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MP News: दो जजों ने की एक सी खता, एक की गई नौकरी, दूसरे को मामूली सजा, जानिए पूरी कहानी

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल जज क्लास 2 महेंद्र सिंह तरम को नौकरी से हटाने के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। एक और जज सिद्धार्थ शर्मा ने भी ऐसी ही गलती की थी, लेकिन उन्हें बहुत कम सजा दी गई थी।

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Shailendra Gautam
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भोपाल, वाईबीएन डेस्क।मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल जज क्लास 2 महेंद्र सिंह तरम को नौकरी से हटाने के फैसले पर अपनी मुहर लगा दी है। तरम की सेवाएं 2014 में समाप्त कर दी गई थीं। 2016 में उन्होंने हाईकोर्ट (High Court) के सामने पेश होकर अपना पक्ष रखा था। फैसला प्रतिकूल आने पर तरम ने उसी साल के दौरान हाईकोर्ट में रिट दायर की थी। जस्टिस सुरेश कुमार कैट और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि तरम को नौकरी से हटाने का फैसला बिलकुल दुरुस्त है। उसने जो हरकत की वो गलत थी। 

आपराधिक मामले के आरोपी को कर दिया बरी, फैसला नहीं लिखा

महेंद्र सिंह तरम पर आरोप है कि अपनी अदालत में विचाराधीन तीन आपराधिक मामलों में आरोपी को बरी कर दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने आरोपी के खिलाफ दो अन्य मामले adjourned भी कर दिए। लेकिन इसको लेकर उन्होंने लिखित में कोई फैसला नहीं दिया। 2012 में औचक निरीक्षण के दौरान ये मामला सामने आया तो बखेड़ा खड़ा हो गया। प्रशासनिक तंत्र ने 2014 में तरम की सेवाएं समाप्त करने का फैसला लिया। तरम ने अपने बचाव में कहा था कि काम का बोझ ज्यादा था और वो निजी तौर पर तनाव ग्रस्त थे। इस वजह से ये गलती हो गई। उनकी अपील थी कि हाईकोर्ट उनके हालातों पर गौर करके नौकरी फिर से बहाल कर दे। 

दूसरे जज सिद्धार्थ शर्मा ने भी की थी ऐसी ही गलती

तरम ने अपनी याचिका में हाईकोर्ट के सामने दूसरे सिविल जज सिद्धार्थ शर्मा के केस को भी सामने रखा। सिद्धार्थ ने भी दो मामलों में आरोपी को बरी किया था, लेकिन लिखित में फैसला नहीं दिया था। अदालत के प्रशासनिक तंत्र ने सिद्धार्थ को सजा तो दी पर बहुत कम। उनके केवल दो इंक्रीमेंट रोके गए थे। जबकि तरम की नौकरी चली गई। तरम का कहना था कि जब दो जजों ने एक सी गलती की तो सजा अलग-अलग कैसे हो सकती है। लिहाजा उसे भी सिद्धार्थ जैसी सजा दी जाए।   

फैसले में बोला हाईकोर्ट- दोनों मामलों की तुलना नहीं

जस्टिस सुरेश कुमार कैट और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने तरम सिंह की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि दोनों मामले एक जैसे नहीं हैं। हालांकि हाईकोर्ट ने माना कि दूसरे जज सिद्धार्थ शर्मा ने भी ऐसी ही गलती की थी। उन्होंने भी आरोपी को बरी तो किया पर लिखित में फैसला नहीं दिया और ना ही रिकार्ड रूम में केस से जुड़े दस्तावेज जमा कराए। लेकिन उन्होंने जिन दो मामलों में आरोपी को बरी किया वो सिविल थे। तरम की गलती को सिद्धार्थ के जैसा नहीं माना जा सकता।

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