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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क।दिल्ली में चल रही कला प्रदर्शनी 'खामोश संवाद हाशिये से केंद्र तक' के चौथे संस्करण के अंतर्गत सांस्कृतिक कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कलाकारों ने समां बांध दिया और दर्शकों की खूब प्रशंसा बटोरी। छत्तीसगढ़ के `बस्तर बैंड’ द्वारा प्रस्तुत `देव पाद’, चित्रोत्पला लोक कला परिषद् की प्रस्तुति `दस्मत’ एवं क्षमा मालवीय का `नर्मादाकल्पवल्ली’ को दर्शकों ने खूब सराहा।
पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने किया उद्घाटन
प्रदर्शनी का आयोजन संकला फाउंडेशन द्वारा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और इंटरनेशनल बिग कैट्स अलायन्स के तत्वावधान में किया जा रहा है। बृहस्पतिवार को इसका उद्घाटन पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने किया। कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की लोक संस्कृति की झलक प्रस्तुत की गई। बस्तर बैंड छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र का एक पारंपरिक आदिवासी संगीत व नृत्य समूह है, जो पारंपरिक लोक कलाओं एवं संगीत परम्पराओं को प्रदर्शित करता है। यह बैंड आदिवासी संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें शहरी दर्शकों के सामने लाता है। इस बैंड की स्थापना में अनूप रंजन पांडेय का योगदान अनुकरणीय है।
प्रदर्शनी में 30 से अधिक बाघ अभ्यारण्य के आसपास रहने वाले कलाकार शामिल
`खामोश संवाद: हाशिये से केंद्र तक प्रदर्शनी में देश के 30 से अधिक बाघ अभ्यारण्य के आस-पास रहने वाले जनजातीय समुदाई के 50 कलाकार भाग ले रहे हैं जिनकी 250 चित्र और कलाकृतियां बिक्री के लिए प्रदर्शित की जाएंगी। कलाकृतियों की बिक्री का पैसा सीधा कलाकारों के खातों में डाला जाएगा। गोंड, पटचित्र एवं सोहराई प्रारूप में बनाई गई कलाकृतियां प्रदर्शनी में रखी गयी हैं। एक राष्ट्रीय सम्मेल्स ` ट्राइबल आर्ट्स एंड इंडियाज़ कंज़रवेशन एथोस: लिविंग विजडम’ शीर्षक पर एक राष्ट्रीय सम्मलेन भी होगा, जिसका आयोजन कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन इंडस्ट्री ने किया है।
युवाओं को कला से जोड़ने में अनूप पांडेय का अहम योगदान
अनूप रंजन पांडेय का जुड़ाव पारंपरिक लोक कलाओं के साथ बचपन से ही रहा, लेकिन 1990 के दशक में जब इस क्षेत्र में नक्सलवाद चरम पर था, उन्होंने युवाओं को कला से जोड़ने का निश्चय किया और आदिवासियों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले वाद्यं यंत्रों को इक्कठा करना शुरू किया। वर्ष 2007-08 में उन्होंने बस्तर बैंड को औपचारिक रूप दिया। बताते हैं कि गोंड समाज में लिंगोदेव की अहम भूमिका रही है और उनकी गाथा में 18 प्रकार के वाद्य यंत्रों का वर्णन मिलता है। बस्तर क्षेत्र में ही इन वाद्य यंत्रों के साथ-साथ अनूप रंजन पाण्डेय को कई और प्रकार के वाद्य यन्त्र भी मिले, जिनसे प्रेरित होकर उन्होंने युवाओं के साथ इन वाद्य यंत्रों को पुनार्जीविक और संवर्धन करने का प्रयास शुरू किया।
छत्तीसगढ़ से 175 पारंपरिक वाद्ययंत्र घासीदास संग्रहालय में
उन्होंने छत्तीसगढ़ से 175 पारंपरिक यन्त्र इक्कठे किए जो अंब गुरु घासीदास संग्रहालय, रायपुर में रखे गए हैं। उन्होंने 225 वाद्य यंत्र पूरे देश से इक्कठे किए जो त्रिवेणी संग्रहालय, उज्जैन में हैं। कई दुश्वारियों का सामना करते हुए उन्होंने बस्तर बैंड बनाया। इस बैंड से आज 52 पारंपरिक और नए समूह जुड़े हुए हैं जिन में 10,000 कलाकार हैं। एक समय पर 17 कलाकार प्रस्तुति देते हैं। जिन वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल यह बैंड करता है उनमें प्रमुख हैं पेंडुल ढोल, तिरदुद, ज़राद, अकुम, तोड़ी, तोरामं, और तुपकी। इस बैंड ने देश और विदेश में कार्यक्रम किए हैं।
बस्तर बैंड की प्रस्तुति `देव पाद’ सुरों की जुगलबंदी है, जिससे देवताओं का आगमन किया जाता है। इसमें नृत्य और सुर का संगम होता है। इस में देवता का आगमन, उसका गांव में रहना और उनकी विदाई तक सब सुरों और नृत्य के रूप में दर्शाया गया है।
चित्रोत्पला लोक कला परिषद
चित्रोत्पला लोक कला परिषद, छत्तीसगढ़ की लोक कला के संरक्षण संवर्धन के लिए विगत 30 वर्षों से कार्य कर रही है। इसकी शुरुआत राकेश तिवारी ने की है। परिषद द्वारा इस अवधि में लोक नृत्य, लोकगीत तथा लोक नाट्य पर समय-समय पर कार्यशाला का आयोजन किया जाता रहा है। परिषद द्वारा 10 वर्षों तक दिवार्षि लोक संगीत डिप्लोमा का पाठ्यक्रम भी संचालित किया गया है तथा अभी तक लगभग 25 लोक नाटकों की प्रस्तुति दी गई है जिसमें दसमत, राजा फोकलवा, लछनी, ओढ़हर, और कौवा ले गे कान आदि प्रमुख है।
`दस्मत एक मार्मिक लोककथा
`दस्मत एक तरफ़ा प्रेम की एक मार्मिक लोक कथा है जो `दस्मत कैना के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह कथा एक महिला दस्मत की है जो कई परीक्षाओं और कठिनाइयों के बावजूद भी अपने प्रेमी सिन्ध्त के प्रति अपनी चाहत बनाएरखती है। दस्मत न तो कभी प्रलोभन, न कभी पेड़ और न ही कभी निराशा के सामने झुकी। यह गाथा पारंपरिक रूप से देवर जाती के सदस्यों द्वारा गाई जाती है। छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में इसका विशेष स्थान है। उड़ीसा की अति सुन्दर दस्मत और मेहनत कर गुज़र बसर करने वाली इस नारी की कहानी को न केवल गीत के माध्यम से संरक्षित किया गया है। बल्कि राजनंदगांव जिले में उनकी समाधि को स्मारक के रूप में भी संरक्षित किया गया है।
'नार्मादाकल्पवाल्ली नर्मदा नदी की उदम कथा
मध्य प्रदेश की क्षमा मालवीय "नार्मादाकल्पवाल्ली" नर्मदा नदी की उदम कथा है जिसे कत्थक नृत्य की पारंपरिक शैली में लिखा एवं रचा गया है। क्षमा मालवीय इस नृत्य नाटिका को कत्थक शैली में बखूबी से प्रस्तुत किया। कहानी में चंद्रवंशी राजा पुरुरवा ने कठिन तप से भगवन शिव प्रसन्न होते हैं। एवं वरदान मांगने को कहते हैं। वरदान में राजा नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण की प्रार्थना करते हैं। पहले तो शिव मना करते हैं, लेकिन बाद में स्वीकार कर लेते हैं। इस तरह नर्मदा नदी का अवतरण पृथ्वी पर होता है। इससे जुड़ी सभी कथाओं का संक्षेप में प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास इस नृत्य रूपक के माध्यम से किया गया है।