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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने सरकारी नौकरियों में 70% आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन को नोटिस जारी किया है। अदालत ने शासन को चार हफ्तों में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
याचिका में क्या कहा गया?
जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने यह आदेश याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जिन वर्गों को 70% आरक्षण दिया गया है, उनकी जनसंख्या सिर्फ 30% है। इससे सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए केवल 30% पद ही बचते हैं। याचिका में जम्मू-कश्मीर आरक्षण अधिनियम 2004 की धारा 3, 4, 6, 8 और 9 तथा आरक्षण नियम 2005 की कई धाराओं को असंवैधानिक बताया गया है। इसके अलावा 2019 से 2024 के बीच जारी भर्ती आदेशों को भी चुनौती दी गई है।
क्रीमी लेयर को बाहर करने की मांग
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि आरक्षण का लाभ केवल जरूरतमंदों तक सीमित होना चाहिए। क्रीमी लेयर (समृद्ध वर्ग) को इसमें से बाहर किया जाए। साथ ही एक ही परिवार को केवल एक पीढ़ी तक आरक्षण का लाभ देने की मांग की गई।
याचिका के मुख्य बिंदु
- सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को OBC के रूप में परिभाषित करने की मांग।
- केंद्र सरकार की आरक्षण नीति को लागू करने की अपील।
- समान अवसर देने और आरक्षण का तर्कसंगत अनुपात तय करने की मांग।
आरक्षण अधिनियम 2004 की विवादित धाराएं:
- धारा 3: तय करती है कि किन वर्गों को आरक्षण मिलेगा, लेकिन सीमा 50% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
- धारा 4: आरक्षण की सीमा और क्षेत्रों (नौकरी, शिक्षा) में इसके इस्तेमाल की परिभाषा।
- धारा 6: क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखती है।
- धारा 8: गलत जानकारी देकर लाभ लेने वालों पर कार्रवाई।
- धारा 9: सरकार को नियम बनाने का अधिकार।
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