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उत्तराखंड विधानसभा मानसून सत्र में तूफान : कांग्रेस का गुस्सा, लोकतंत्र पर सवाल — जानें क्यों हो रहा बवाल? | यंग भारत न्यूज Photograph: (Google)
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । आज बुधवार 20 अगस्त 2025 को दूसरे दिन भी उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में विधानसभा का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ गया। कांग्रेस विधायकों ने नैनीताल जिला पंचायत चुनाव में गोलीबारी और अपहरण की घटनाओं को लेकर जमकर विरोध जताया, जिससे सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। क्या यह सिर्फ राजनीतिक ड्रामा है या राज्य की कानून-व्यवस्था पर गहरा संकट? मुख्यमंत्री के जांच आदेशों के बावजूद विपक्ष क्यों अड़ा हुआ है? आगे पढ़िए पूरी स्टोरी...
आपको बता दें कि मानसून सत्र का पहला दिन ही तनावपूर्ण रहा। कांग्रेस विधायकों ने सदन में प्रवेश करते ही प्लेकार्ड लहराए और नारे लगाए। उनका मुख्य आरोप था कि नैनीताल में जिला पंचायत चुनाव के दौरान सत्ता पक्ष की मिलीभगत से लोकतंत्र का अपहरण हुआ। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि चुनाव में गोलीबारी और सदस्यों के अपहरण जैसी घटनाएं शर्मनाक हैं। सदन में हंगामा इतना बढ़ा कि स्पीकर को कार्यवाही 20 मिनट के लिए रोकनी पड़ी।
लेकिन बात यहीं नहीं रुकी। रात होते ही कांग्रेस विधायक सदन के अंदर ही रजाई-गद्दे लेकर धरने पर बैठ गए। यह उत्तराखंड विधानसभा के इतिहास में पहली बार हुआ। वे बोले, "जब तक कानून-व्यवस्था पर चर्चा नहीं, तब तक हम नहीं हटेंगे।" मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने फोन पर समझाने की कोशिश की, लेकिन विपक्ष अड़ा रहा। क्या यह विरोध जनता की आवाज है या सिर्फ सियासी खेल?
#WATCH उत्तराखंड विधानसभा सत्र के दूसरे दिन कांग्रेस विधायकों ने सदन में हंगामा किया, जिसके बाद सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई।
— ANI_HindiNews (@AHindinews) August 20, 2025
कांग्रेस विधायक नैनीताल में हुई गोलीबारी की घटना और हाल ही में संपन्न जिला पंचायत चुनावों के दौरान कानून-व्यवस्था पर चर्चा की मांग को लेकर हंगामा कर… pic.twitter.com/n75KQJfqqe
नैनीताल गोलीकांड: क्या हुआ था?
नैनीताल जिला पंचायत चुनाव 14 अगस्त को विवादों में घिर गया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उनके पांच सदस्यों को पुलिस की मौजूदगी में अगवा किया गया। चुनाव के दौरान बेतालघाट ब्लॉक में गोलीबारी हुई, जिसमें एक युवक घायल हो गया। हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया और डीएम-एसएसपी को पेश होने के आदेश दिए।
नतीजे भी रोचक रहे:
भाजपा की दीपा दर्मवाल एक वोट से अध्यक्ष बनीं।
उपाध्यक्ष पद पर कांग्रेस की देवकी बिष्ट ने टॉस से जीत हासिल की।
कांग्रेस ने इसे "वोट चोरी" करार दिया, जबकि भाजपा ने आरोपों को बेबुनियाद बताया।
पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इसे "गुंडागर्दी" कहा और चुनाव आयोग से दोबारा मतदान की मांग की। राज्य में ऐसे चुनावों ने लोगों के मन में सवाल खड़े कर दिए: क्या लोकतंत्र सुरक्षित है?
दूसरे दिन का हंगामा और स्थगन
20 अगस्त को सत्र शुरू होते ही कांग्रेस ने फिर हंगामा मचाया। विधायक वेल में घुस आए, माइक और टेबल तोड़ दिए। स्पीकर ऋतु खंडूरी ने शांति की अपील की, लेकिन विपक्ष ने डीएम का ट्रांसफर और एसएसपी का सस्पेंशन मांगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि कुमाऊं आयुक्त को जांच सौंपी गई है, लेकिन विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ। नतीजतन, कार्यवाही दोपहर 3 बजे तक स्थगित कर दी गई।
यह हंगामा सिर्फ सदन तक सीमित नहीं। बाहर प्रदर्शन हुए, जहां कांग्रेस ने "वोट चोर, गद्दी छोड़" के नारे लगाए। क्या सरकार जवाब देगी या सत्र ऐसे ही बीतेगा?
कानून-व्यवस्था पर बड़ा सवाल
उत्तराखंड जैसे शांत राज्य में ऐसी घटनाएं चिंताजनक हैं। कांग्रेस विधायक तिलक राज बीहर ने कहा, "आरक्षण में फेरबदल से लेकर अपहरण तक, सब सत्ता का खेल है।" वहीं, कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने पलटवार किया कि विपक्ष सिर्फ आरोप लगा रहा है, कोई सबूत नहीं।
सत्र में अभी कई विधेयक पेश होने हैं, लेकिन विपक्ष का रुख साफ है। वे नियम 310 के तहत चर्चा चाहते हैं। अगर सरकार टालती रही, तो हंगामा और बढ़ सकता है। उत्तराखंड की जनता देख रही है कि लोकतंत्र की रक्षा कौन करेगा। यह सत्र सिर्फ कानून बनाने का नहीं, बल्कि विश्वास बहाल करने का मौका है।
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