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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले कांग्रेस ने अपने राजनीतिक पत्ते खोल दिए हैं और इसकी गूंज पूरे राज्य की सियासत में सुनाई दे रही है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की 14 दिन लंबी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ रविवार को पटना में संपन्न हो रही है। गांधी मूर्ति से अंबेडकर मूर्ति तक तेजस्वी यादव के साथ उनकी पदयात्रा ने साफ संकेत दे दिया है कि कांग्रेस अब बिहार की राजनीति में सिर्फ सहायक दल नहीं, बल्कि निर्णायक भूमिका निभाने की तैयारी में है।
17 अगस्त से शुरू हुई थी वोटर अधिकार यात्रा
17 अगस्त को रोहतास से शुरू हुई यह यात्रा 23 जिलों और 60 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी। लगभग 1300 किलोमीटर की इस यात्रा में शुरू में राहुल गांधी के साथ चुनिंदा नेता ही थे, लेकिन धीरे-धीरे वाम दलों और महागठबंधन के अन्य सहयोगी भी शामिल हुए। खास बात यह रही कि हर जिले में उमड़ी भीड़ ने कांग्रेस को नई ऊर्जा दी। इस यात्रा ने न केवल पार्टी की खोई हुई जमीन वापस दिलाने का काम किया, बल्कि सहयोगी दलों की बेचैनी भी बढ़ा दी।
महागठबंधन में मजबूत हुआ कांग्रेस का कद
महागठबंधन के भीतर कांग्रेस का कद इस यात्रा के बाद और मजबूत हुआ है। संदेश साफ है कि पार्टी अब महज ‘भीख में मिली सीटों’ पर समझौता नहीं करेगी, बल्कि ‘जीतने योग्य सीटों’ पर दावेदारी ठोकेगी। इतिहास गवाह है कि 2010 में गठबंधन टूटने के बाद कांग्रेस ने 243 सीटों पर चुनाव लड़ा था और केवल 4 सीटों पर जीत हासिल कर पाई थी। 2015 में महागठबंधन के साथ आकर 41 में से 27 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि 2020 में 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटें जीतीं। यही कारण है कि राहुल गांधी अब 2025 में कम लेकिन मजबूत सीटों पर फोकस कर रहे हैं।
इस यात्रा का सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश दलित, पिछड़े और अति पिछड़े समाज की गोलबंदी है। राहुल गांधी ने अपने हर संबोधन में संविधान और सामाजिक न्याय की बात की। अल्पसंख्यक वोट बैंक को साधने की कोशिश भी साफ दिखाई दी। सीमांचल की हालिया सफलता कांग्रेस की इसी रणनीति का नतीजा है। लेकिन यही रणनीति तेजस्वी यादव के लिए सिरदर्द भी साबित हो रही है, क्योंकि महागठबंधन के भीतर कांग्रेस की बढ़ती पकड़ से आरजेडी का वोट बैंक खिसक सकता है।
वहीं, एनडीए खेमे में भी बेचैनी है। राहुल गांधी ने ‘वोट चोरी’ को मुद्दा बनाकर सीधे बीजेपी-जेडीयू गठबंधन पर हमला बोला। खासकर EBC और दलित वोट बैंक में कांग्रेस की सक्रियता से एनडीए की गणित गड़बड़ हो सकती है। चुनावी समीकरण इस बार और जटिल हो गए हैं। राहुल की इस यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार की राजनीति में कांग्रेस अब सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि खेल बदलने वाली खिलाड़ी बनकर सामने आ रही है।
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