नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क ।
High Court | एक दुष्कर्म पीड़िता अदालत की चौखट पर न्याय की भीख मांगने गई थी। न्याय की गुहार लगा रही पीड़िता को ही कटघरे में खड़ा कर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दुष्कर्म केस में आरोपी को जमानत देते हुए चौंकाने वाला बयान भी दे दिया।
बता दें कि जस्टिस संजय कुमार सिंह की बेंच ने कहा कि "अगर पीड़िता के आरोप सही भी मान लिए जाएं, तो वह खुद ही इस मुसीबत के लिए जिम्मेदार है।" कोर्ट ने इसे "सहमति से सेक्स" का मामला बताते हुए आरोपी निश्चल चांडक को जमानत दे दी।
हालांकि मार्च 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में कहा था कि "स्तन दबाना और पायजामा खोलना बलात्कार की कोशिश नहीं है।"
supreme court | जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को "असंवेदनशील और अमानवीय" बताया था।
क्या हुआ था ?
- 21 सितंबर 2024 को एमए की छात्रा दोस्तों के साथ दिल्ली के हौज खास में पार्टी करने गई।
- आरोपी निश्चल चांडक भी वहां मौजूद था। छात्रा ने शराब पी और नशे में थी।
- रात 3 बजे, निश्चल ने उसे गुरुग्राम के एक फ्लैट पर ले जाकर दो बार बलात्कार किया।
- 1 सितंबर 2024 को छात्रा ने नोएडा के सेक्टर 126 थाने में केस दर्ज कराया।
- 11 दिसंबर 2024 को पुलिस ने निश्चल को गिरफ्तार किया।
कोर्ट ने क्या कहा?
- "पीड़िता बालिग है, उसने खुद शराब पी और देर रात तक पार्टी की।"
- "मेडिकल रिपोर्ट में हाइमन टूटा मिला, लेकिन डॉक्टर ने यौन हिंसा की पुष्टि नहीं की।"
- "उसने खुद मुसीबत को न्योता दिया, इसलिए वह भी जिम्मेदार है।"
- "यह सहमति से सेक्स का मामला लगता है।"
विरोध और पिछले विवाद
- मार्च 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अन्य मामले में कहा था कि "स्तन दबाना और पायजामा खोलना बलात्कार की कोशिश नहीं है।"
- सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को "असंवेदनशील और अमानवीय" बताया था।
- अब इस नए फैसले पर भी महिला संगठनों और कानूनविदों ने सवाल उठाए हैं।
क्या कहता है कानून?
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 के अनुसार, अगर महिला नशे में है या सहमति देने की स्थिति में नहीं है, तो सेक्स बलात्कार माना जाएगा।
- न्यायालयों को "विक्टिम ब्लेमिंग" से बचना चाहिए, लेकिन इस मामले में कोर्ट ने पीड़िता को ही दोषी ठहराया।
सोशल मीडिया पर तूफान
- #JusticeForRapeVictim और #ShameOnAllahabadHC ट्रेंड कर रहे हैं।
- नेटिजन्स ने कोर्ट के फैसले को "पितृसत्तात्मक सोच" का उदाहरण बताया।
- महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में हस्तक्षेप की मांग की है।
क्या होगा आगे?
- पीड़िता सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है।
- राजनीतिक दलों और मानवाधिकार संगठनों ने इस फैसले की निंदा की है।
- कानून में सुधार की मांग फिर से तेज हुई है।
यह मामला एक बार फिर भारतीय न्याय प्रणाली में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता की कमी को उजागर करता है। क्या अब सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करेगा?
(यह खबर कोर्ट के दस्तावेजों और सोशल मीडिया प्रतिक्रियाओं पर आधारित है।)