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खादी मॉल के जरिए बदलने जा रही है पूर्वी बिहार की तस्वीर: पूर्णिया बनेगा ग्रामीण कला और उद्यमिता का नया केंद्र

पूर्णिया में 6.64 करोड़ की लागत से बन रहा बिहार का तीसरा खादी मॉल, पूर्वी बिहार के बुनकरों और हस्तशिल्प कलाकारों को देगा नया आर्थिक अवसर। जानिए इस परियोजना की खासियत और असर।

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Manoj Pratap
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पटना, वाईबीएन डेस्क। बिहार सरकार अब खादी को सिर्फ कपड़े तक सीमित न रखकर उसे सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक विकास का प्रतीक बना रही है। पूर्णिया के भट्टा चौक में बन रहा राज्य का तीसरा आधुनिक खादी मॉल इसी सोच की जीती-जागती मिसाल है। 6.64 करोड़ की अनुमानित लागत से तैयार हो रहा यह मॉल, न केवल बुनकरों और ग्रामीण कारीगरों के लिए विकास का नया द्वार बनेगा, बल्कि पूर्वी बिहार के आर्थिक परिदृश्य को भी नया आकार देगा।

तीन मंजिला होगा मॉल

इस मॉल का निर्माण 14,633 वर्गफुट क्षेत्र में किया जा रहा है, जो तीन मंजिला होगा। इसे जल्द ही आम जनता के लिए खोले जाने की योजना है। विभाग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर इसके निर्माण की प्रगति साझा की है, जिससे स्पष्ट है कि यह परियोजना प्राथमिकता में है। पूर्णिया का यह मॉल केवल एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स नहीं होगा, बल्कि ग्रामीण भारत के हुनर का शहरी मंच होगा। इसमें खादी परिधान, हथकरघा उत्पाद, हर्बल ब्यूटी प्रोडक्ट्स, आयुर्वेदिक औषधियां, स्थानीय शिल्प और ग्रामोद्योग से जुड़ी वस्तुएं एक ही छत के नीचे उपलब्ध होंगी। इससे जहां ग्रामीण क्षेत्रों के उत्पादों को सीधा बाजार मिलेगा, वहीं ग्राहकों को भी गुणवत्ता और परंपरा का अद्वितीय संगम देखने को मिलेगा।

पटना और मुजफ्फरपुर में पहले से है चल रहा है मॉल

इससे पहले पटना और मुजफ्फरपुर में दो खादी मॉल पहले से कार्यरत हैं। पूर्णिया का यह प्रोजेक्ट पूर्वी बिहार के लिए एक मॉडल हब के रूप में विकसित किया जा रहा है। खासकर सीमांचल और कोसी इलाके के कारीगरों को इससे बहुत लाभ मिलेगा। राज्य सरकार की मंशा है कि ऐसे मॉल सिर्फ व्यापारिक केंद्र न बनें, बल्कि स्थानीय युवाओं को स्वरोजगार का मंच भी प्रदान करें। सरकार चाहती है कि खादी की ब्रांडिंग को पुनर्जीवित किया जाए और उसे फिर से एक ग्लोबल पहचान दिलाई जाए।

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