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कांग्रेस के बयान से आहत हुई पहलगाम हमले की पीड़िता, ऐशान्या का छलका दर्द

कानपुर की ऐशान्या द्विवेदी ने पी चिदंबरम के बयान पर कहा, पहलगाम हमला राजनीतिक मुद्दा नहीं, 26 परिवारों का राष्ट्रीय दर्द है। उन्होंने नेताओं से मानवीय संवेदना रखने की अपील की, याद दिलाया कि राहुल गांधी भी दुख बांटने आए थे।

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Ajit Kumar Pandey
कांग्रेस के बयान से आहत हुई पहलगाम हमले की पीड़िता, ऐशान्या का छलका दर्द | यंग भारत न्यूज

कांग्रेस के बयान से आहत हुई पहलगाम हमले की पीड़िता, ऐशान्या का छलका दर्द | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । पहलगाम आतंकी हमले में कानपुर के लाल शुभम द्विवेदी को खोने वाली ऐशान्या द्विवेदी का दर्द छलका है। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम के बयान पर उन्होंने करारा जवाब दिया है, जो हर हिंदुस्तानी को सोचने पर मजबूर कर देगा। यह सिर्फ 26 परिवारों का नहीं, बल्कि पूरे देश का साझा दर्द है, जिसे कोई राजनीतिक रंग नहीं दे सकता।

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए कायराना आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस हमले में कानपुर के शुभम द्विवेदी समेत 26 बेगुनाह लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। अभी घाव भरे भी नहीं थे कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम के एक बयान ने इस दर्द को फिर से कुरेद दिया। चिदंबरम के कथित बयान पर शुभम की पत्नी ऐशान्या द्विवेदी ने जो कुछ कहा, वह सिर्फ एक विधवा का आक्रोश नहीं, बल्कि देश के उन लाखों लोगों की आवाज़ है जो आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हैं।

ऐशान्या का सवाल सीधा और तीखा है: "मैं इन लोगों की मानसिक स्थिति नहीं समझ पाती हूं कि आपके देश में इतनी बड़ी घटना हुई और आप एक हिंदुस्तानी बन कर नहीं सोच पा रहे हैं।" उनके इन शब्दों में आतंकवाद से जूझ रहे भारत की आत्मा का दर्द छिपा है। यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक टिप्पणी नहीं है; यह उन परिवारों की वेदना है जिन्होंने अपनों को खोया है।

क्या भूल गए वो नेता, जो आंसू पोंछने आए थे?

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ऐशान्या ने अपने बयान में एक महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने बताया कि जब यह भयावह घटना घटी थी, तब कई नेता उनसे मिलने आए थे, जिनमें राहुल गांधी भी शामिल थे। ऐशान्या याद करती हैं, "वे महसूस कर रहे थे कि हम आतंकवादी हमले को महसूस करके आए हैं। वे हमारे साथ खड़े थे और उन्हीं के नेता इस प्रकार की बात कर रहे हैं..." यह विरोधाभास हैरान करने वाला है। एक तरफ जहां शीर्ष नेता पीड़ित परिवारों के साथ संवेदना व्यक्त करने आते हैं, वहीं दूसरी ओर उन्हीं की पार्टी के सदस्य ऐसे बयान देते हैं जो घावों पर नमक छिड़कने का काम करते हैं।

राष्ट्रीय एकता पर चोट: ऐसे बयान राष्ट्रीय एकता को कमजोर करते हैं, जो आतंकवाद से लड़ने के लिए बेहद ज़रूरी है।

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पीड़ितों का दर्द: इन बयानों से उन परिवारों का दर्द कम नहीं होता, बल्कि बढ़ जाता है जिन्होंने सब कुछ खो दिया है।

शुभम द्विवेदी की अपनी जान गंवाई थी। अब यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। यह आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई का एक अध्याय है। यह एक ऐसा दर्द है जिसे पूरे देश को महसूस करना चाहिए, एकजुट होकर।

यह हमला सिर्फ परिवारों को नहीं तोड़ता, बल्कि पूरे समाज को हिला देता है। ऐसे में, किसी भी जिम्मेदार नागरिक या नेता से यह अपेक्षा की जाती है कि वह इस दर्द को समझे और राष्ट्रीय एकजुटता को मजबूत करे, न कि उसे कमजोर करे।

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"ये कोई मुद्दा नहीं है, ये एक दर्द है!"

ऐशान्या द्विवेदी का यह वाक्य, "ये कोई मुद्दा नहीं है, ये एक दर्द है। ये हम 26 लोगों का दर्द है जिसे एक राष्ट्रीय दर्द होना चाहिए," पूरे मामले का सार है। उन्होंने साफ कर दिया कि आतंकी हमला राजनीति का खेल नहीं है, बल्कि एक आतंकी हमला है। यह बयान सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उन सभी भारतीयों का प्रतिनिधित्व करता है जो आतंकवाद से आहत हैं।

मानवीय दृष्टिकोण बनाम राजनीतिक चश्मा

यह समझना बेहद ज़रूरी है कि कुछ घटनाओं को केवल मानवीय दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। आतंकी हमले ऐसी ही घटनाएं हैं। इन पर राजनीति करना न सिर्फ असंवेदनशील है, बल्कि जान गंवाने वाले और उनके परिवारों का अपमान भी है। ऐशान्या द्विवेदी का बयान एक मार्मिक अपील है, जो हमें याद दिलाता है कि कुछ चीजें राजनीति से ऊपर होती हैं।

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