/young-bharat-news/media/media_files/2025/06/29/devendra-fadnavis-2025-06-29-19-56-54.jpg)
मुंबई, वाईबीएन डेस्क। महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर जारी सियासी जंग के बीच महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार ने अपने कदम वापस खींच लिए हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में तीन भाषा नीति से संबंधित दोनों सरकारी आदेश (जीआर) को रद्द करने का निर्णय लिया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि हमने राज्य में मराठी को अनिवार्य किया है और हिंदी को वैकल्पिक भाषा बनाया है।
सुझाव देने के लिए एक समिति गठित
साथ ही मुख्यमंत्री फडणवीस ने यह भी घोषणा की कि राज्य में तीन भाषा नीति को लागू करने को लेकर सुझाव देने के लिए एक समिति गठित की जाएगी, जो इस मुद्दे पर अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपेगी। मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की जाएगी और उसकी रिपोर्ट के बाद निर्णय लिया जाएगा।
उद्धव ठाकरे पर जमकर निशाना साधा
उन्होंने शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे पर जमकर निशाना साधा। फडणवीस ने कहा की पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ही अपने कार्यकाल के दौरान राज्य में तीन भाषा नीति को लागू करने कि दिशा में अहम फैसला लिया था और अब खुद ही इसका विरोध कर रहे है। उनकी पार्टी के उपनेता ने ही जो उस समय कि समिति के सदस्य थे, उन्होंने ही हिंदी और अंग्रेजी को दूसरी भाषा के तौर पर राज्य में बारहवीं तक पढ़ाने की सिफारिश की थी।
उद्धव ठाकरे और राज ने की थी विरोध मार्च की घोषणा
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा के विरोध में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने 5 जुलाई को मुंबई में संयुक्त विरोध मार्च निकालने का ऐलान किया था। हालांकि, सत्तारूढ़ दलों ने इसे मराठी वोट बैंक के लिए ठाकरे भाईयों का नया चुनावी स्टंट करार दिया। त्रिभाषा नीति पर विरोध के बाद महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी अनिवार्यता वाले आदेश रद्द किए। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नई समिति बनाई। शिवसेना-मनसे 5 जुलाई को आंदोलन पर अब भी अडिग है।
क्या मार्च से घबराई सरकार
बता दें कि पिछले कुछ दिनों में राज्य की राजनीति में ‘हिंदी थोपने’ के मुद्दे पर जबरदस्त गरमी देखी गई। शिवसेना (उद्धव गुट) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने मिलकर इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह आदेश की प्रतियां जलाकर विरोध जताया और 5 जुलाई को बड़े आंदोलन की घोषणा की गई। उद्धव ठाकरे ने तो यहां तक कहा कि “हम हिंदी के खिलाफ नहीं, लेकिन जबरन थोपे जाने वाली शक्ति के खिलाफ हैं।