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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा – ‘अधिकारियों से संपर्क करें’। जुलाई में होगी अगली सुनवाई, लेकिन तब तक रहवासियों की सांस अटकी। बटला हाउस के 40 मकानों को निगम ने भेजे थे ध्वस्तीकरण नोटिस।
दिल्ली के जामिया नगर स्थित बटला हाउस इलाके में 40 मकान मालिकों को सुप्रीम कोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने ध्वस्तीकरण नोटिसों पर तत्काल रोक लगाने की मांग खारिज करते हुए याचिकाकर्ताओं से संबंधित अधिकारियों से संपर्क करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई जुलाई में होगी, तब तक इलाके में तनाव और अनिश्चितता बनी हुई है।
बटला हाउस में संकट: सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत राहत से किया इनकार
दिल्ली के जामिया नगर क्षेत्र स्थित बटला हाउस एक बार फिर चर्चा में है। इस बार वजह है – नगर निगम द्वारा भेजे गए ध्वस्तीकरण नोटिस और उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में की गई याचिका। बटला हाउस के करीब 40 मकान मालिकों ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया था, लेकिन उन्हें तत्काल राहत नहीं मिली।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि वह इस समय इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति एसवी भट की बेंच ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे पहले संबंधित अधिकारियों से संपर्क करें और कानूनी प्रक्रिया का पालन करें।
The Supreme Court refuses to interfere with the demolition notices issued to the property owners at Batla House in Jamia Nagar and asks petitioners to approach the appropriate authorities.
— ANI (@ANI) June 2, 2025
40 residents who own properties in Batla House sought a stay on the demolition order.… pic.twitter.com/ouP2QK1te4
बुलडोज़र की आहट से सहमे लोग
बटला हाउस के निवासियों का कहना है कि उनके मकान वर्षों से खड़े हैं, जिनमें वे परिवार समेत रह रहे हैं। उन्हें अचानक भेजे गए नोटिस ने परेशान कर दिया है। “क्या इतनी बड़ी आबादी को एक झटके में बेघर किया जा सकता है?” एक निवासी ने सवाल उठाया।
जुलाई में होगी अगली सुनवाई
हालांकि कोर्ट ने मामले को पूरी तरह खारिज नहीं किया है। अब इसकी अगली सुनवाई जुलाई में होनी है। तब तक ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ती है या रुकती है, यह नगर निगम और स्थानीय प्रशासन की मंशा पर निर्भर करेगा।
कानूनी प्रक्रिया की सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ध्वस्तीकरण नोटिस को सीधे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के बजाय पहले अधीनस्थ कानूनी उपायों का पालन किया जाना चाहिए। कोर्ट का यह रुख पहले भी कई मामलों में देखा गया है, जब नगर निगम जैसी एजेंसियों के मामलों में अदालत ने प्रशासनिक प्रक्रिया का सम्मान करने की बात कही।
राजनीतिक हलचल भी शुरू
इस फैसले के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी भी तेज हो गई है। कुछ विपक्षी दलों ने इसे “गरीबों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्रवाई” बताया है, जबकि प्रशासन इसे “गैर-कानूनी निर्माण पर कार्रवाई” बता रहा है।
बटला हाउस में जारी यह मामला एक बार फिर शहरी विकास बनाम मानव अधिकार की बहस को हवा दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई जुलाई में होगी, लेकिन तब तक यह सवाल ज़रूर बना रहेगा – क्या बुलडोज़र संवेदनशीलता से ज्यादा ताकतवर हो गया है?
क्या आपको लगता है कि बटला हाउस के निवासियों के साथ न्याय हो रहा है? नीचे कमेंट करें और अपनी राय दें।
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