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Black Hole पर शोध करने वाली साइंटिस्ट प्रियंवदा नटराजन ने कहा- प्रौद्योगिकी विकास से खोज में तेजी आ रही

ब्लैक होल पर अपने महत्वपूर्ण शोध के लिए प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक प्रियंवदा नटराजन का कहना है कि कंप्यूटर तकनीक में हो रही प्रगति के कारण विज्ञान में बड़े बदलाव आ रहे हैं। अब किसी नए विचार का जन्म और उसे साबित करने के बीच का समय बहुत कम हो गया है।

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Pratiksha Parashar
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ब्लैक होल पर अपने महत्वपूर्ण शोध के लिए प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक प्रियंवदा नटराजन का कहना है कि कंप्यूटर तकनीक में हो रही प्रगति के कारण विज्ञान में बड़े बदलाव आ रहे हैं। अब किसी नए विचार का जन्म और उसे साबित करने के बीच का समय बहुत कम हो गया है, जिससे खोज की गति तेज हो गई है। येल विश्वविद्यालय में खगोल विज्ञान और भौतिकी की प्रोफेसर नटराजन ने हाल ही में एक बातचीत के दौरान, "गणना में हुई प्रगति के कारण नए विचारों और उपकरणों का मिलन संभव हुआ है, जिससे नए परीक्षण और विचारों को साबित करने के तरीके विकसित हो रहे हैं। यह विज्ञान में एक क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है।"

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ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण

अत्यधिक सघन पदार्थ से बने ब्लैक होल में इतना तीव्र गुरुत्वाकर्षण होता है कि प्रकाश भी उससे बच नहीं सकता। आमतौर पर इसे किसी तारे के ‘मरने’ वाले चरण में बनने वाला माना जाता है। नटराजन ने 2005-06 में पहली बार यह प्रस्ताव रखा था कि ब्लैक होल बनने का एक और तरीका भी होना चाहिए, जिसमें पहले किसी तारे का निर्माण हुए बिना सीधे ब्लैक होल बनने की ‘प्रत्यक्ष पतन’ प्रक्रिया शुरू हो जाए। उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रत्यक्ष पतन प्रक्रिया का एक उदाहरण एक बाथटब है - जब आप स्नान कर लेते हैं और प्लग खींच देते हैं, तो आप देखते हैं कि पानी बहुत तेजी से एक भंवर में नीचे जा रहा है।’’

"गुरुत्वाकर्षण आकाशगंगाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार है"

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 नटराजन ने कहा, ‘‘प्रारंभिक ब्रह्मांड में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। डार्क मैटर के चारों ओर उपस्थित सभी गैस (मुख्य रूप से हाइड्रोजन) - जिनके द्वारा लगाया गया गुरुत्वाकर्षण आकाशगंगाओं के निर्माण के लिए जिम्मेदार है - किसी तारे का निर्माण नहीं करती हैं, बल्कि ब्लैक होल का निर्माण करती हैं।’’ ब्लैक होल बनाने के उनके क्रांतिकारी विचार को शुरू में वैज्ञानिक समुदाय द्वारा संदेह की दृष्टि से देखा गया था। नटराजन ने परिचर्चा से पहले कहा, ‘‘लोगों ने कहा, ओह, क्या यह वास्तव में ब्रह्मांड में हो सकता है? यह सिर्फ एक सिद्धांत है! यह संभव नहीं है। खैर, निश्चित रूप से, यह तब तक एक सिद्धांत है जब तक आपको इसका समर्थन करने वाले आंकड़े नहीं मिल जाते।’’

‘प्रत्यक्ष पतन वाला ब्लैक होल’

ज्ञान प्राप्ति की वैज्ञानिक विधि में अवलोकन, प्रयोग और साक्ष्य-आधारित तर्क के माध्यम से विश्व को समझना शामिल है। नटराजन ने याद करते हुए कहा, ‘‘हमें उस विचार को विस्तार से समझाने में समय लगा, जो उस समय एक साधारण विचार था, क्योंकि गणनाएं इस स्तर की नहीं थीं कि यह पता लगाया जा सके कि ‘प्रत्यक्ष पतन वाला ब्लैक होल’ कैसा दिखेगा।’’ 

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कोयंबटूर में पली-बढ़ीं नटराजन

खगोल भौतिकी विज्ञानी नटराजन तमिलनाडु के कोयम्बटूर में जन्मी और दक्षिणी दिल्ली में पली-बढ़ी हैं। नटराजन को 2024 में ‘टाइम’ मैगजीन के 100 प्रभावशाली लोगों में से एक नामित किया गया था। नटराजन ने अपनी वैज्ञानिक यात्रा के बारे में कहा, ‘‘प्रेरणा यह थी कि ‘क्या होगा यदि आप एक ऐसे ब्लैक होल का पता लगा सकें, जो जन्म से ही भारी होने के लाभ के साथ पैदा हो?’’ तो, आप किसी ऐसी चीज से शुरुआत कर सकते हैं जिसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से 10,000 गुना या यहां तक ​​कि 100,000 गुना हो।’’ 

ब्लैक होल की पहली खोज

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खगोल भौतिक विज्ञानी ने कहा, ‘‘इसलिए कंप्यूटरों को पर्याप्त कुशल बनने में 10 वर्ष लग गए तथा हमने कृत्रिम ब्रह्मांड में ऐसी वस्तुओं की खोज करने के लिए तकनीक विकसित कर ली।’’ उन्होंने कहा, ‘‘और जैसे-जैसे यह धीरे-धीरे गति पकड़ने लगा, यह देखना बहुत दिलचस्प था कि कैसे सिद्धांत साबित होने लगा। एक विचार की स्वीकृति की इस प्रक्रिया को देखना बहुत दिलचस्प रहा है।’’ ब्लैक होल की पहली खोज 1964 में की गई थी। ‘सिग्नस एक्स-1’ नामक इस ब्रह्मांडीय पिंड की पहचान ‘मिल्की वे’ आकाशगंगा के भीतर की गई थी और यह एक्स-रे उत्सर्जित करता था। 

प्रयोग में समय कम हो गया है

नटराजन ने अंतरिक्ष के प्रति उत्साही अनुसंधानकर्ताओं और राजनयिकों सहित आईआईसी सभा में कहा, ‘‘आज के समय में विशेष बात यह है कि जब कोई वैज्ञानिक किसी विचार या किसी चीज के बारे में सोचने के नए तरीके को प्रस्तावित करने में सक्षम होता है, और जब वह वास्तव में प्रयोगात्मक रूप से, अनुभवजन्य रूप से मान्य होता है, तो उसके बीच लगने वाला समय उल्लेखनीय रूप से कम हो गया है।’’                    

पत्रिकाओं में प्रदर्शित हुए साक्ष्य

जेम्स वेब स्पेस दूरबीन से प्राप्त तस्वीरों का उपयोग करते हुए उनकी टीम ने ‘नेचर’ और ‘द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लेटर्स’ सहित पत्रिकाओं में इस सिद्धांत के समर्थन में साक्ष्य प्रकाशित किए हैं। नटराजन की टीम ने 2017 के एक अनुसंधान पत्र में दिसंबर 2021 में इसके प्रक्षेपण से बहुत पहले ही यह भविष्यवाणी कर दी थी कि दूरबीन वास्तविक ब्रह्मांड में क्या पता लगा सकती है। 

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इनपुट: आईएएनएस

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