बिहार के बहुचर्चित अलकतरा घोटाले में मुख्य आरोपी कृष्ण कुमार केडिया को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने उन्हें तीन साल की सजा पूरी करने के लिए आत्मसमर्पण (सरेंडर) करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी पटना हाईकोर्ट द्वारा पहले दी गई सजा को कानूनी रूप से सही ठहराती है, हालांकि उम्र को देखते हुए सजा की अवधि पांच साल से घटाकर तीन साल कर दी गई है।
क्या है अलकतरा घोटाला?
यह घोटाला 1994 में सहरसा में सामने आया था, जिसमें बड़ी मात्रा में अलकतरा (कोलतार) की आपूर्ति में फर्जीवाड़ा किया गया था। सरकारी रिकॉर्ड में आपूर्ति दिखाई गई, लेकिन वास्तविक आपूर्ति नगण्य या नकली थी।
17 जनवरी 1994 को सहरसा के कार्यपालक अभियंता ने इस मामले की शिकायत दर्ज कराई थी। जांच में सामने आया कि करोड़ों रुपये के सरकारी फंड की बंदरबांट की गई थी।
मामले में अब तक क्या हुआ?
इस घोटाले में चार लोगों को आरोपी बनाया गया था:
- कृष्ण कुमार केडिया (मुख्य आरोपी)
- पांचू महतो (मृत्यु)
- भगवान प्रसाद पोद्दार (मृत्यु)
- महेश्वर प्रसाद (सरकारी गवाह बनकर माफ)
ट्रायल के दौरान दो आरोपियों की मौत हो गई, जिससे उनके खिलाफ केस बंद कर दिया गया। एक अन्य आरोपी महेश्वर प्रसाद को माफी देकर सरकारी गवाह बना लिया गया।
हाईकोर्ट ने पहले 5 साल की सजा सुनाई थी। कृष्ण कुमार केडिया ने अपनी उम्र और स्वास्थ्य का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस अगस्टिन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि कानून सबके लिए समान है।
सुप्रीम कोर्ट ने सजा 5 साल से घटाकर 3 साल जरूर की, लेकिन यह कहते हुए बेल बॉन्ड रद्द कर दिया कि अब उन्हें शेष सजा पूरी करने के लिए जेल जाना होगा।
यदि वे स्वेच्छा से सरेंडर नहीं करते, तो संबंधित पुलिस अधिकारी उन्हें गिरफ्तार कर हिरासत में लें।
सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस.डी. संजय ने केस की पैरवी की। वहीं अपीलार्थी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश ने कोर्ट में दलीलें रखीं। लेकिन कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोकधन से जुड़ी धोखाधड़ी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।