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Upendra Kushwaha का हमला: Loksabha हार के लिए NDA नेताओं को बताया जिम्मेदार, अब परिसीमन को लेकर आंदोलन की तैयारी

लोकसभा चुनाव में हार के बाद उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीए नेताओं को दोषी ठहराया। शाहाबाद से रैली शुरू कर परिसीमन सुधार की मांग, जनसंख्या के हिसाब से सीट बढ़ाने की वकालत की।

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YBN Bihar Desk
Upendra Kushwaha
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राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के अध्यक्षउपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha)ने 2024 लोकसभा चुनाव (Loksabha Election) में मिली हार को लेकर चुप्पी तोड़ते हुए सीधे तौर परNDA के भीतर मौजूद कुछ नेताओं को कटघरे में खड़ा किया है। उपेंद्रकुशवाहा ने कहा किशाहाबाद और मगध इलाके में गंदी राजनीति और साजिशके चलते एनडीए को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और इस बार वह चूक नहीं दोहराई जाएगी।

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वाल्मीकिनगर में तीन दिन की पार्टी बैठक के बाद कुशवाहा ने14 सूत्री प्रस्तावपारित किया और25 मई से ‘संविधान अधिकार परिसीमन सुधार कार्यक्रम’के तहत पूरे बिहार में जनजागरण रैलियों की घोषणा की। पहली रैलीशाहाबादसे शुरू होगी, जो 2024 में एनडीए के सफाए का केंद्र रहा।

शाहाबाद को क्यों चुना?

कुशवाहा का कहना है कि शाहाबाद और मगध में BJP और अन्य घटक दलों की अंदरूनी साजिशोंने एनडीए को वहां से उखाड़ फेंका। उन्होंने कहा कि जेपी नड्डा (JP Nadda) जी खुद जानते हैं कि वहां किसने खेल खेला। अगर विधानसभा चुनाव में भी ऐसा हुआ तो सत्ता से बाहर हो सकते हैं।”

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उपेंद्र कुशवाहा अबपरिसीमन (Delimitation) को केंद्रीय मुद्दा बना रहे हैं। उनका कहना है कि:

  • 1971 के बाद जनसंख्या आधारित परिसीमन रोक दिया गया, जिससे बिहार और जैसे अन्य राज्यों को नुकसान हुआ।
  • आजकुछ लोकसभा सीटों पर 30 लाख तो कुछ पर 10 लाख मतदाताहैं — यह असमानता लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।
  • अगर सही परिसीमन हुआ तो बिहार कीलोकसभा सीटें 40 से बढ़कर 60 हो सकती हैं और विधानसभा में भी सदस्यों की संख्या बढ़ेगी।
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उपेंद्र कुशवाहा ने वादा किया किहमारी पार्टी इस मुद्दे पर किसी भी हद तक जाएगी।यह अभियान केवल परिसीमन तक सीमित नहीं, बल्कि कुशवाहा एनडीए मेंअपनी राजनीतिक हैसियत मजबूत करने की कवायदभी कर रहे हैं। वह संदेश दे रहे हैं किअगर बात नहीं सुनी गई तो वे चुप नहीं बैठेंगे।

2025 विधानसभा चुनाव के नजदीक आते हीबिहार की राजनीति में सीटों का बंटवारा, नेताओं का व्यवहार और क्षेत्रीय समीकरणफिर से गरमा रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा की यह आवाज़ न केवल NDA के भीतर टकराव का संकेत है, बल्किपरिसीमन जैसे बड़े संवैधानिक मुद्दे को उठाकर वे खुद को गंभीर नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश भी कर रहे हैं।

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