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क्या खत्म हो जाएगी तिब्बतियों की असली पहचान? जानिए - चीन की 'छिपी रणनीति', पेनपा शेरिंग का बड़ा खुलासा!

सिक्योंग पेनपा शेरिंग ने चीन पर तिब्बतियों की पहचान मिटाने का आरोप लगाया। तिब्बती भाषा और धर्म को निशाना बनाकर चीन तिब्बत की सांस्कृतिक जड़ों को खत्म कर रहा है। जानें कैसे चीन की नीतियां तिब्बत के भविष्य पर खतरा बन रही हैं।

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Ajit Kumar Pandey
क्या खत्म हो जाएगी तिब्बतियों की असली पहचान? जानिए - चीन की 'छिपी रणनीति', पेनपा शेरिंग का बड़ा खुलासा! | यंग भारत न्यूज

क्या खत्म हो जाएगी तिब्बतियों की असली पहचान? जानिए - चीन की 'छिपी रणनीति', पेनपा शेरिंग का बड़ा खुलासा! | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष, सिक्योंग पेनपा शेरिंग ने चीन पर तिब्बती लोगों की पहचान को खत्म करने का गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि चीनी सरकार की सभी नीतियां और कार्यक्रम तिब्बती भाषा और धर्म को मिटाने पर केंद्रित हैं, जो तिब्बतियों की मूल पहचान हैं। यह खुलासा तिब्बत के भविष्य पर बड़े सवाल खड़े करता है।

धर्मशाला से आई यह खबर बताती है कि तिब्बत और चीन के बीच संबंध लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं। सिक्योंग पेनपा शेरिंग के मुताबिक, चीनी सरकार, विशेषकर शी जिनपिंग के नेतृत्व में, तिब्बती संस्कृति और विरासत पर सीधा हमला कर रही है। यह सिर्फ राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि लाखों लोगों की सांस्कृतिक जड़ों को बचाने की लड़ाई है। क्या चीन वाकई तिब्बतियों की पहचान को खत्म करने पर तुला है?

तिब्बती भाषा और तिब्बती धर्म (बौद्ध धर्म) सदियों से तिब्बती समाज की नींव रहे हैं। ये केवल संचार या पूजा के माध्यम नहीं, बल्कि तिब्बती लोगों के इतिहास, दर्शन और जीवनशैली का अभिन्न अंग हैं। सिक्योंग पेनपा शेरिंग का यह बयान ऐसे समय में आया है जब चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी 'सांस्कृतिक एकीकरण' की नीतियों को लेकर आलोचना का सामना कर रहा है।

चीन की 'सांस्कृतिक एकीकरण' की आड़ में क्या हो रहा है?

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पेनपा शेरिंग के अनुसार, चीन की नीतियां 'एक राष्ट्र, एक संस्कृति' के सिद्धांत पर आधारित हैं, जिसका खामियाजा अल्पसंख्यक समुदायों को भुगतना पड़ रहा है। तिब्बत में कई रिपोर्ट्स सामने आई हैं जिनमें बच्चों को उनके घरों से दूर सरकारी स्कूलों में पढ़ने के लिए मजबूर करने और पारंपरिक शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है।

भाषा का दमन: तिब्बती स्कूलों में मंदारिन चीनी को अनिवार्य किया जा रहा है, जिससे तिब्बती भाषा का उपयोग घट रहा है। यह तिब्बती बच्चों को उनकी मातृभाषा और सांस्कृतिक विरासत से दूर कर रहा है।

धार्मिक स्वतंत्रता पर अंकुश: मठों और बौद्ध संस्थानों पर कड़े सरकारी नियम लगाए जा रहे हैं। धार्मिक अनुष्ठानों और शिक्षाओं पर नियंत्रण स्थापित किया जा रहा है। बौद्ध भिक्षुओं और ननों को 'पुनः-शिक्षा' शिविरों से गुजरना पड़ रहा है।

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आप्रवासन और जनसांख्यिकीय बदलाव: चीन तिब्बत में हान चीनी आबादी को प्रोत्साहित कर रहा है, जिससे तिब्बती लोग अपने ही घर में अल्पसंख्यक बनने के कगार पर हैं। यह उनकी सामाजिक और आर्थिक संरचना को प्रभावित कर रहा है।

ये सभी कदम सीधे तौर पर तिब्बतियों की पहचान पर हमला करते हैं, जैसा कि सिक्योंग पेनपा शेरिंग ने जोर देकर कहा है। उनका मानना है कि चीन का अंतिम लक्ष्य तिब्बत को अपनी मुख्यधारा में पूरी तरह से आत्मसात करना है, भले ही इसके लिए तिब्बती संस्कृति को नष्ट करना पड़े।

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