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दिल्ली दंगों के गुनहगार! उमर खालिद-शरजील इमाम को मिलेगी रिहाई? कोर्ट ने फैसला क्यों सुरक्षित रखा?

दिल्ली दंगा साज़िश UAPA मामले में उमर खालिद-शरजील इमाम की ज़मानत पर दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा। लाखों निगाहें टिकीं, क्या मिलेगी आज़ादी या जेल? न्याय और स्वतंत्रता के बीच संतुलन का अहम फैसला जल्द।

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Ajit Kumar Pandey
दिल्ली दंगों के गुनहगार! उमर खालिद-शरजील इमाम को मिलेगी रिहाई? कोर्ट ने फैसला क्यों सुरक्षित रखा? | यंग भारत न्यूज

दिल्ली दंगों के गुनहगार! उमर खालिद-शरजील इमाम को मिलेगी रिहाई? कोर्ट ने फैसला क्यों सुरक्षित रखा? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों की कथित साज़िश से जुड़े यूएपीए (UAPA) मामले में एक्टिविस्ट शरजील इमाम और उमर खालिद की ज़मानत याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। क्या उन्हें मिलेगी आज़ादी या जेल में ही गुज़रेंगे और दिन? इस फैसले पर सबकी निगाहें टिकी हैं।

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फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए भयावह दंगों की आग ने कई जिंदगियां लील ली थीं। इस मामले में कई एक्टिविस्टों पर देशद्रोह और आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप लगे, जिनमें जेएनयू (JNU) के पूर्व छात्र नेता शरजील इमाम और उमर खालिद भी शामिल हैं। इन दोनों पर अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (UAPA) के तहत आरोप लगाए गए हैं, जो अपने आप में बेहद गंभीर कानून है।

हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने इनकी ज़मानत याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस फैसले का इंतज़ार सिर्फ उनके परिवार वालों को नहीं, बल्कि देश के हर उस नागरिक को है जो न्याय प्रणाली और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच के संतुलन को समझना चाहता है।

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साज़िश का जाल: आरोप और बहस

पुलिस का आरोप है कि दिल्ली दंगों के पीछे एक गहरी साज़िश थी, जिसमें शरजील इमाम और उमर खालिद जैसे कई लोगों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन पर भड़काऊ भाषण देने, लोगों को उकसाने और दंगों के लिए माहौल तैयार करने का आरोप है। पुलिस ने अपनी दलीलों में कई डिजिटल सबूत, चश्मदीदों के बयान और कॉल रिकॉर्ड्स पेश किए हैं। उनका दावा है कि ये दोनों न केवल साज़िश का हिस्सा थे, बल्कि इसके मुख्य सूत्रधारों में से एक थे।

दूसरी ओर, खालिद और इमाम के वकीलों ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उनका तर्क है कि उनके मुवक्किलों को गलत तरीके से फंसाया गया है और उनके खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं। वकीलों ने कहा कि उनके मुवक्किलों ने केवल शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था, जो उनका संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने यह भी दलील दी कि पुलिस ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है और राजनीतिक कारणों से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। इस पूरी सुनवाई के दौरान अदालत में दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस देखने को मिली, जिसने इस मामले की जटिलता को और बढ़ा दिया।

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UAPA: एक कठोर कानून की पेचीदगियां

UAPA कानून, जिसे आतंकवाद विरोधी गतिविधियों से निपटने के लिए बनाया गया है, अपनी कठोर धाराओं के लिए जाना जाता है। इस कानून के तहत ज़मानत मिलना बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि इसमें 'प्रथम दृष्टया' (prima facie) सबूतों की गंभीरता को देखा जाता है। अगर अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, तो ज़मानत मिलने की संभावना कम हो जाती है। इसी वजह से शरजील इमाम और उमर खालिद को लंबे समय से जेल में रहना पड़ा है।

इस कानून को लेकर अक्सर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों द्वारा सवाल उठाए जाते रहे हैं। उनका मानना है कि इसका दुरुपयोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने और असहमति की आवाज़ों को चुप कराने के लिए किया जा सकता है। ऐसे में दिल्ली हाई कोर्ट का यह फैसला UAPA के तहत ज़मानत के मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है। क्या अदालतें इस कानून की व्याख्या में अधिक लचीलापन दिखाएंगी या कठोरता बनी रहेगी? यह एक बड़ा सवाल है।

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न्याय की कसौटी पर: समाज और राजनीति पर असर

दिल्ली दंगों की भयावहता को कोई नहीं भूल सकता, लेकिन उसके बाद की कानूनी प्रक्रिया और देश की न्यायपालिका पर भरोसा करना ही होगा कि वह सभी पहलुओं पर विचार कर एक निष्पक्ष और न्यायसंगत फैसला देगी। अब बस इंतज़ार है उस घड़ी का, जब अदालत अपना मुहरबंद लिफाफा खोलेगी और बताएगी कि शरजील इमाम और उमर खालिद की किस्मत में क्या लिखा है।

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