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Delhi University में 'हिंदी काव्य आलोचना' पर दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन

दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी महिला महाविद्यालय और श्याम लाल महाविद्यालय (सांध्य) के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

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Ranjana Sharma
Delhi University
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। 

दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस, श्यामा प्रसाद मुखर्जी महिला महाविद्यालय और श्याम लाल महाविद्यालय (सांध्य) के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय था "हिंदी काव्य आलोचना: तब और अब" इसमें कविता और आलोचना के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में तीनों महाविद्यालयों के प्राचार्यों ने कार्यक्रम की सार्थकता पर प्रकाश डाला। प्रो. बिजयलक्ष्मी नंदा, प्रो. साधना शर्मा और प्रो. नचिकेता सिंह ने स्वागत भाषण में ऐसे आयोजनों के महत्व को रेखांकित किया।

आलोचना और कविता एक-दूसरे की सहचरी

बीज वक्तव्य में वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी ने आलोचना के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि आलोचना और कविता एक-दूसरे की सहचरी हैं। आलोचना में कविता के गहरे निहितार्थों को सामने लाने की क्षमता होनी चाहिए और आलोचकों का मुख्य उद्देश्य नए रास्तों को उद्घाटित करना है। प्रथम सत्र में प्रो. गोपेश्वर सिंह ने 'भक्ति काव्य' के अखिल भारतीय स्वरूप का विश्लेषण किया। उन्होंने आलोचना के पारंपरिक पैमानों को समयानुसार परखने और उनमें नयापन लाने की आवश्यकता पर जोर दिया। प्रो. सुधीश पचौरी ने रीतिकाव्य आलोचना पर चर्चा करते हुए कहा कि नायिका के मानसिक द्वंद्वों को उजागर करना ज्यादा महत्वपूर्ण है बजाय इसके कि सिर्फ नायिका भेदों का वर्णन किया जाए।

नई कविता अभी भी अच्छे आलोचकों की तलाश में

दूसरे दिन के दूसरे सत्र में प्रो. रामेश्वर राय ने छायावादी काव्य के प्रति हिंदी आलोचना के पूर्वाग्रहों को विस्तार से रेखांकित किया। उन्होंने प्रेम के विभिन्न पक्षों को विभिन्न संदर्भों से जोड़कर समझाया। वहीं प्रो. नंदकिशोर आचार्य ने नई कविता की आलोचना पर चर्चा करते हुए कहा कि  नई कविता अभी भी अच्छे आलोचकों की तलाश में है। 

कविता की स्त्री भाषा का विश्लेषण किया

संगोष्ठी के तृतीय और अंतिम सत्र में दलित चिंतक जयप्रकाश कर्दम ने दलित साहित्य के प्रति आलोचकों के पूर्वाग्रहों पर अपने विचार व्यक्त किए और विमर्श की राजनीति पर भी बात की। अंत में दिल्ली विश्वविद्यालय की विभागाध्यक्ष प्रो. सुधा सिंह ने कविता की स्त्री भाषा और उसके सामाजिक परिप्रेक्ष्य पर गहन विश्लेषण किया, जिसमें भक्तिकाव्य से लेकर समकालीन विमर्शों से उपजी कविताओं का विस्तार से अध्ययन किया गया। कार्यक्रम के समापन पर डॉ. संगीता राय ने इस संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए तीनों महाविद्यालयों के प्राचार्यों, विभागाध्यक्षों, संयोजकों, और सभी शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों का धन्यवाद किया। विशेष रूप से श्यामलाल महाविद्यालय (सांध्य) के हिंदी विभाग के डॉ. प्रमोद कुमार द्विवेदी को इस आयोजन के मुख्य सूत्रधार के रूप में धन्यवाद ज्ञापित किया।

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