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बनारसी रेशम को मिलेगी वैश्विक पहचान
उत्तर प्रदेश सरकार बनारस के रेशम उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं। रेशम विभाग ने इस पहल के तहत अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग और मार्केटिंग अभियान शुरू किया है। 23-24 मार्च को एक विशेष टीम ने बड़ा लालपुर स्थित ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर (TFC) का दौरा किया, जहां उन्होंने कई बुनकरों और व्यापारियों से मुलाकात की। इस दौरान बुनाई से जुड़े पहलुओं को समझने के साथ-साथ प्रचार-प्रसार के लिए फोटो और वीडियो रिकॉर्ड किए गए। इस कार्यक्रम में रेशम विभाग के निदेशक सुनील वर्मा (IAS) और उपनिदेशक नागेंद्र राम भी उपस्थित रहे।
12 हजार करोड़ पहुँचा वार्षिक कारोबार
बनारसी रेशम अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। यहाँ 5000 से अधिक हैंडलूम और 7000 से अधिक पावरलूम कार्यरत हैं, जो लगभग 800 से अधिक इकाइयों के लिए उत्पादन करते हैं। इस उद्योग का वार्षिक कारोबार लगभग 12,000 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है, जिसमें रेशम धागे का योगदान 2500 करोड़ रुपये से अधिक है। बीते एक दशक में उत्तर प्रदेश में रेशम उत्पादन 9.11 करोड़ रुपये से बढ़कर 252 करोड़ रुपये से अधिक हो चुका है।
बुनकरों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य
प्रदेश में रेशम की मांग लगभग 3,500 मीट्रिक टन तक पहुँच चुकी है। इसे ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकार ने 'मुख्यमंत्री रेशम विकास योजना' की शुरुआत की है, जिससे इस उद्योग को और अधिक प्रोत्साहन मिलेगा। बनारसी रेशम की अनूठी डिजाइनों-ब्रोकेड, बूटा, जंगला, शिकारगढ़ी-तथा बुनाई की विशेष तकनीकों-फेकवा, कड़वा, तनचोई और कढ़ियल-को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए सरकार विशेष प्रयास कर रही है। इससे न केवल बनारसी रेशम को नए बाजार मिलेंगे, बल्कि बुनकरों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य भी प्राप्त हो सकेगा।