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प्रदूषण के नाम पर हाहाकार! क्या BJP-AAP की खींचतान में फंस गया आम आदमी का वाहन?

दिल्ली-NCR में 1 नवंबर से ELV वाहनों पर लगेगा बैन, लाखों लोग प्रभावित। AAP ने BJP पर साधा निशाना, कहा- जनता के लिए बड़ी मुसीबत। जानिए इस प्रतिबंध का आप पर क्या होगा असर और क्या हैं समाधान!

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Ajit Kumar Pandey
प्रदूषण के नाम पर हाहाकार! क्या BJP-AAP की खींचतान में फंस गया आम आदमी का वाहन? | यंग भारत न्यूज

प्रदूषण के नाम पर हाहाकार! क्या BJP-AAP की खींचतान में फंस गया आम आदमी का वाहन? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।दिल्ली और NCR में रहने वालों की चिंताएं एक बार फिर बढ़ गई हैं। प्रदूषण की मार झेल रही राजधानी को अब एक नए झटके का सामना करना पड़ सकता है। दिल्ली AAP अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने भारतीय जनता पार्टी पर गंभीर आरोप लगाते हुए दावा किया है कि उनकी नीतियों के कारण दिल्ली और आसपास के शहरों में लाखों लोगों के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। यह मुसीबत कोई और नहीं, बल्कि 1 नवंबर से लागू होने वाला ELV वाहनों पर बैन है, जिसके बारे में CAQM (Commission for Air Quality Management) ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं।

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CAQM ने 1 नवंबर से दिल्ली सहित गाजियाबाद, गुरुग्राम, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद और सोनीपत में ELV (End-of-Life Vehicles) वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है। सौरभ भारद्वाज का कहना है कि दिल्ली की भाजपा सरकार ने CAQM को पत्र लिखकर कहा है कि वे जो कर रहे हैं वह सही है और प्रदूषण इसी तरह कम होगा। यह बयान उन लाखों वाहन मालिकों के लिए चिंता का विषय है जिनके वाहन इस श्रेणी में आते हैं। क्या दिल्ली सरकार ने जनता के हित को दरकिनार कर दिया है, या यह कदम वाकई प्रदूषण रोकने की दिशा में एक जरूरी पहल है?

ELV बैन: क्या है यह और किसे होगा असर?

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ELV वाहन वे होते हैं जिन्होंने अपनी निर्धारित आयु पूरी कर ली होती है। आमतौर पर, पेट्रोल वाहनों के लिए 15 साल और डीजल वाहनों के लिए 10 साल की समय सीमा निर्धारित की गई है। इस नियम का मकसद पुराने और अधिक प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को सड़कों से हटाना है। हालांकि, दिल्ली और NCR में ऐसे वाहनों की संख्या लाखों में है, और अचानक से इन पर प्रतिबंध लगने से आम लोगों की जेब पर सीधा असर पड़ेगा। कई परिवार ऐसे हैं जो अभी भी इन्हीं वाहनों पर निर्भर हैं।

एक अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में ही ऐसे लाखों वाहन हैं जो इस दायरे में आते हैं। सोचिए, एक मध्यमवर्गीय परिवार जिसने अपनी गाढ़ी कमाई से एक वाहन खरीदा हो, और अब उसे अचानक सड़क से हटाना पड़े, तो उसके सामने कितनी बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी! यह सिर्फ वाहनों को हटाने का मामला नहीं है, बल्कि लाखों लोगों के लिए आजीविका और दैनिक जीवन के साधन छिन जाने का सवाल है।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप: कौन है जिम्मेदार?

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सौरभ भारद्वाज के बयान ने इस मुद्दे को एक राजनीतिक मोड़ दे दिया है। उन्होंने सीधे तौर पर भाजपा को इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि भाजपा ने दिल्ली के लोगों के हितों की अनदेखी करते हुए CAQM के फैसले का समर्थन किया है। लेकिन क्या यह सिर्फ राजनीतिक बयानबाजी है या इसमें कुछ सच्चाई है?

दिल्ली हमेशा से प्रदूषण की समस्या से जूझती रही है, और सरकारें इस पर नियंत्रण पाने के लिए कई कदम उठाती रही हैं। हालांकि, हर कदम का जनता पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। इस बार, यह प्रतिबंध सीधे तौर पर लाखों परिवारों को प्रभावित करेगा। भाजपा का पक्ष अभी स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने CAQM को क्या लिखा है, लेकिन सौरभ भारद्वाज के आरोपों से यह मुद्दा और गरमा गया है। क्या भाजपा सरकार इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए जनता को विश्वास में लिए बिना ही ऐसे फैसले ले रही है?

समाधान की राह: जनता के लिए क्या विकल्प?

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जब 1 नवंबर को यह प्रतिबंध लागू हो जाएगा, तो लाखों लोगों के सामने अपने ELV वाहनों को स्क्रैप कराने की चुनौती होगी। सवाल यह है कि सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए क्या योजना बनाई है? क्या स्क्रैपेज पॉलिसी को इस तरह से बनाया गया है कि यह आम आदमी के लिए फायदेमंद हो?

स्क्रैपेज सेंटर: क्या पर्याप्त स्क्रैपेज सेंटर उपलब्ध होंगे ताकि लोग आसानी से अपने वाहनों को स्क्रैप करा सकें?

वित्तीय सहायता: क्या सरकार उन लोगों के लिए कोई वित्तीय सहायता या प्रोत्साहन देगी जो नए वाहन खरीदने के लिए मजबूर होंगे?

जागरूकता अभियान: क्या जनता को इस प्रतिबंध के बारे में पर्याप्त रूप से सूचित किया गया है, ताकि वे समय रहते तैयारी कर सकें?

इन सवालों के जवाब ही यह तय करेंगे कि यह प्रतिबंध कितना सफल होता है और जनता को कितनी परेशानी का सामना करना पड़ता है। सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर पारदर्शिता बरते और जनता के हित में उचित कदम उठाए।

यह मुद्दा सिर्फ दिल्ली का नहीं, बल्कि गाजियाबाद, गुरुग्राम, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद और सोनीपत जैसे पड़ोसी शहरों का भी है। ये सभी शहर दिल्ली के प्रदूषण से प्रभावित होते हैं, और यहां भी ELV वाहनों की संख्या काफी अधिक है। इस प्रतिबंध का असर इन सभी क्षेत्रों पर पड़ेगा।

यह एक जटिल समस्या है जहां प्रदूषण नियंत्रण और लोगों की आजीविका के बीच संतुलन साधना बेहद जरूरी है। एक तरफ पर्यावरण को बचाने की बात है, तो दूसरी तरफ लाखों परिवारों के सामने आर्थिक संकट का खतरा मंडरा रहा है। क्या सरकारें इस संतुलन को साध पाएंगी? क्या कोई ऐसा समाधान निकल पाएगा जिससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहे और लोग भी आर्थिक रूप से परेशान न हों?

यह समय है जब सभी हितधारकों, चाहे वह सरकार हो, पर्यावरणविद हों, या आम जनता, सभी को मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान खोजना होगा। केवल प्रतिबंध लगाने से समस्या का समाधान नहीं होगा, बल्कि इसके साथ लोगों की समस्याओं को भी समझना और उनका निवारण करना होगा।

दिल्ली की सड़कों पर वाहनों की संख्या कम करने और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए अन्य उपायों पर भी विचार करना आवश्यक है, जैसे सार्वजनिक परिवहन को और मजबूत करना, साइकिलिंग को बढ़ावा देना और पैदल चलने के लिए सुरक्षित मार्ग बनाना। यह एक साझा जिम्मेदारी है, और सभी को मिलकर काम करना होगा।

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