नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।
गंगा नदी के किनारे हो रहे अवैध निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जाहिर की है। अदालत ने केंद्र सरकार और बिहार सरकार दोनों को निर्देश दिया है कि वे इस मुद्दे पर अब तक उठाए गए कदमों की वस्तुनिष्ठ रिपोर्ट (Status Report) चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करें। न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने सरकारों से यह जानना चाहा कि गंगा के किनारे मौजूदा अतिक्रमणों की संख्या कितनी है, और इन्हें हटाने के लिए क्या योजना बनाई गई है। पीठ ने कहा कि हम यह समझना चाहते हैं कि गंगा नदी के तट पर हो रहे अवैध अतिक्रमण को हटाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर अब तक क्या-क्या कदम उठाए गए हैं और आगे की क्या कार्ययोजना है।
एनजीटी के आदेश को चुनौती
यह मामला पटना निवासी अशोक कुमार सिन्हा द्वारा दायर उस याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के 30 जून, 2020 के आदेश को चुनौती दी थी। सिन्हा की याचिका में कहा गया था कि गंगा के डूब क्षेत्रों में अवैध निर्माण और स्थायी अतिक्रमण बड़े पैमाने पर हो रहे हैं, लेकिन NGT ने बिना पर्याप्त जांच किए याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ता के वकील आकाश वशिष्ठ ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि गंगा के किनारे स्थित पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में बिना अनुमति के आवासीय कॉलोनियां, ईंट भट्टे और धार्मिक ढांचे बनाए जा रहे हैं, जिससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान हो रहा है, बल्कि बाढ़ के दौरान जान-माल का भी खतरा बढ़ गया है।
अदालत ने उठाए सवाल, मांगी स्पष्ट कार्ययोजना
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला केवल अवैध निर्माण का नहीं, बल्कि पर्यावरण सुरक्षा और गंगा नदी की पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा से भी जुड़ा है। कोर्ट ने अधिकारियों से पूछा कि इन अतिक्रमणों को हटाने की प्रक्रिया कब और कैसे शुरू की जाएगी, और आगे किन चरणों में यह कार्रवाई पूरी होगी। अदालत अब इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद करेगी।