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‘कालीन भैया’ की पहचान पर संकट! क्या भारत बचा पाएगा Carpet उद्योग? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।उत्तर प्रदेश के भदोही और मिर्जापुर में बने कालीन अब अमेरिका के नए टैरिफ के धागों में उलझ गए हैं। इन इलाकों से अमेरिका को होने वाला 11,000 करोड़ का निर्यात खतरे में है, जिससे लाखों कारीगरों के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यह सिर्फ एक व्यापारिक फैसला नहीं, बल्कि एक पूरी अर्थव्यवस्था और कला की विरासत का सवाल है। क्या भारत सरकार इस संकट से उबरने में मदद करेगी?
यूपी के मिर्जापुर और भदोही की पहचान सिर्फ 'कालीन भैया' से नहीं बल्कि हाथ से बनी उन नायाब कालीनों से है जिनकी चमक दुनिया भर में मशहूर है। ये कालीन भारत के गौरव और लाखों कारीगरों के हुनर का प्रतीक हैं। लेकिन, अब इस शानदार विरासत पर एक अमेरिकी फैसले की काली छाया मंडरा रही है। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित नए 50% टैरिफ ने भारतीय कालीन निर्यातकों की नींद उड़ा दी है। इस फैसले के बाद 11,000 करोड़ का वह कारोबार खतरे में पड़ गया है, जो सीधे तौर पर मिर्जापुर और भदोही से अमेरिका को निर्यात होता है।
गोदामों में डंप हैं कालीन, कारीगरों के चेहरे पर मायूसी
मिर्जापुर के एक कालीन कारोबारी मोहम्मद जावेद खान बताते हैं कि उनके गोदाम से लेकर मुंबई एयरपोर्ट तक कालीन की खेप डंप पड़ी है। निर्यात पूरी तरह रुक गया है। अब कल्पना कीजिए, एक ऐसी इंडस्ट्री जहां हर दिन हजारों हाथ काम करते हैं, अचानक ठहर सी गई है। भदोही और मिर्जापुर में करीब 25 लाख कारीगर सीधे तौर पर इस काम से जुड़े हैं। यह टैरिफ तो लागू हो गया है, तो क्या देशभर के 45 लाख से ज़्यादा कारीगर बेरोजगार हो जाएंगे! क्योंकि यह सिर्फ व्यापार नहीं बल्कि लाखों परिवारों की रोटी-रोजी का सवाल है।
80% कारोबार सीधा अमेरिका से, अब क्या होगा?
भारत का कुल कालीन कारोबार करीब 20,000 करोड़ का है, जिसमें से 17,000 करोड़ का कारोबार अकेले अमेरिका से होता है। इसमें से भी 11,000 करोड़ का हिस्सा सीधे मिर्जापुर और भदोही का है। यहां बनने वाले 80% कालीन अमेरिका को निर्यात होते हैं।
भदोही-मिर्जापुर: कालीन का गढ़
कुल कारोबार: 20,000 करोड़ रुपये
अमेरिकी कारोबार: 17,000 करोड़ रुपये
भदोही-मिर्जापुर का योगदान: 11,000 करोड़ रुपये
अमेरिका को निर्यात: कुल उत्पादन का 80%
CEPC पूर्व अध्यक्ष बोले, संकट गहरा सकता है!
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टैरिफ का असर 50 से 60 प्रतिशत तक हो सकता है, जिससे 8,000 से 9,000 करोड़ रुपये का भारी नुकसान होगा। रूस, यूरोप और एशिया के अन्य देशों में भी कालीन का निर्यात होता है लेकिन अमेरिका सबसे बड़ा बाजार है। अगर यह बाजार खत्म होता है, तो पूरा उद्योग ठप हो जाएगा। -सिद्धनाथ सिंह, पूर्व अध्यक्ष सीईपीसी
सरकार से उम्मीद: क्या इतिहास दोहराया जाएगा?
यह पहली बार नहीं है जब कालीन उद्योग पर संकट आया है। 1990 के दशक में भी उद्योग ने कई उतार-चढ़ाव देखे थे। उस समय सरकार ने नगद प्रोत्साहन राशि, आयकर में छूट और बैंक ब्याज पर कम दरों जैसे कई कदम उठाए थे। आज भी कारोबारी सरकार से इसी तरह की मदद की उम्मीद कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार राजनयिक स्तर पर इस मुद्दे को उठाए और घरेलू बाजार में भी प्रोत्साहन दे।
यह संकट सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर का भी है। ये कारीगर सिर्फ धागे नहीं बुनते, बल्कि कला और इतिहास को भी सहेजते हैं। अगर हम आज इस उद्योग को नहीं बचा पाए, तो ये लाखों हाथ खाली हो जाएंगे, और हमारी एक अनूठी कला हमेशा के लिए खो जाएगी।
क्या कालीन उद्योग को बचाने के लिए सरकार फिर से आगे आएगी या लाखों कारीगरों को अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ेगा?
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