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Artificial Intelligence में India का बुरा हाल ,कैसे बनेगा Superpower ?

हम तकनीक में अमेरिका की बात करते हैं, चीन की बात करते हैं लेकिन भारत की बात क्‍यों नहीं करते। दुनिया में तकनीक के रोज नए नए अविष्‍कार हो रहे हैं। इसमें भारत की पोजीशन क्‍या है ? इसमें हमारा काई योगदान क्‍यों नहीं है और अगर ,नहीं है तो क्‍यों नहीं ?

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Suraj Kumar
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क।

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आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के मामले में अभी तक ओपन एआई का चैटजीपीटी ही सबसे आगे था। हाल ही चीन की टेक कम्‍पनी डीपसीक ने अपना एआई मॉडल लॉन्‍च किया। इसने ओपन आई के साम्राज्‍य को महज हफ्ते दो के भीतर ही खत्‍म कर दिया। हम अमेरिका की बात करते हैं, चीन की बात करते हैं लेकिन भारत की बात क्‍यों नहीं करते। दुनिया में तकनीक के रोज नए नए अविष्‍कार हो रहे हैं। इसमें भारत की पोजीशन क्‍या है ? इसमें हमारा काई योगदान क्‍यों नहीं है और अगर ,नहीं है तो क्‍यों नहीं ? इस सवाल की सोशल मीडिया पर इस समय बाढ़ आ गई है। ये सवाल जायज भी है, कहीं ऐसा न हो कि हम सिर्फ दूसरों की ही बात करते रह जाएं और वे आगे निकल जाएं। 

टेक वर्ल्‍ड में चीन का है दबदबा 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा तकनीक का बाजार है। फेसबुक से लेकर यूट्यूब तक कई टेक प्‍लेटफॉर्म का इस्‍तेमाल भारत में सबसे ज्‍यादा होता है। दुनिया नई तकनीक ईजाद करती है और उसे भारत में बेचने का प्‍लान करती है। रिसर्च और टेक्‍नोलॉजी के मामले में चीनी कम्‍पनियों का दबदबा कायम है। इसके बाद अमेरिका का नम्‍बर आता है। एक रिपोर्ट के अनुसार टॉप 64 कम्‍पनी में से 57 पर चीन का कब्‍जा है। 

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भारत का क्‍या है हाल ?

भारत ने तकनीक के क्षेत्र में पिछले एक दसक में लम्‍बी छलांग मारी है। साल 2023 में आई एक रिपोर्ट बताती है क‍ि तकनीक के मामले में भारत शीर्ष पांच देशों में आता है। पहले इसका नम्‍बर 37वा था। भारत का रिसर्च के क्षेत्र मे एक्‍सपर्ट की कमी को भी उजागर करती है।  वर्ष 2003 से 2023 के बीच पिछले दो दशकों में टेक्‍नोलॉजी इंस्‍टीट्यूट में टॉप 64 में केवल पांच भारतीय संस्थान ही शामिल हैं।

ये वजह

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रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कई विदेशी कम्‍पनी साइंटिस्‍ट को अपनी ओर खींच लेती हैं। कई भारतीय वैज्ञानिकों को विदेशी महंगे पैकेज या अधिक सुविधाएं देकर अपने यहां नौकरी पर रख लेती हैं। ये भारतीय वैज्ञानिक फिर वापस लौटकर नही आते हैं, जिससे भारत की तकनीकी क्षमताएं प्रभावित होती हैं। अमेरिका में काम करने वाले 26 लाख एशियाई इंजीनियर  वैज्ञानिकों में से लगभग 10 लाख भारतीय हैं।   

 

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