Child Marriage
लखनऊ, वाईबीएन संवाददाता। उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के एक गांव में लगी चौपाल में उस दिन कुछ अलग ही माहौल था। स्वयंसेवी संगठन का बाल विवाह विरोधी जागरूकता कैंप, गांव के बड़े-बुजुर्गों के लिए किसी कौतूहल से कम न था, क्योंकि उन्होंने पहली बार सुना कि विवाह करने की भी कानूनी उम्र होती है। अब तक तो वे यही मानते आए थे कि जब बेटी सयानी हो जाए, तो शादी कर बोझ से मुक्त पा लो। उम्र का शादी से क्या लेना-देना? चौपाल में जब कानून, सजा और जुर्माने की बात हुई, तो कई चेहरे हैरानी से भर उठे, लेकिन वहीं पीछे एक कोने में बैठी कुछ किशोरियां कानाफूसी कर रही थीं, 'क्या वाकई हमसे पूछे बिना शादी नहीं हो सकती?' इसी दौरान संगठन के एक सदस्य की नजर इन बच्चियों पर पड़ी। वे मुस्कराते हुए पास आए और उनसे बातचीत शुरू की। यही तो बदलाव की शुरुआत थी—जब डर की जगह सवालों ने ली। यह संकेत था कि जागरूकता से चेतना की नई किरण जन्म ले चुकी है।
कार्यक्रम समाप्त हो चुका था, लेकिन नागरिक समाज संगठन बुन्देलखंड सेवा संस्थान की टीम की नजरें, अब भी उन्हीं बच्चियों पर टिकी थीं। उनके चेहरे की बेचैनी, आंखों की झिझक और धीमी-धीमी कानाफूसी से साफ था कि कोई गंभीर बात छिपी है। टीम ने आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की सहायता ली और बच्चियों से धीरे-धीरे बात शुरू की। थोड़ी हिचक के बाद, उन्होंने खुलासा किया कि गांव की 16 वर्षीय कीर्ति (बदला हुआ नाम), जो इस समय दसवीं कक्षा की छात्रा है, की जल्द ही शादी होने वाली है।
दबाव के सामने वो कुछ नहीं कह पा रही
बच्चियों ने कहा, 'कीर्ति अभी शादी नहीं चाहती, लेकिन परिवार के दबाव के सामने वो कुछ नहीं कह पा रही।' यह सुनते ही टीम ने मामले की गंभीरता को समझते हुए प्रशासन की संयुक्त टीम के साथ उसके घर पहुंचने का फैसला किया। वहां पहुंचकर उसके माता-पिता से संवाद शुरू किया। शुरुआत में माता-पिता ने इसे पारिवारिक मामला कहकर टालने की कोशिश की, लेकिन जब उन्हें बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम - 2006 के बारे में बताया कि यह कानूनन अपराध है और इस जुर्म में सजा भी हो सकती है, तो उनका रवैया बदलने लगा।
कीर्ति की उसकी सबसे बड़ी मुराद पूरी हो गई
टीम ने कीर्ति के माता-पिता को यह भी बताया कि कम उम्र में शादी से न केवल बच्ची की पढ़ाई रुक जाती है, बल्कि उसके स्वास्थ्य और पूरे भविष्य पर भी गंभीर असर पड़ता है। संवाद और समझाइश के बाद वे राजी हो गए और लिखित में यह आश्वासन दिया कि बेटी के बालिग होने से पहले विवाह नहीं करेंगे। यह सुनते ही कीर्ति की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मानो उसकी सबसे बड़ी मुराद पूरी हो गई हो। बाल अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए कार्यरत जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (जेआरसी) का सहयोगी संगठन बुन्देलखंड सेवा संस्थान के जिला समन्वयक अमरदीप बमोनिया कहा, 'हम बाल विवाह के पूर्ण खात्मे के लिए गांव, स्कूल, पंचायत और अन्य संस्थानों में लगातार जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं, क्योंकि आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में जानकारी के अभाव में यह कुप्रथा गहराई से जमी हुई है।'
आत्मविश्वास के साथ स्कूल जा रही कीर्ति
अब कीर्ति आत्मविश्वास के साथ स्कूल जा रही है और मुस्कराकर कहती है, 'वह दिन मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट था। तभी मैंने सीखा कि जब खुद पर भरोसा और भीतर साहस हो, तो कोई भी मुश्किल पार की जा सकती है।' उस अनुभव ने उसे अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना सिखाया। कीर्ति कहती है, 'मैं दिल से आभारी हूं अपनी सहेली और बुन्देलखंड सेवा संस्थान की, जिन्होंने मेरी जिंदगी को अंधेरे में जाने से बचा लिया।' आज कीर्ति न सिर्फ पढ़ाई में आगे बढ़ रही है, बल्कि अपनी सहेली के साथ मिलकर गांव और स्कूल में बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता फैलाने का कार्य भी कर रही है।
...और उनका बचपन सुरक्षित रह सके
बुन्देलखंड सेवा संस्थान के निदेशक वासुदेव ने कहा, 'आज भी कई गांवों में गरीबी और अशिक्षा के कारण बाल विवाह जैसी कुप्रथा जारी है। परिजन जिम्मेदारियों से बचने के लिए कम उम्र में ही बच्चियों की शादी कर देते हैं, जिससे उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। हम इस सामाजिक अपराध के खिलाफ गांव-गांव जाकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं, ताकि बेटियां शिक्षा पाएं, आत्मनिर्भर बनें और उनका बचपन सुरक्षित रह सके।' यह कहानी बताती है कि जागरूकता और सही सहयोग से बाल विवाह जैसी बुराई को रोका जा सकता है।