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क्रांतिकारी बदलाव : अब आप सोचिए और AI खुद लिख देगा, बोले बिना भी!

ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने ऐसा AI मॉडल बनाया है जो दिमाग की तरंगें पढ़कर इंसानी सोच को शब्दों में बदल सकता है। यह तकनीक लकवाग्रस्त लोगों के लिए नई उम्मीद बन सकती है।

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Ajit Kumar Pandey
क्रांतिकारी बदलाव : अब आप सोचिए और AI खुद लिख देगा, बोले बिना भी! | यंग भारत न्यूज

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नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क । ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी क्रांतिकारी एआई तकनीक विकसित की है जो सिर्फ इंसानी सोच को पढ़कर उसे शब्दों में बदल देती है। यानी अब अगर कोई बोल नहीं सकता, फिर भी सिर्फ सोचने भर से उसका संदेश लिखा जा सकेगा। यह तकनीक लकवाग्रस्त लोगों के लिए एक नई उम्मीद बनकर सामने आई है।

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क्या कभी आपने सोचा है कि बिना कुछ बोले, सिर्फ सोचने से ही कंप्यूटर पर पूरा वाक्य लिख जाए? अब यह कल्पना नहीं, बल्कि हकीकत बन चुकी है। ऑस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा एआई मॉडल तैयार किया है जो इंसानी दिमाग की तरंगों को पढ़कर उसे शब्दों में बदल देता है।

इस एआई तकनीक में ईईजी (इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम) के ज़रिए मस्तिष्क की गतिविधियों को मापा जाता है। यानी यह तकनीक यह समझ लेती है कि व्यक्ति क्या सोच रहा है – और वही सोच कंप्यूटर स्क्रीन पर लिखकर दिखा देती है।

कैसे काम करता है यह एआई मॉडल?

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इस क्रांतिकारी एआई मॉडल को 128 चैनलों वाले ईईजी हेडसेट से जोड़ा गया है। व्यक्ति के दिमाग में जैसे ही कोई विचार आता है, यह मशीन उसकी विद्युत तरंगों को पढ़ लेती है। वैज्ञानिकों ने इसे ट्रेन करने के लिए पहले लोगों को 100 से अधिक शब्द सोचने के लिए कहा। फिर एआई ने उन्हीं सोचों को शब्दों में बदलना सीखा।

इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि जो लोग लकवाग्रस्त हैं, या बोलने में असमर्थ हैं – वे सिर्फ सोचकर संवाद कर सकेंगे।

लकवाग्रस्त मरीज़ों के लिए वरदान

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इस तकनीक से उन लोगों को नई आवाज़ मिलेगी जो स्ट्रोक या किसी न्यूरोलॉजिकल समस्या के कारण बोल नहीं सकते। सिर्फ एक ईईजी डिवाइस के सहारे उनका मन क्या कहना चाहता है, वह टेक्स्ट में बदल जाएगा। इस दिशा में यह एआई भविष्य में मेडिकल फील्ड में क्रांति ला सकता है।

यह तकनीक भविष्य में कंप्यूटर को सिर्फ सोच से कंट्रोल करने में मददगार हो सकती है।

वर्चुअल असिस्टेंट्स, हेल्थकेयर और शिक्षा के क्षेत्र में नई संभावनाएं खुलेंगी।

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जो लोग लकवाग्रस्त या कोमा में हैं, उनके लिए यह जीवनरेखा बन सकती है।

क्या आप इससे सहमत हैं? क्या यह भविष्य बदल देगा? अपनी राय कमेंट में ज़रूर दें! 

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