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Lucknow का बड़ा मंगल: जानिए - 400 साल पुरानी भंडारे की ऐतिहासिक परंपरा

लखनऊ में 400 साल से हर ज्येष्ठ मंगलवार को मनाया जाने वाला बड़ा मंगल अब पूड़ी-सब्जी, आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक जैसे आधुनिक भोगों के साथ भी सेवा की मिसाल बन रहा है। अलीगंज मंदिर से शुरू हुई परंपरा आज पूरे शहर में फैल चुकी है।

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Ajit Kumar Pandey
LUCKNOW BADA MANGAL NEWS
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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हर साल ज्येष्ठ महीने के मंगलवारों को मनाया जाने वाला बड़ा मंगल महज एक धार्मिक आयोजन नहीं — बल्कि सेवा, समाज और संस्कृति का उत्सव है। करीब 400 साल पुरानी इस परंपरा की शुरुआत अलीगंज हनुमान मंदिर से हुई थी। पहले जहां केवल गुड़-धानी और शरबत बंटते थे, वहीं आज पूड़ी-सब्जी, आइसक्रीम, कोल्ड ड्रिंक तक शामिल हो चुके हैं। इस भंडारे का इतिहास जितना पुराना है, उसकी भावना उतनी ही आज भी ताज़ा है।

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लखनऊ में बड़ा मंगल: परंपरा से प्रेम और परोसे गए भाव

400 साल की सेवा परंपरा का अद्भुत उदाहरण: लखनऊ में बड़ा मंगल की शुरुआत अलीगंज हनुमान मंदिर से मानी जाती है। इतिहासकारों के मुताबिक, इस भंडारे की नींव नवाबों के समय पड़ी थी। उस दौर में जब हिंदू-मुस्लिम एकता को चुनौती मिल रही थी, तब ये आयोजन भाईचारे और समर्पण का प्रतीक बन गया।

भोग से भोजन तक — गुड़-धानी से पूड़ी-सब्जी तक का सफर: शुरुआत में हनुमानजी को गुड़-धानी और बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता था। लेकिन समय के साथ जब जनसहभागिता बढ़ी तो व्यंजन भी बदलने लगे। आज पूड़ी-सब्जी, रायता, हलवा, कोल्ड ड्रिंक और आइसक्रीम तक बंट रहे हैं।

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यह बदलाव बताता है कि कैसे समाज और समय के साथ धर्म भी लोकलुभावन और लोकसेवी हो गया है।

भंडारे का बदलता ट्रेंड — सेवा के स्वाद में नवाचार : भंडारे अब सिर्फ मंदिर परिसर तक सीमित नहीं रहे। लखनऊ की हर गली-मोहल्ले में दर्जनों भंडारे लगते हैं। कुछ भंडारे वातानुकूलित टेंट में होते हैं, तो कहीं डिजिटल आमंत्रण और सोशल मीडिया लाइव स्ट्रीमिंग तक होने लगी है।

यह परंपरा अब आधुनिकता की ओर बढ़ रही है, लेकिन सेवा का भाव अब भी वैसा ही है।

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क्या कहते हैं इतिहासकार?

गीताप्रेस की किताबों और स्थानीय इतिहासकारों के अनुसार, बड़ा मंगल के तीन प्रमुख किस्से हैं –

  • एक मुस्लिम नवाब का सपना और हनुमानजी का आदेश
  • अकाल के समय एक संत द्वारा शुरू किया गया भंडारा
  • अलीगंज मंदिर में भंडारे की शुरुआत करने वाले प्रथम भक्त
  • ये कहानियां बताती हैं कि भक्ति और सेवा का कोई धर्म नहीं होता।
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लोक आस्था और मानव सेवा का संगम

बड़ा मंगल केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, यह समाज को जोड़ने वाला पुल है। यहां धर्म, जाति, वर्ग, समुदाय से ऊपर उठकर हर कोई सेवा में भागीदार बनता है।

छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक – हर कोई या तो भोजन परोस रहा होता है या उसे प्रेमपूर्वक ग्रहण कर रहा होता है।

भविष्य की ओर बढ़ती परंपरा

बड़ा मंगल अब सिर्फ लखनऊ नहीं, बलरामपुर, गोंडा, बस्ती, फैजाबाद जैसे जिलों तक पहुंच चुका है। कहीं कॉलेज स्टूडेंट्स इस परंपरा को संभाल रहे हैं तो कहीं महिलाएं खुद नेतृत्व कर रही हैं।

क्या आप भी कभी बड़ा मंगल का भंडारा खा चुके हैं? क्या आपको लगता है ये परंपरा पूरे देश में फैलनी चाहिए? नीचे कमेंट करें और अपनी राय दें। 

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