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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्कः 2025 के असेंबली चुनाव में जीती बाजी हारने का मलाल राहुल गांधी के दिल पर हमेशा रहेगा। कांग्रेस की सरकार साफ बनती दिख रही थी लेकिन हुड्डा की मनमानी और गुटबाजी ने कांग्रेस का बेड़ा गर्क कर दिया। नतीजतन हाथ में आकर सरकार फिसल गई। हरियाणा की हार की वजह से राहुल गांधी और कांग्रेस की पोजीशन इंडिया गठबंधन के साथ दूसरे सूबों में कमजोर हुई। राहुल इस बात को बखूबी समझते हैं। उन्होंने अपने तरीके से हरियाणा को गुनहगारों को सजा देने का काम शुरू भी कर दिया है। हरियाणा के सीनियर नेताओं की जो लिस्ट जारी की गई है उसमें हुड्डा नंबर दो हैं तो रणदीप फेहरिस्त में काफी नीचे। यानि साफ है कि राहुल की गुडलिस्ट में न तो अब हुड्डा हैं और न ही रणदीप और कुमारी सैलजा।
हुड्डा की मनमानी की वजह से हरियाणा में पिछड़ी कांग्रेस
2025 के हरियाणा असेंबली चुनाव में सभी को उम्मीद थी कि बीजेपी के पटखनी देकर कांग्रेस सरकार बना लेगी। लेकिन जब नतीजे आए तो सभी भौचक रह गए। कांग्रेस नंबर गेम में बहुमत के आसपास भी नहीं थी। हार के बाद जब मंथन हुआ तो ज्यादातर लोगों का कहना था कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा सबसे बड़े खलनायक थे। उन्होंने आलाकमान को ठिकाने लगाने के लिए बहुत सारी ऐसी सीटों पर बागी खड़े कर दिए जहां कांग्रेस जीत रही थी। क्योंकि जो जीत रहा था वो हुड्डा के मनमाफिक नहीं था। हुड्डा नहीं चाहते थे कि उनका भी हाल अमरिंदर सिंह या वीरभद्र सिंह के परिवार जैसा न हो। उनको पता था कि सीटें लिमिट से ज्यादा आ गईं तो राहुल उनको सीएम नहीं बनाने वाले। इस वजह से उन्होंने बागियों को खड़ा कर दिया। उनका टारगेट कांग्रेस को इतनी सीट जिताने का था जहां आलाकमान के हाथ पूरी तरह से बंध जाएं।
सीनियर नेताओं की लिस्ट पिता पुत्र की दोयम दर्जे की जगह
खैर हार के बाद अब गांधी परिवार ने मन बना लिया है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा को उनकी जगह दिखाई जाए। कांग्रेस के ताजातरीन कदमों पर नजर डालें तो लगता ऐसा ही है कि राहुल गांधी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तवज्जो देने के मूड़ में नहीं हैं। हरियाणा के सीनियर लीडर्स की जो फेहरिस्त कांग्रेस ने जारी की है उसमें नंबर 1 पर उदयभान को रखा गया है। वो कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं। उनके बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा का नंबर आता है। फिर लिस्ट में क्रमवार चौधरी बिरेंद्र सिंह, धरमपाल सिंह मलिक, बलबीर पाल शाह, फूल चंद मुलाना (सभी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष), कुमारी सैलजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला (दोनों कांग्रेस महासचिव), दीपेंद्र सिंह हुड्डा, महेंद्र प्रताप सिंह, अजय सिंह यादव, चेतन चौहान, चिरंजीव राव, प्रदीप नरवाल, विनीत पूनिया के अतिरिक्त रिटायर्ड कर्नल रोहित चौधरी, सुनील पंवार के नाम शामिल हैं। लिस्ट को देखें तो साफ है कि हुड्डा पिता पुत्र की अहमियत पहले से काफी कम कर दी गई है। बड़े हुड्डा जहां नंबर दो पर धकेल दिए गए हैं वहीं छोटे हुड्डा को रणदीप से कमतर नेता माना गया है। पहले ही राहुल गांधी ये संकेत दे चुके हैं कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा इस बार भूपेंद्र सिंह हुड्डा को नहीं देंगे। लंबे समय से ये सीट खाली है। हुड्डा लाबिंग भी कर रहे हैं अलबत्ता राहुल गांधी इसे लेकर खामोश हैं।
रणदीप सुरजेवाला के भी पर कतरे, सीनियारिटी में नीचे धकेला
लिस्ट की खास बात ये भी है कि रणदीप सिंह सुरजेवाला को आलाकमान पहले जैसी तरजीह नहीं दे रहा है। हालांकि तेजी से आगे बढ़ने के साथ रणदीप बहुत तेजी से नीचे भी उतरे। पहले वो कांग्रेस की मीडिया सेल के चेयरमैन थे। उसके बाद राजस्थान से राज्यसभा भेजे गए। उनका राजस्थान से ऊपरी सदन जाना उनके बढ़ते कद का परिचायक था। आलाकमान नहीं चाहता था कि उनको हरियाणा से रास की टिकट दी जाए क्योंकि तब वो हुड्डा के हवाले हो जाते। 2019 असेंबली चुनाव से ऐन पहले जींद में हुए उपचुनाव में राहुल ने रणदीप को मैदान में उतारा था। तब माना गया था कि रणदीप चुनाव निकाल ले जाते हैं तो सीएम पद के दावेदार हो जाएंगे।
कभी राहुल गांधी के बेहद करीब थे रणदीप, अचानक फिसले
अलबत्ता हुड्डा ने ऐसा दांव खेला कि रणदीप चारों खाने चित्त हो गए। जीत हार तो छोड़िए वो तीसरे नंबर पर थे। उन्होंने आरोप जड़ा कि हु्ड्डा ने उनको हरवाया है। हालांकि 2019 के असेंबली चुनाव में वो अपनी परंपरागत सीट कैथल से भी चुनाव हार गए। लेकिन उसके बावजूद उनका कद तेजी से कांग्रेस में बढ़ता रहा। वो रास पहुंचने के साथ कांग्रेस के सहासचिव बने और फिर मीडिया सेल के चेयरमैन। कुछ समय तक खासी सुर्खियों में रहने के बाद उनके कद में तेजी से गिरावट देखी गई। पहले मीडिया सेल गई और फिर राहुल के नजदीक भी नहीं रहे। 2025 का हरियाणा असेंबली चुनाव हुआ तो रणदीप का नामोनिशान तक नहीं दिखा। सीनियर कांग्रेसियों की लिस्ट में जिस तरह से उनको नीचे धकेला गया है उससे साफ है कि राहुल गांधी के पसंदीदा नेताओं की फेहरिस्त से वो गायब हो चुके हैं। खास बात है कि हुड्डा के बाद नंबर तीन पर चौधरी बिरेंद्र सिंह को जगह दी गई है। जबकि बिरेंद्र 2014 के बाद बीजेपी में चले गए थे। हुड्डा और रणदीप की तरह बिरेंद्र सिंह जाट तबके की राजनीति करते हैं। यानि साफ है कि रणदीप को अब राहुल गांधी उतना असरदार नेता नहीं मान रहे। उनसे ऊपर बिरेंद्र सिंह की जगह है। bhupinder hooda | Rahul
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