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रांची विश्वविद्यालय में करमा पर्व का धूमधाम से आयोजन, जनजातीय संस्कृति और परंपरा का संगम

रांची विश्वविद्यालय में करमा पर्व हर्षोल्लास और परंपरा के साथ मनाया गया। जनजातीय कला-संस्कृति का प्रदर्शन हुआ। कुलपति डॉ. डीके सिंह ने पर्व को सामाजिक एकजुटता, भाईचारे और प्रकृति संरक्षण का प्रतीक बताया।

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MANISH JHA
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रांची वाईबीएन डेस्क : झारखंड की पहचान माने जाने वाले करमा पर्व का आयोजन बुधवार को रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा संकाय में पूरे हर्षोल्लास और पारंपरिक रंग में किया गया। यह पर्व न केवल जनजातीय समाज की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक एकजुटता और भाईचारे का भी प्रतीक है।

परंपरा और आधुनिकता का संगम

कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय परिसर में परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम देखने को मिला। रामदयाल मुंडा अखरा में करमा पूजा का आयोजन किया गया, जहां छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकों ने मिलकर जनजातीय संस्कृति का प्रदर्शन किया। करमा नृत्य और पारंपरिक गीतों ने माहौल को और अधिक जीवंत बना दिया। 

मुख्य अतिथि का संबोधन

इस मौके पर विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति डॉ. डीके सिंह मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे। उन्होंने करमा पर्व की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह त्योहार जनजातीय संस्कृति की आत्मा है। यह पर्व हमें प्रकृति से जुड़ने, पेड़-पौधों की रक्षा करने और समाज में प्रेम तथा भाईचारे को बढ़ाने का संदेश देता है। उन्होंने छात्रों और शिक्षकों से इस सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने और नई पीढ़ी तक पहुंचाने की अपील की।

करमा पर्व का सांस्कृतिक महत्व

करमा पर्व झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और मध्यप्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है। खासकर झारखंड में यह पर्व जनजातीय समाज की पहचान और उनकी जीवन शैली का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। प्रकृति पूजा और सामूहिक नृत्य-गान इसकी सबसे बड़ी विशेषता है।

सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ाव

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रांची विश्वविद्यालय में आयोजित यह समारोह इस बात का प्रतीक रहा कि कैसे आधुनिक शैक्षणिक संस्थान भी अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रह सकते हैं। करमा पर्व जैसे अवसर न केवल जनजातीय छात्रों को अपनी परंपरा से जोड़ते हैं, बल्कि अन्य छात्रों और शिक्षकों को भी आदिवासी समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराते हैं।

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