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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । करीब 40 साल पहले नाराज होकर घर छोड़ने वाले ओमप्रकाश को एक सरकारी सर्वे ने नया जीवन दिया है। दिल्ली में 'सलीम' के नाम से मुस्लिम जीवन जी रहे ओमप्रकाश को एसआईआर SIR सर्वे के दौरान पहचान पत्र की समस्या हुई, जिसने उन्हें अपनी जड़ों की तलाश के लिए मजबूर किया। इस खोज ने उन्हें वापस उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के काशीपुर गांव पहुंचाया, जहां बैंड-बाजे के साथ उनका सनातन धर्म में 'घर वापसी' हुई। यह कहानी सिर्फ एक धर्म परिवर्तन की नहीं, बल्कि एक भटकते हुए इंसान की अपनी पुश्तैनी पहचान से दोबारा जुड़ने की मार्मिक दास्तान है।
यह कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं है, लेकिन इसका हर किरदार, हर मोड़ बिल्कुल सच्चा है। यह घटना है उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के शाही थाना क्षेत्र के काशीपुर गांव की। इस गांव में वेदराम के पुत्र ओमप्रकाश का जन्म हुआ था। लेकिन आज से लगभग चार दशक पहले, जब वह महज़ 15 साल के थे, तब किसी बात पर नाराज़ होकर उन्होंने अपना घर छोड़ दिया था। गांव वालों ने मान लिया था कि ओमप्रकाश अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके पिता भी कुछ साल पहले गुज़र चुके थे। किसी ने कभी सोचा भी नहीं था कि जिस बेटे के लिए बरसों पहले शोक मना लिया गया था, वह एक दिन ढोल-नगाड़ों और फूल-मालाओं के साथ अपने घर लौटेगा।
दिल्ली में 'सलीम' की नई पहचान
अपना घर छोड़ने के बाद, ओमप्रकाश दिल्ली पहुंचे। वहां उन्होंने अपना नाम और धर्म बदलकर एक नई ज़िंदगी शुरू की। वह मुस्लिम धर्म में परिवर्तित हो गए और उनका नया नाम रखा गया 'सलीम'। दिल्ली में रहते हुए, उन्हें पहचान पत्र की ज़रूरत पड़ी। मोहल्ले के लोगों ने उनकी मदद की और वोटर लिस्ट में उनका नाम सलीम, पिता ताहिर हुसैन, पता उस्मानपुर, दिल्ली दर्ज करा दिया। यह पहचान नकली थी, लेकिन इसने उन्हें दिल्ली में रहने का सहारा दिया। यहीं पर उनका निकाह शाहबानो नाम की महिला से हुआ, और उनके चार बेटियां और एक बेटा है, जिसका नाम जुम्मन है।
क्या आप जानते हैं? ओमप्रकाश की तीन बेटियां शादीशुदा हैं और दिल्ली में ही अपना घर बसा चुकी हैं।
SIR अभियान बना 'घर वापसी' का रास्ता
इन दिनों देशभर में एसआईआर SIR अभियान - जो आमतौर पर वोटर लिस्ट को अपडेट करने या मतदाता पहचान से जुड़े सर्वे का हिस्सा होता है - चर्चा का विषय बना हुआ है। कई जगहों पर यह सर्वे विवादों में है, लेकिन बरेली के काशीपुर गांव के लिए यह अभियान खुशियों का पैगाम लेकर आया। दिल्ली में जब एसआईआर सर्वे के तहत वोटर लिस्ट की जांच शुरू हुई, तो ओमप्रकाश सलीम का नाम लिस्ट में नहीं मिला। जब पहचान साबित करने के लिए उनसे माता-पिता की पहचान से जुड़े दस्तावेज़ मांगे गए, तो उनके पास कुछ नहीं था। यहीं पर ओमप्रकाश पूरी तरह से घिर गए। उन्हें अपनी पूरी कहानी बताने के लिए मजबूर होना पड़ा।
सर्वे अधिकारियों के सामने उन्होंने कबूल किया कि उनकी असली पहचान क्या है। इस मजबूरी ने उनके दिल में दबी पुश्तैनी पहचान और गांव लौटने की इच्छा को फिर से ज़िंदा कर दिया। उन्होंने फैसला किया कि अब उन्हें वापस अपने असली गांव काशीपुर लौटना है, ताकि वह अपनी सही और पुश्तैनी पहचान पा सकें।
40 साल बाद भाई और बेटे को देखकर गांव वाले हुए भावुक
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ओमप्रकाश अब सलीम: अपनी बड़ी बहन चंद्रकली और 15 वर्षीय बेटे जुम्मन के साथ काशीपुर गांव पहुंचे। जैसे ही गांव वालों को इस 'चमत्कार' की खबर मिली, सैंकड़ों लोग उनके घर के बाहर इकट्ठे हो गए।
बैंड-बाजे के साथ स्वागत: ग्राम प्रधान वीरेंद्र राजपूत, वीरपाल, कुंवरसेन और ओमप्रकाश के छोटे भाई रोशनलाल सहित सैकड़ों ग्रामीणों ने उन्हें फूल-मालाएं पहनाईं।
जुलूस और सम्मान: ढोल-नगाड़ों के साथ पूरे गांव में एक भव्य जुलूस निकाला गया। गांव वालों ने इस बेटे का दिल खोलकर स्वागत किया।
आंसू भरे पल: 40 साल बाद अपने बिछड़े हुए बेटे और भाई को देखकर कई ग्रामीण और परिवार के लोग भावुक हो गए और रोने लगे।
यह सिर्फ एक व्यक्ति की वापसी नहीं थी, यह एक परिवार की अधूरी कहानी का पूरा होना था।
ओमप्रकाश की भावनाएं: "दिल्ली में मैंने नई जिंदगी शुरू की, शादी की, बच्चे हुए, लेकिन दिल के एक कोने में हमेशा गांव की याद बाकी रही।
एसआईआर अभियान के चलते जब पहचान का सवाल खड़ा हुआ, तो मुझे एहसास हुआ कि असली पहचान तो मेरे गांव और परिवार से ही है।"
सनातन धर्म में 'घर वापसी' और नया संकल्प
गांव पहुंचने के बाद, गांव के बुज़ुर्गों और परिवार के सदस्यों ने मिलकर ओमप्रकाश और उनके बेटे जुम्मन के लिए सनातन धर्म में घर वापसी की रस्म पूरी की।
शुद्धि और स्नान: उन्हें गांव के मंदिर ले जाया गया। धार्मिक रस्म वहां विधिवत स्नान कराया गया और धार्मिक रिवाजों के साथ उनकी 'घर वापसी' कराई गई।
ओमप्रकाश ने अब एक नया संकल्प लिया है। उन्होंने गांव वालों को बताया कि वह अब दोबारा अपने पुश्तैनी गांव काशीपुर में ही बसना चाहते हैं।
पहचान पत्र का समाधान: उनकी सबसे पहली प्राथमिकता अब अपने गांव से ही अपना नया आधार कार्ड, वोटर आईडी और अन्य ज़रूरी पहचान पत्र बनवाना है।
स्थायी निवास: उनका उद्देश्य है कि वह अपने बच्चों और परिवार के साथ अब अपने असली गांव में स्थायी रूप से निवास करें।
यह कहानी दिखाती है कि पहचान का संकट किसी व्यक्ति को उसकी जड़ों तक वापस खींच सकता है। दिल्ली में 'सलीम' के नाम से एक नकली पहचान के साथ रहने के बाद, ओमप्रकाश को अंततः एहसास हुआ कि उनकी असली पहचान और सुकून उनके पैतृक गांव काशीपुर और सनातन धर्म में ही है। एक सरकारी सर्वे ने एक बिछड़े हुए बेटे को उसके परिवार और पहचान से मिलाकर, एक मार्मिक और ऐतिहासिक पल को जन्म दिया है।
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