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"30 जून को हुई मौत, 5 दिन बाद भी FIR नहीं! योगी राज! में किसे बचा रहा है मेरठ प्रशासन?" | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ की छवि एक सख्त प्रशासक की है। अवैध निर्माण, माफिया और प्रशासनिक लापरवाही पर कई बार "बुलडोजर एक्शन" भी हुआ है। लेकिन, शकूर नगर हादसे के बाद का सन्नाटा यह बता रहा है कि जमीनी हकीकत कुछ और है। पीड़ितों के परिजन दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, लेकिन अब तक कोई जिम्मेदार अफसर या ठेकेदार जेल नहीं गया। अरे! जेल जाने की बात तो दूर एफआईआर भी नहीं दर्ज की गई। पीड़ितों को बेसहारा छोड़ दिया गया है। गजब है मेरठ का जिला प्रशासन, जिसको सीएम योगी का डर नहीं, आम जनता को ये अधिकारी क्या न्याय दिलाएंगें।
अब सवाल उठने लगा है, क्या अफसरों की मिलीभगत से दबी जा रही है कार्रवाई? स्थानीय लोगों का दावा है कि कॉलोनी में बिजली और पानी का इंतजाम "मोटा पैसा खिलाकर" कराया गया था। अब जब हादसा हुआ है, तो प्रशासन चुप और कसूरवार बेफिक्र हैं।
लोग योगी सरकार और स्थानीय जिला प्रशासन से सवाल पूछ रहे हैं —
"अगर आम आदमी की गलती होती, तो क्या पुलिस 5 दिन चुप रहती?"
"क्या सरकारी विभागों की लापरवाही को यूं ही भुला दिया जाएगा?"
प्रदेश सरकार और मेरठ जिला प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस बयान सामने नहीं आया है।
परिजनों को अभी तक मुआवजा या न्याय का भरोसा नहीं मिला है।
अब निगाहें सीएम योगी पर हैं — क्या वो इस हादसे में दोषियों पर बुलडोजर चलवाएंगे या सिस्टम का भ्रष्ट चक्र चलता रहेगा?
शकूर नगर हादसा एक चेतावनी है कि जब सिस्टम ही कसूरवारों को बचाने में लग जाए, तो आम आदमी की जिंदगी कितनी सस्ती हो जाती है। अब वक्त है कार्रवाई का — नहीं तो अगली मौत किसकी होगी, कोई नहीं जानता।
आपको बता दें कि वेस्ट यूपी के मेरठ में 30 जून को हुआ शकूर नगर हादसा अब पूरे प्रदेश में सिस्टम की पोल खोल रहा है। अवैध कॉलोनी में हाई वोल्टेज बिजली लाइन की चपेट में आकर मेरठ नगर निगम (MEDA) के कर्मचारी की मौत हो गई, जबकि तीन अन्य गंभीर रूप से झुलस गए।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 5 दिन बाद भी FIR दर्ज नहीं हुई। न कोई गिरफ्तारी, न कोई सस्पेंशन। सवाल ये है — क्या सीएम योगी के राज में भी सिस्टम कसूरवारों को बचाने में जुटा है?
जिस शकूर नगर कॉलोनी में हादसा हुआ, वो पूरी तरह अवैध है। न नक्शा पास, न बुनियादी सुविधा, फिर भी वहां बिजली कनेक्शन, सड़कों का निर्माण, और घर बिकने की पूरी छूट दी गई। जानकारों का दावा है कि इस कॉलोनी का निर्माण पिछले कई सालों से चल रहा था। आखिर क्यों MDA (मेरठ विकास प्राधिकरण) और स्थानीय पुलिस सब कुछ जानते हुए भी चुप्पी साधे रहे।
इन जिम्मेदारों पर किसी में कार्रवाई करने की हिम्मत है?
बिजली विभाग (PVVNL): जिसने हाई वोल्टेज लाइन की सुरक्षा अनदेखी की।
प्राधिकरण (MDA): जिसने अवैध निर्माण को नजरअंदाज किया।
स्थानीय पुलिस: जो अवैध गतिविधियों के बावजूद कार्रवाई से बचती रही।
नगर निगम: जिसके कर्मचारी को बिना सुरक्षा उपकरणों के भेजा गया।
वैसे तो कसूरवारों की लंबी फौज है लेकिन कार्रवाई का अब तक कुछ पता नहीं है। मसला लिसाड़ीगेट के शकूरनगर में 30 जून के हादसे के लिए कसूरवारों की पूरी फौज मौजूद है, लेकिन इसको लेकर जब कार्रवाई की बात आती है तो कार्रवाई करने वाले हकलाते नजर आते हैं।
दरअसल, जिन्हें कार्रवाई करनी है वो बजाए कार्रवाई के कसूरवारों को बचाने में लगे हैं। शकूरनगर इलाके में जिस कालोनी में हादसे में मेडा के एक कर्मचारी की मौत और तीन कर्मचारी झुलसे उसके लिए पीवीवीएनएल यानि बिजली महकमा और मेरठ विकास प्राधिकारण और पुलिस के कर्मचारियों की पूरी फौज मौजूद है, लेकिन घटना के पांच दिन बाद भी किसी के भी खिलाफ अभी तक कार्रवाई नहीं की गयी है। यहां तक की एफआईआर भी नहीं।
लेटर डकार गए बिजली अफसर
प्राधिकरण वीसी अभिषेक पाण्डेय के कार्यकाल के दौरान एक पत्र पीवीवीएनएल एमडी को भेजा गया था, जिसमें कहा गया था कि किसी भी अवैध कालोनी को प्राधिकरण की एनओसी के बगैर बिजली का कनेक्शन ना दिया जाए, लेकिन जिस कालोनी में दुखद हादसा हुआ है उसमें ना केवल कनेक्शन दिए गए बल्कि बड़े स्तर पर कनैक्शन दिए गए। बाकायदा 11 हजार की लाइन खिंची गयी।
ट्रांसफार्मर लगाया दिया गया। जो मकान बन रहे थे, उनको भी कनेक्शन बांट दिए गए। यानि जो लेकर प्राधिकरण के वीसी की ओर से पीवीवीएनएल एमडी को भेजा गया उसका फ्यूज बिजली वालों ने ही उड़ा दिया। जब इसको लेकर सवाल किया गया तो अनआफिशियली कहकर इतना ही कहा गया कि जो रसीद कटा रहा है, एस्टीमेट पूरा जमा कर रहा है, उसको कनेक्शन ना देने की कोई वजह नहीं। रही कार्रवाई की बात तो अवैध कॉलोनियाें पर कार्रवाई की जिम्मेदारी है प्राधिकरण अफसरों की है, बिजली अफसरों का काम कनेक्शन देना है सो उन्होंने किया।
रातों रात नहीं काटी गयी अवैध कालोनी
शकूर नगर में जिस अवैध कालोनी में हादसे का चर्चा मेरठ से लेकर दिल्ली तक है, वो कालोनी रातों रात नहीं काट दी गयी। जानकारों की मानें तो अरसे से इसका काम चल रहा था। फिर ऐसा क्या हुआ कि एकाएक कालोनी ध्वस्त करने का ख्याल अफसरों को आ गया। इसको लेकर तमाम तरह की बातें अफसरों को लेकर कही जा रही हैं, वो बातें पर्दे में ही रहें या फिर तथाकथित जांच में यदि बाहर आ जाएं तो दूसरी बात है लेकिन प्राधिकरण के वीसी के नीचे के तमाम अफसरों पर ऊंगली उठायी जा रही है, यदि बातें वाकई सच है तो मामला बेहद गंभीर है और कसूरवारों की कतार में प्राधिकरण अफसर भी शामिल हैं। शासन का एक पुराना आदेश है, जिसके मुताबिक यदि कोई अवैध निर्माण होगा तो उस इलाके के थानेदार की जिम्मेदारी होगी, तो यह मान लिया जाए कि प्राधिकरण के अफसरों के साथ थानेदार ने भी जमीर का सौदा कर लिया। कहने का मतलब इतना भर है कि कसूरवारों की कमी नहीं लेकिन कार्रवाई का कुछ पता नहीं।
Meerut news | CM Yogi Adityanath