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Uttarakhand: माणा गांव में आध्यात्म का संगम, दक्षिण भारत से भी Pushkar Kumbh पहुंचे श्रद्धालु

उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में 12 वर्षों बाद पुष्कर कुंभ का शुभारंभ हुआ। केशव प्रयाग में स्नान को पहुंचे दक्षिण भारत के श्रद्धालु। प्रशासन ने किए पुख्ता इंतजाम।

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Dhiraj Dhillon
Pushkar Kumbh in Mana, Uttrakhand
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देहरादून, वाईबीएन संवाददाता। उत्तराखंड (Uttrakhand) के चमोली जिले के सीमांत गांव माणा में 12 वर्षों बाद एक बार फिर आस्था का महापर्व पुष्कर कुंभ आरंभ हो गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब बृहस्पति ग्रह मिथुन राशि में प्रवेश करता है, तब अलकनंदा और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित केशव प्रयाग में इस दिव्य आयोजन का आयोजन होता है। गुरुवार को वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पुष्कर कुंभ 2025 का विधिवत उद्घाटन हुआ। दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में वैष्णव परंपरा से जुड़े श्रद्धालु स्नान और पूजा के लिए यहां पहुंचे। इस मौके पर केशव प्रयाग में श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई।

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प्रशासन ने किए पुख्ता इंतजाम

बदरीनाथ धाम के साथ ही माणा गांव में बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों की आवाजाही बढ़ गई है। पुष्कर कुंभ के आयोजन को लेकर जिला प्रशासन के साथ पुलिस प्रशासन की ओर से यहां तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए पुख्ता इंतजाम किए हैं। जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने बताया कि कुंभ के सफल संचालन के लिए प्रशासन ने व्यापक तैयारियां की हैं। पैदल मार्ग को दुरुस्त किया गया है, बहुभाषीय साइन बोर्ड लगाए गए हैं और सुरक्षा के लिए जगह-जगह पुलिस व एसडीआरएफ की तैनाती की गई है। तहसील स्तर पर नियमित मॉनिटरिंग भी जारी है। 

जानिए पुष्कर कुंभ का धार्मिक महत्व

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उत्तराखंड के चमोली जिले के माना गांव में हर 12 वर्षों के बाद लगने वाले पुष्कर कुंभ की मान्यता है कि इसी स्थान पर महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी। साथ ही, आचार्य रामानुजाचार्य और माध्वाचार्य को भी यहीं मां सरस्वती से ज्ञान प्राप्त हुआ था। यही कारण है कि यह स्थल दक्षिण भारत के श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। जिलाधिकारी संदीप तिवारी ने बताया कि तहसील प्रशासन को पुष्कर कुंभ के आयोजन को लेकर व्यवस्थाओं को सुचारू बनाए रखने के लिए नियमित मॉनिटरिंग करने के निर्देश दिए गए हैं।  

एक भारत, श्रेष्ठ भारत का प्रतीक

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि यह आयोजन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और संस्कृति की साझा विरासत का प्रतीक है। देश के विभिन्न हिस्सों से आए श्रद्धालु उत्तर और दक्षिण भारत को जोड़ने वाली इस आध्यात्मिक परंपरा में भाग ले रहे हैं।

Uttrakhand
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