का नया अध्याय बन चुका है।
पुलिस ने इस मामले में जेडीयू प्रत्याशी और चर्चित बाहुबली अनंत सिंह समेत पांच लोगों पर नामजद एफआईआर दर्ज की है। दुलारचंद यादव के पोते रविरंजन यादव के बयान के आधार पर दर्ज मामले में सियासी हलचल तेज हो गई है। मोकामा और बाढ़ की गलियों में अब यह चर्चा है कि आखिर दशकों पुरानी अनंत-दुलारचंद दुश्मनी ने आखिर किस मोड़ पर यह खून-खराबा ला दिया।
मोकामा की सियासत में बाहुबली दौर की जड़ें
दुलारचंद यादव और अनंत सिंह की कहानी बिहार की उस बाहुबली राजनीति का प्रतीक है, जिसमें जातीय समीकरण और ताकत दोनों साथ चलते हैं। इस अदावत की जड़ें 1980 के दशक में जाती हैं, जब कांग्रेस नेता श्याम सुंदर सिंह धीरज मोकामा से विधायक हुआ करते थे। उस दौर में उन्होंने दो उभरते चेहरों को बढ़ावा दिया- लदमा गांव के भूमिहार दिलीप सिंह और टाल क्षेत्र के यादव बाहुल्य गांव तारतर के दुलारचंद यादव को।
जहां दिलीप सिंह राइफल के दम पर कांग्रेस के लिए बूथ काबू करते थे, वहीं दुलारचंद यादव टाल इलाके में अपना दबदबा बना रहे थे। कहा जाता है कि धीरज ने दोनों को राजनीतिक रूप से इस्तेमाल किया, लेकिन बाद में दिलीप सिंह को ही आगे बढ़ाया। यही बात दुलारचंद को सालों तक सालती रही।
धीरे-धीरे दुलारचंद ने मोकामा टाल में कुर्मी और धानुक बाहुल्य गांवों में अपनी पकड़ मजबूत की। उन पर आरोप लगते रहे कि उन्होंने दबाव में कई किसानों की जमीनें अपने नाम कराईं। लेकिन जमीन के साथ-साथ उन्होंने राजनीतिक जमीन भी मजबूत की और 2000 के दशक में बाढ़ को अपना नया ठिकाना बनाया।
अनंत सिंह का उदय और अदावत की शुरुआत
दिलीप सिंह की मौत के बाद जब उनके छोटे भाई अनंत सिंह राजनीति में आए, तो मोकामा की कहानी फिर बदल गई। 2005 में जेडीयू टिकट से जीत के बाद अनंत सिंह का दबदबा तेजी से बढ़ा। उधर, दुलारचंद यादव का राजनीतिक ग्राफ लगातार गिरता गया। मोकामा और बाढ़ के स्थानीय कारोबार से लेकर पंचायत स्तर की राजनीति तक, दोनों के बीच क्षेत्रीय नियंत्रण को लेकर कई बार टकराव हुआ।
कहा जाता है कि बाढ़ शहर को दोनों ने अपने हिस्सों में बांट रखा था। ठेला, टैक्सी, ठेके और सुरक्षा वसूली तक में प्रभुत्व की होड़ लगी रहती थी। समय के साथ यह प्रतिस्पर्धा व्यक्तिगत दुश्मनी में बदल गई। दुलारचंद जहां आरजेडी के करीब रहे, वहीं अनंत सिंह नीतीश कुमार की जेडीयू में शक्ति का चेहरा बने।
धानुक और कुर्मी इलाकों में प्रचार बना विवाद की वजह
घटना वाले दिन दुलारचंद यादव जनसुराज प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के लिए प्रचार कर रहे थे, जो धानुक समाज से आते हैं। इसी इलाके में उसी समय जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह का काफिला भी मौजूद था। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यही टकराव की असली वजह बनी।
मोकामा टाल के गांवों में इस बार जातीय समीकरण काफी जटिल हैं। आरजेडी ने भूमिहार बाहुबली सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी को टिकट दिया है, जबकि जनसुराज ने धानुक समाज के पीयूष प्रियदर्शी को उतारा है। ऐसे में अनंत सिंह को उम्मीद है कि भूमिहार वोटों के बंटवारे से उन्हें कुर्मी-धानुक वोट बैंक का फायदा मिलेगा। लेकिन जब दुलारचंद यादव उसी इलाके में पीयूष के लिए प्रचार करते दिखे, तो विवाद अपरिहार्य हो गया।
पुरानी अदावत और नई सियासी साजिश
अब इसे बाहुबली राजनीति का नया एपिसोड माना जा रहा है। मोकामा और बाढ़ क्षेत्र में दशकों से बाहुबलियों की राजनीति जातीय गणित से चलती रही है। एक समय था जब अनंत सिंह और दुलारचंद दोनों ‘स्थानीय शक्ति केंद्र’ माने जाते थे। अब, जब बिहार चुनाव अपने चरम पर है, दुलारचंद की हत्या ने इस पूरे समीकरण को हिला दिया है।
दुलारचंद के समर्थक इसे “साजिशन हत्या” बता रहे हैं, जबकि पुलिस इस मामले की जांच राजनीतिक कोण से भी कर रही है। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह सिर्फ व्यक्तिगत रंजिश नहीं, बल्कि मोकामा टाल पर राजनीतिक नियंत्रण की जंग है।
बाढ़ और मोकामा में तनाव, चुनावी असर तय करेगा रुख
दुलारचंद यादव की हत्या के बाद बाढ़ और मोकामा में तनाव बढ़ गया है। समर्थकों ने शव लेकर प्रदर्शन किया और प्रशासन पर कार्रवाई का दबाव बनाया। अब देखना यह होगा कि इस हत्या का चुनावी असर किस पर पड़ता है। क्या मोकामा की जनता बाहुबली छवि से बाहर निकलकर बदलाव चुनेगी, या फिर पुराने प्रभुत्व की राजनीति ही फिर से हावी होगी?
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