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death Penality
दुनिया के बहुत से देशों में मृत्युदंड की सजा को समाप्त कर दिया गया है या कुछ दुर्लभ मामलों के लिए सीमित किया गया है। हालांकि अब भी कई देश हैं, जहां यह जारी है। 117 देशों ने फांसी की सजा को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। 9 देशों ने युद्ध के दौरान किए गए अपराधों को छोड़कर बाकी सब में मौत की सजा पर रोक लगा दी गई है। 23 देश ऐसे हैं, जहां मौत की सजा अब भी दी जाती है, लेकिन पिछले दस सालों में किसी को भी यह सजा नहीं दी गई। जबकि भारत सहित 58 देशों में मौत की सजा अब भी दी जाती है। डालते हैं एक नजर।.
जर्नल ऑफ न्यूरो सर्जरी की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत समेत दुनिया के 58 देशों में मृत्युदंड के लिए फांसी सबसे बेहतरीन तरीका माना जाता है। दुनिया के 33 देशों में तो फांसी ही मृत्युदंड देने का एकमात्र जरिया है। फांसी देने का यह तरीका विलियम मारवुड ने दिया था।
भारत में वर्ष 2025 तक 561लोगों को मौत की सजा सुनाई गई है। हालांकि देश में अंतिम बार वर्ष 2020 में निर्भया गैंगरेप के 4 दोषियों को फांसी दी गई थी।
भारत में मौत की सजा पाए कैदियों की संख्या 561
नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के प्रोजेक्ट 39A की "डेथ पेनल्टी इन इंडिया: एनुअल स्टैटिस्टिक्स" रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2025 के अंत तक भारत में 561 कैदी मौत की सजा के कारण जेलों में हैं। मृत्यु दंड की यह संख्या 2004 के बाद सबसे अधिक थी। वर्ष 2000 के बाद अब तक सिर्फ 5 बार फांसी की सजा दी गई है। 2004 में धनंजय चटर्जी, 2012 में अजमल कसाब, 2013 में अफजल गुरु, 2015 में याकूब मेमन और 2020 में वर्ष 2012 के चर्चित निर्भया गैंगरेप कांड के 4 दोषियों को फांसी दी गई है। तब से (मार्च 2025 तक) कोई नई फांसी नहीं हुई है, जो दर्शाता है कि सजा देने में देरी और दया याचिकाओं की प्रक्रिया कफी लंबी है।
निचली अदालतें हर साल सुनाती हैं मौत की सजा
भारत में हर साल निचली अदालतें सैकड़ों लोगों को मौत की सजा सुनाती हैं (2022 में 165 को सजा सुनाई गई), लेकिन अपीलीय अदालतें हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट अक्सर इसे उम्रकैद में बदल देती हैं। निचली अदालतों ने वर्ष 2024 में 139 लोगों को फांसी की सजा सुनाई है। यह जानकारी प्रोजेक्ट 39A की रिपोर्ट से मिली है, जो दिल्ली के नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का एक आपराधिक न्याय कार्यक्रम है। इस कारण मौत की सजा वाले कैदियों की संख्या बढ़ती जा रही है, लेकिन इस पर अमल की दर काफी कम है। उत्तर प्रदेश, गुजरात, झारखंड, और महाराष्ट्र जैसे राज्य डेथ रो वाले कैदियों की संख्या में अग्रणी हैं।
मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में मौत की सजा के लिए फांसी दिए जाने को बर्बर तरीका बताते हुए इसे बदलने की मांग को लेकर हाल ही में याचिका दायर की गई थी। सर्वोच्च अदालत में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ऋषि मल्होत्रा ने कहा कि गरिमापूर्ण तरीके से मृत्यु मिलना मौलिक अधिकार है। इसलिए मौत की सजा के लिए फांसी दिए जाने पर पुनर्विचार हो। याचिकाकर्ता ने कहा कि फांसी की प्रक्रिया पूरी होने में 30-40 मिनट का वक्त लगता है। डॉक्टर अंत में सजायाफ्ता मरा या नहीं इसकी जांच करते हैं। यह बहुत ही दर्दनाक प्रक्रिया है। इस दौरान कोर्ट में कई पुराने फैसलों का जिक्र भी किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने 1983 में दीना बनाम भारत सरकार मामले में मौत के लिए फांसी को सबसे बेहतरीन माना था।
धर्मग्रंथों में भी मृत्युदंड का उल्लेख
भारत में मृत्युदंड की सजा का उल्लेख धर्मग्रंथों में भी है। मनुस्मृति में मृत्युदंड को लेकर कई श्लोक का जिक्र है। महाभारत काल में भी मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती थी। मौर्य वंश की शासन काल में भी मृत्युदंड का उल्लेख मिलता है। ऐसे में आइए जानते हैं भारत के इतिहास में मौत के लिए कौन-कौन सा तरीका इस्तेमाल किया जाता था?
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सूली पर चढ़ाना:
ईसा पूर्व में भारत में मृत्युदंड का सबसे बेहतरीन और लोकप्रिय तरीका माना जाता था। एक लकड़ी के बीम पर अपराधी को बांध दिया जाता था। साथ ही दंडित मनुष्य एक नुकीले लोहे के डंडे पर बैठा दिया जाता था और उसके सिर पर मुंगरे से आघात किया जाता था। इससे नीचे से ऊपर तक उसका सारा शरीर छिद जाता था और वह मर जाता था। यह सबसे क्रूर तरीका माना जाता था, क्योंकि इस तरीके में मरने में हफ्ते और महीने का वक्त भी लगता था। सूली पर चढ़े व्यक्ति को खाने भी नहीं दिया जाता था।
2. जलाकर मरवा देना:
मृत्युदंड की इस तरीके का जिक्र अशोक शासन काल में मिलता है: अशोक ने अपनी अंतिम पत्नी तिष्यरक्षा को जला कर मारने का आदेश दिया था। इतिहास के मुताबिक अशोक से शादी करने के बाद तिष्यरक्षा उसके बेटे कुणाल से प्रेम कर बैठी थी, जिसे कुणाल ने ठुकरा दिया। इसके बाद तिष्यरक्षा ने कुणाल के दोनों आंखें निकलवा दीं। इस बात की जानकारी जब अशोक को लगी तो उन्होंने तिष्यरक्षा को जलाकर मारने का हुक्म सुना दिया।
3. सिर धड़ से अलग करना:
मुस्लिम आक्रांताओं के भारत आने और फिर दिल्ली सल्तनत पर कब्जा करने के बाद मौत की सजा के तरीकों में बदलाव आया। अब तुरंत मारने के लिए तलवार से सीधे सिर को धड़ से अलग कर दिया जाता था। गुलाम और खिलजी वंश के दौरान इस तरह की सजा ज्यादा प्रचलित थी। दंडित व्यक्ति को हाथ बांधकर लाया जाता था और फिर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था। इस तरीके में सबसे कम वक्त लगता था.
4. हाथी से कुचलवाना:
मुहम्मद बिन तुगलक और हुमायूं के वक्त मौत की सजा देने के लिए दंडित व्यक्ति को एक बंद मैदान में खूंखार हाथी के आगे छोड़ दिया जाता था। हाथी व्यक्ति को कुचल कर मारता था और इस आयोजन का दरबारी मजा लेते थे। हाथी से कुचलवाकर मारने का तरीका को जहांगीर काल में भी प्रसिद्ध था। हालांकि, बाद में मुगलों ने इस तरीके को खत्म कर दिया।
5. पत्थर से पीटकर हत्या:
औरंगजेब को लेकर देश में इनदिनों बहस छिड़ी है। जानते हैं कि औरंगजेब शासन काल में रेप और दुर्लभतम मामलों के दोषियों को पत्थर से पीट-पीटकर हत्या की सजा दी जाती थी। इसके अलावा औरंगजेब शासन में दंड पाए व्यक्ति को चार हाथियों के पांव से बांधकर हाथियों को अलग दिशा में दौड़ा दिया जाता था। इससे उसकी मौत हो जाती थी। औरंगजेब शासन में सिर काटकर उसे चौराहे पर टांग भी दिया जाता था, जिससे खिलाफत करने की जुर्रत कोई न कर सके। औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह का सिर राजदरबार में दिखाने के लिए मंगवाया था।
6. फांसी की सजा :
ब्रिटिश के भारत आने के बाद मौत की सजा के तरीकों में बदलाव किया गया।1899 के बाद भारत में मौत के लिए फांसी की सजा दी जाती है। ब्रिटिश हुकुमत के वक्त दुनिया में 200 तरहों के अपराध के लिए मौत की सजा सुनाई जाती थी। 19वीं शताब्दी के आसपास 200 को कम कर 100 तरहों के अपराध के लिए मृत्युदंड का प्रावधान किया गया। आजादी के बाद भी भारत में फांसी के तरीके को ही बेहतर माना गया जो अब तक जारी है।