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कानून या राजनीति? संभल में अतिक्रमण हटाने की मुहिम के पीछे छिपी असली कहानी क्या है?

संभल में अतिक्रमण विरोधी अभियान ने मचाई हलचल! DM राजेंद्र पेंसिया के नेतृत्व में सार्वजनिक भूमियों पर हो रही सख्त कार्रवाई से हजारों घरों पर खतरा। क्या है इस अभियान का असली मकसद? जानें पूरा सच और लोगों की आपबीती।

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Ajit Kumar Pandey
कानून या राजनीति? संभल में अतिक्रमण हटाने की मुहिम के पीछे छिपी असली कहानी क्या है? | यंग भारत न्यूज

कानून या राजनीति? संभल में अतिक्रमण हटाने की मुहिम के पीछे छिपी असली कहानी क्या है? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।संभल में अतिक्रमण विरोधी अभियान (Encroachment Removal Drive) ने लोगों की नींद उड़ा दी है। जिला प्रशासन लगातार सार्वजनिक भूमि, सड़क और नालों पर हुए अवैध कब्जों को हटा रहा है। क्या यह सिर्फ एक सरकारी कार्रवाई है या इसके पीछे कुछ और भी है? इस अभियान से हजारों लोगों के आशियाने पर खतरा मंडरा रहा है, लेकिन क्या यह शहर को बेहतर बनाने की दिशा में एक जरूरी कदम है?

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संभल में अतिक्रमण विरोधी अभियान लगातार जारी है, जिसने कई परिवारों को मुश्किल में डाल दिया है। सड़कों से लेकर नालों तक, हर जगह अवैध निर्माण पर बुल्डोजर चल रहा है। जिलाधिकारी राजेंद्र पेंसिया का कहना है कि यह अभियान हर जगह चल रहा है और इसका मकसद सार्वजनिक जगहों को खाली कराना है। पहले नोटिस दिया जाता है, लेकिन अगर लोग खुद कब्जा नहीं हटाते, तो प्रशासन सख्त कार्रवाई करता है। लेकिन क्या यह सिर्फ कानून का पालन है या इसके पीछे कोई गहरी कहानी है?

कल्पना कीजिए, आपने अपनी जिंदगी की सारी जमा पूंजी एक छोटे से घर में लगा दी, और एक दिन अचानक नोटिस आ जाए कि आपका घर अवैध है। संभल में कई लोगों के साथ यही हो रहा है। अचानक से शुरू हुए इस अभियान ने लोगों को सदमे में डाल दिया है। वे सोच रहे हैं कि अब उनका क्या होगा, कहां जाएंगे?

यह सवाल उठता है कि ये अतिक्रमण हुए कैसे? क्या प्रशासन पहले से ही इस पर ध्यान नहीं दे रहा था? सालों से चले आ रहे इन कब्जों को अचानक क्यों हटाया जा रहा है? स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने ये जगहें मजबूरी में ली थीं, क्योंकि उनके पास और कोई विकल्प नहीं था। कई मामलों में, इन जमीनों पर दशकों से लोग रह रहे हैं। अब अचानक हुई इस कार्रवाई से लोगों में गुस्सा और हताशा है।

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नोटिस का दर्द: सबसे पहले लोगों को नोटिस भेजा जाता है।

स्वैच्छिक हटाना या प्रशासन की कार्रवाई: अगर लोग खुद कब्जा नहीं हटाते, तो प्रशासन बुल्डोजर लेकर आता है।

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सार्वजनिक भूमि की मुक्ति: प्रशासन का कहना है कि यह सार्वजनिक भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त कराने के लिए है।

यह अभियान सिर्फ संभल तक सीमित नहीं है, बल्कि उत्तर प्रदेश के कई जिलों में ऐसे अभियान चल रहे हैं। सरकार का कहना है कि यह शहरी विकास और व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है। लेकिन क्या इस प्रक्रिया में आम आदमी के हितों का ध्यान रखा जा रहा है?

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आशियाना बचाने की जद्दोजहद: क्या है समाधान?

संभल में लोग अपने आशियाने बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कई लोग प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं, तो कई कानूनी मदद की तलाश में हैं। इस स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इन लोगों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की जाएगी? क्या सरकार उन्हें कहीं और बसाने का इंतजाम करेगी?

एक तरफ शहर को अतिक्रमण मुक्त करने की बात है, तो दूसरी तरफ उन हजारों लोगों का भविष्य है, जिनके सिर से छत छिनने वाली है। इस अतिक्रमण विरोधी अभियान का मानवीय पहलू भी है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्या इस अभियान को और अधिक संवेदनशील तरीके से चलाया जा सकता था?

संभल का यह अतिक्रमण विरोधी अभियान एक जटिल मुद्दा है। एक तरफ यह शहर को व्यवस्थित और सुंदर बनाने की बात करता है, वहीं दूसरी ओर यह उन गरीब परिवारों के लिए विस्थापन का कारण बन सकता है जिनके पास और कोई ठिकाना नहीं है। सरकार को इन लोगों के पुनर्वास के लिए ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि विकास की कीमत पर किसी का घर न उजड़े।

यह समय है जब प्रशासन और आम जनता दोनों को मिलकर इस समस्या का समाधान खोजना होगा। सिर्फ बुल्डोजर चलाना ही समाधान नहीं है, बल्कि स्थायी और मानवीय हल निकालना होगा। क्या संभल इस चुनौती से पार पा पाएगा?

आपका नजरिया इस खबर पर क्या है? क्या आपको लगता है कि यह अतिक्रमण विरोधी अभियान सही है या इसके तरीके में बदलाव होना चाहिए? नीचे कमेंट करें और अपने विचार साझा करें।

 Sambhal News Today | illegal encroachment |

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