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UP News: कौन सुनेगा दलितों की मार्मिक पुकार ‘घर बिकाऊ है!’ जानिए — पलायन को मजबूर क्यों हो रहे 40 परिवार? | यंग भारत न्यूज
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क ।उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ जिले के मुस्लिम बहुल छोटा पुरा गांव में करीब 40 दलित परिवारों ने अपने घरों पर 'घर बिकाऊ है' के पोस्टर लगा दिए हैं। उनका आरोप है कि मुस्लिम समुदाय द्वारा लगातार उत्पीड़न, दुर्व्यवहार और महिलाओं को रेप की धमकियों से वे इतने परेशान हैं कि अब पलायन को मजबूर हैं। हाल ही में एक शादी समारोह में हुई झड़प ने तनाव को और बढ़ा दिया है। पीड़ित परिवारों ने पुलिस पर भी उदासीनता का आरोप लगाया है। यह घटना धार्मिक सौहार्द और दलितों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर रही है।
हालांकि SSP हेमराज मीना ने मंगलवार 17 जून 2025 को मुबारकपुर थाना क्षेत्र के बम्हौर गांव पहुंचकर पीड़ितों से मुलाकात की। गांव के लोगों को आश्वासन दिया कि गांव में सुरक्षा को लेकर अस्थायी पुलिस चौकी खोली गई है। स्थान मिलने पर स्थायी पुलिस चौकी खोली जाएगी।
आपको बता दें कि आजमगढ़ का छोटा पुरा गांव आजकल देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां के करीब 40 दलित परिवारों ने एक ऐसा कदम उठाया है जिसने सबको चौंका दिया है – उन्होंने अपने घरों पर 'घर बिकाऊ है' के पोस्टर लगा दिए हैं। इन परिवारों का आरोप है कि उन्हें मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा लगातार प्रताड़ित किया जा रहा है। उनकी बहू-बेटियों को छेड़छाड़ और रेप की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, और धार्मिक आयोजनों में भी उन्हें बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
एक झड़प ने गांव छोड़ने पर किया जा रहा मजबूर
यह मामला तब और गरमा गया जब 3 जून 2025 को मुबारकपुर थानाक्षेत्र अंतर्गत बम्हौर निवासी राकेश कन्नौजिया की शादी के दौरान एक बड़ी झड़प हो गई। दलित समुदाय की महिलाएं और लड़कियां शादी की रस्में निभा रही थीं, तभी कुछ मुस्लिम युवक वहां आ गए और उनकी मर्जी के बिना वीडियो बनाने लगे। जब महिलाओं ने इसका विरोध किया, तो युवकों ने उनके साथ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया और छेड़छाड़ की। महिलाओं की चीख-पुकार सुनकर उनके रिश्तेदार बीच-बचाव करने आए, जिसके बाद दोनों पक्षों में मारपीट शुरू हो गई। इस झड़प में करीब 8 लोग घायल हुए।
पुलिस की कार्रवाई और पीड़ितों का आरोप
पुलिस ने इस मामले में तुरंत कार्रवाई करते हुए 10 आरोपियों को गिरफ्तार किया और घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया। हालांकि, दलित परिवारों का कहना है कि यह घटना कोई पहली बार नहीं हुई है, बल्कि उन्हें लंबे समय से प्रताड़ित किया जा रहा है।
राकेश कन्नौजिया, बृजेश गोंड और रामअवध जैसे कई परिवारों ने आरोप लगाया है कि मुस्लिम समुदाय के लोग घूम-घूमकर उन्हें धमकाते हैं। उन्हें भक्ति गीत बजाने, शादी में डीजे लगाने या सांस्कृतिक उत्सवों में भाग लेने पर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि 'जय श्रीराम' के नारे लगाने और अपने त्योहार मनाने में भी उन्हें दिक्कतें आती हैं।
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दलित परिवारों का दर्द सुनने वाला कोई नहीं, दलित नेता भी गायब
एक दलित व्यक्ति ने दर्द भरी आवाज़ में कहा, "हमारी बेटियां और पत्नियां घर से बाहर नहीं निकल पाती हैं। त्योहार खुशियों के बजाय तनावपूर्ण हो गए हैं। और जब हम शिकायत करते हैं, तो कुछ नहीं होता।" एक अन्य पीड़ित ने बताया, "हम कई बार पुलिस के पास गए। हमने बेहतर सुरक्षा और सख्त कार्रवाई का अनुरोध किया, लेकिन कुछ नहीं बदला। इसलिए हमने अपने घर बेचने का फैसला किया है। कम से कम हम कहीं और शांति से रह सकते हैं।" उनकी बातों से साफ़ है कि वे डर और निराशा के माहौल में जी रहे हैं।
प्रशासन का आश्वासन, पर क्या पर्याप्त है?
आजमगढ़ के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (ASP) मधुवन कुमार सिंह ने इन आरोपों पर संज्ञान लिया है। उन्होंने कहा कि पुलिस ऐसे परिवारों से संपर्क कर उन्हें सुरक्षा का आश्वासन दे रही है। एएसपी सिंह ने कहा, "हमने ऐसी रिपोर्ट देखी है कि कुछ परिवार पलायन करने की योजना बना रहे हैं। हम उनसे संपर्क कर रहे हैं और उन्हें सुरक्षा सुनिश्चित करने का आश्वासन भी दे रहे हैं।" मुबारकपुर पुलिस स्टेशन के प्रभारी निहान नंदन ने भी शांति बहाल करने के लिए 3 जून की घटना के बाद इलाके में गश्त बढ़ाने की बात कही है।
हालांकि, पुलिस के इन आश्वासनों के बावजूद, अधिकांश दलित परिवार आश्वस्त नहीं दिखते। उनका कहना है कि "पहले यह सुरक्षा कहां थी? प्रशासन को जागने के लिए सुर्खियों और विरोध प्रदर्शनों की क्या जरूरत है?" उनकी यह बात वाजिब है। अगर सुरक्षा पहले ही सुनिश्चित की जाती, तो शायद आज ये परिवार अपने घरों पर 'बिकाऊ है' के पोस्टर लगाने को मजबूर न होते।
आजमगढ़ की यह घटना सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि समाज में बढ़ते तनाव और असुरक्षा की भावना का एक बड़ा प्रतीक है। यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर रहे हैं जहाँ एक समुदाय के लोगों को अपनी ही ज़मीन पर डर के साए में जीना पड़ रहा है? क्या कानून व्यवस्था इतनी लाचार हो गई है कि लोग अपनी सुरक्षा के लिए पलायन को ही एकमात्र विकल्प मान रहे हैं?
दलित परिवारों की यह मार्मिक पुकार, 'घर बिकाऊ है', छोटापुरा की संकरी गलियों से निकलकर पूरे देश में गूंज रही है। यह सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि एक करारा सवाल है जो हमारे समाज और प्रशासन दोनों से पूछा जा रहा है। इन परिवारों को न्याय मिलना चाहिए और उन्हें अपने ही घरों में सुरक्षित महसूस करने का अधिकार मिलना चाहिए।
बम्हौर के पीड़ितों से मिले एसएसपी हेमराज मीना
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एसएसपी हेमराज मीना ने मंगलवार 17 जून 2025 को मुबारकपुर थाना क्षेत्र के बम्हौर गांव पहुंचकर पीड़ितों से मुलाकात की। गांव के लोगों को आश्वासन दिया कि गांव में सुरक्षा को लेकर अस्थायी पुलिस चौकी खोली गई है। स्थान मिलने पर स्थायी पुलिस चौकी खोली जाएगी।
बम्हौर गांव में तीन जून को राकेश पुत्र बरछू की शादी थी। गांव में लावा परछन के लिए जा रहीं महिलओं के डांस का वीडियो बनाने और छींटाकशी करने को लेकर विवाद हा गया था। दूसरे पक्ष के लोगों ने लाठी-डंडे से हमला कर 20 लोगों को घायल कर दिया था।
इस मामले में संदीप कन्नौजिया की तहरीर पर पुलिस 18 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच कर रही थी। पुलिस अब तक 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है। गांव के 40 हिंदू परिवारों ने घटना के बाद पलायन की चेतावनी देते हुए मकान बिकाऊ हैं के पोस्टर लगा दिए थे। मामले के तूल पकड़ने पर पुलिस ने सख्ती दिखाई। घटना के दो सप्ताह बाद भी सात आरोपी फरार चल रहे हैं।
आपकी क्या राय है? क्या आजमगढ़ के दलित परिवारों को न्याय मिलेगा और वे सुरक्षित महसूस कर पाएंगे? कमेंट करके हमें बताएं।
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