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संयुक्त प्रांत Photograph: (इंटरनेट मीडिया )
शाहजहांपुर वाईबीएन संवाददाता।
सभी जिलों में आज यानी 24 जनवरी को UP DAY के रूप में प्रदेश का स्थापना दिवस मनाया जा रहा है। शासन, प्रशासन की ओर से समारोह आयोजित किए गए हैं। इस दौरान सभी विभागों के उत्कृष्ट कर्मचारियों तथा विविध योजनाओं के लाभार्थियों को सम्मानित किए जाने की भी व्यवस्था की गई है। जनपद में भी वर्ष 2017 से समारोह का आयोजन किया जा रहा है। आखिर आजादी से पूर्व व बाद में कैसा था अपना उत्तर प्रदेश, एसएस कालेज के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ विकास खुराना ने यंग भारत न्यूज से बातचीत में रोचक जानकारी दी। प्रस्तुत हैं उनके विचार... ।
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भारत के नक्शे को देखने से प्रतीत होता है कि हमारा प्रदेश उत्तरप्रदेश देश के हृदय के रूप में वर्तमान में मध्य पूर्व में विद्यमान है किंतु यह हमेशा से ऐसे ही नहीं था।यद्यपि प्रदेश की इस भूमि पर मानव क्रियाकलापों के चिन्ह एक लाख वर्ष पुराने है किंतु आघ इतिहास में वैदिक काल से इसका लिखित वर्णन मिलने लगता है।उससे थोड़ा सा और पूर्व में वर्तमान में हो रहे उत्खनन के परिणामस्वरूप यह पता चलता है कि सेंधव सभ्यता का प्रसार भी उत्तरप्रदेश के मेरठ के आलमगीरपुर तक था। ऋग्वेद के शतपथ ब्राह्मण में यह उल्लेखित है कि जब वैदिक संस्कृति का प्रभाव बढ़ा तो अग्नि का एक गोला इस क्षेत्र से गुजरता हुआ सदानीरा गंडक में शांत हो गया।
वैदिककाल में जंगलों से हरा भरा था यह क्षेत्र
इतिहासकार इसका अनुमान लगाते है कि वस्तुतः वैदिक काल में जब यह क्षेत्र जंगलों से भरा था तब आर्यों ने उन्हें साफ कर कृषि योग्य भूमि बना दी जहां निर्बाध जीवन यापन शुरू हुआ। सदानीरा ही लंबे समय तक आर्यों की पूर्वी सीमा बनी रही जिसके बाहर सर्वत्र अनार्य संस्कृति का प्रसार था।
बुद्धकाल से 18 वीं सदी तक
बुद्ध काल में जब सोलह महाजनपद बने तब अनेक इस क्षेत्र में स्थापित हुए,विख्यात कुरु वंश उनमें से एक था।इसी प्रकार मध्यकाल में यह दिल्ली सुलतानों तथा मुगलों के क्षेत्र के रूप में समुन्नत होता रहा।आगरा मुगलों की प्रधान राजधानी बना जहां विख्यात ताजमहल जैसी इमारतें बनी।अठारहवीं सदी जो अंधकार का युग था लखनऊ के नवाबी शासक तथा स्थानीय बड़े जमींदार राजा रजवाड़े अलग अलग क्षेत्रों पर अपनी संप्रभुता जमाए रहे।
उतार चढ़ाव भरा रहा उत्तर प्रदेश का इतिहास
प्रदेश की आधुनिक रूपरेखा अंग्रेजो के समय तय होने लगी।ब्रिटिश हुकूमत ने बंगाल जो विश्व के सोने चांदी का केंद्र था में सबसे पहले अपना प्रभाव जमाया उत्तर प्रदेश उनके क्षेत्र के उत्तर पश्चिम में था जिससे प्रदेश का नाम उत्तरपश्चिम प्रांत रखा गया।बक्सर के युद्ध,इलाहाबाद की संधियों,रुहेला युद्ध के बाद अंग्रेजो ने इस क्षेत्र पर अपना प्रभाव जमा लिया और आगे बढ़कर वर्ष 1803 में दिल्ली पर कब्जा कर लिया गया।मुगल बादशाह को पेंशन दे दी गई।उस समय अजमेर और जयपुर,दिल्ली राज्य भी इसी क्षेत्र में शामिल थे, यह ब्रिटिश भारत का उत्तर-पश्चिमी प्रांत था। इसकी राजधानी आगरा और इलाहाबाद के बीच दो बार बदली गई।1858 की क्रांति के विफल होने के बाद अंग्रेजों ने क्षेत्र की प्रशासनिक सीमाओं को पुनर्गठित करके सबसे सक्रिय क्षेत्रों को विभाजित करने का प्रयास किया। दिल्ली क्षेत्र को आगरा के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र से अलग करके पंजाब में मिला दिया, जबकि अजमेर - मारवाड़ क्षेत्र को राजपुताना में मिला दिया गया और अवध को ब्रिटिश राज्य में शामिल कर लिया गया।
1902 में दिया गया था संयुक्त प्रांत नाम
नए राज्य का नाम आगरा और अवध का उत्तर पश्चिमी प्रांत' कहा जाता था। जिसे लार्ड कर्जन ने 1902 में आगरा और अवध के संयुक्त प्रांत का नाम दिया गया।यही ब्रिटिशकाल का संयुक्त प्रांत या यूपी था। 1920 में, इसकी राजधानी इलाहाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर दी गई । उच्च न्यायालय इलाहाबाद में ही रहा, लेकिन लखनऊ में एक खंडपीठ स्थापित की गई। आजादी के बाद 1950 में इसे सार्वभौमिक रूप पुनर्गठित करते हुए उत्तरप्रदेश के रूप में जाना जाने लगा।youngbharatnews.com
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