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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क । ब्रिटेन की हाई-सिक्योरिटी जेलों के अंदर एक खामोश जंग छिड़ी है। सलाखों के पीछे इस्लामी कट्टरपंथी गिरोहों का दबदबा इस कदर बढ़ गया है कि जेलें अब सिर्फ सजा काटने की जगह नहीं रहीं- वे कट्टरपंथ, भर्ती और ब्रेनवॉशिंग का गढ़ बन चुकी हैं।
12 अप्रैल 2025 को एचएमपी फ्रैंकलैंड जेल में हुए एक खौफनाक हमले ने इस खतरनाक हकीकत को फिर उजागर कर दिया। मैनचेस्टर एरीना बम धमाके का दोषी हाशिम अबेदी और उसके साथियों ने गर्म तेल और धारदार हथियारों से तीन जेल अधिकारियों पर हमला किया। दो अधिकारी बुरी तरह घायल हुए, और यह घटना ब्रिटेन की जेलों में पनप रहे कट्टरपंथी नेटवर्क की भयावह तस्वीर सामने लाई।
फ्रैंकलैंड जेल: शरिया का गढ़!
लंदन के एक प्रमुख अखबार की रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया- फ्रैंकलैंड जेल अब जेल प्रशासन के हाथों में नहीं, बल्कि इस्लामी गिरोहों के कब्जे में है। यहां कैदी डर के साये में जीते हैं। इन गिरोहों के ‘एमिर’-खुद को धार्मिक नेता बताने वाले कट्टरपंथी-शरिया अदालतें चलाते हैं।
नियम तोड़ने वाले कैदियों को कोड़े मारने, शारीरिक सजा देने, या रसोई-नहाने की सुविधाओं से वंचित करने जैसी सजाएं दी जाती हैं। जो इनके खिलाफ बोलता है, उसे हिंसा का सामना करना पड़ता है। कुछ कैदियों को तो अपनी जान बचाने के लिए अलग सेल में शरण लेनी पड़ रही है।
Britain : पूर्व कैदी गैरी (बदला हुआ नाम) ने बताया, “ये गिरोह जेल को अपने हिसाब से चलाते हैं। ड्रग्स, हथियार, और ब्लैकमनी का कारोबार उनके हाथ में है। अगर आप उनके नियम नहीं मानते, तो या तो आप पर हमला होता है या आपको जबरन उनके साथ शामिल होना पड़ता है।” गैरी ने एक घटना का जिक्र किया, जहां एक कैदी ने शरिया नियमों का पालन करने से इनकार किया। अगली सुबह उसे बैरक में लहूलुहान पाया गया।
कट्टरपंथ का जाल: भर्ती और ब्रेनवॉश
2001 के 9/11 हमलों के बाद ब्रिटेन में आतंकवाद से जुड़े कैदियों की संख्या में उछाल आया। 2017 में आतंकवाद से जुड़े 185 मुस्लिम कैदी जेलों में थे, जो कुल आतंकी कैदियों का 70% थे। 2024 तक यह संख्या 157 हो गई, लेकिन यह अभी भी आतंकी कैदियों का 62% है। इन आंकड़ों के पीछे एक डरावनी हकीकत है- जेलें अब कट्टरपंथियों के लिए भर्ती और ब्रेनवॉशिंग का अड्डा बन चुकी हैं।
पूर्व जेल गवर्नर इयान एचसन ने 2016 में चेतावनी दी थी कि जेलें “कट्टरपंथ का पोषण केंद्र” बन रही हैं। उनकी सिफारिश पर खतरनाक आतंकियों के लिए सेपरेशन सेंटर्स बनाए गए, लेकिन हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ गए। एक अन्य पूर्व कैदी रयान ने बेलमार्श जेल का अनुभव साझा किया।
“वहां आतंकी कैदी किसी मसीहा जैसे थे। उनके पास एक आकर्षण था। आम अपराधी उनके संपर्क में आकर धीरे-धीरे कट्टरपंथ की राह पकड़ लेते थे। मैंने देखा कि कैसे युवा कैदी, जो ड्रग्स के लिए जेल आए थे, कुछ महीनों में जिहादी भाषण देने लगे।”
2019 की एक सरकारी रिपोर्ट में ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ नामक गिरोहों की मौजूदगी की पुष्टि हुई। इनका ढांचा संगठित है- लीडर, रिक्रूटर, एंफोर्सर, और फॉलोअर्स। ये गिरोह धर्म के नाम पर कैदियों को डराते हैं, लालच देते हैं, या हिंसा का सहारा लेते हैं। कुछ जेलों में तो ‘जिज्या’ नामक टैक्स तक वसूला जाता है, जो गैर-मुस्लिम कैदियों से जबरन लिया जाता है।
जेल प्रशासन की लाचारी
ब्रिटिश प्रिजन ऑफिसर्स एसोसिएशन के महासचिव स्टीव गिलन ने खुलासा किया कि जेल स्टाफ अक्सर नस्लवाद या इस्लामोफोबिया के आरोपों के डर से इन गिरोहों पर सख्ती नहीं करता। प्रिजन गवर्नर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मार्क इके ने माना, “हमने हालात को बेहतर तरीके से संभालना सीख लिया है, लेकिन समस्या जड़ से खत्म नहीं हुई।”
हाल ही में एक वकील ने दावा किया कि फ्रैंकलैंड जेल में इस्लामी गिरोहों के खिलाफ बोलने वाले कैदियों को अपनी सुरक्षा के लिए अलग सेल में रखना पड़ रहा है। जेल प्रशासन ने इसे “निराधार” बताया, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि प्रशासन अपनी कमियों को छिपाने की कोशिश करता है।
खतरनाक भविष्य: जेलें बनेंगी आतंक का गढ़ ?
सुरक्षा विशेषज्ञ इयान एचसन ने चेतावनी दी, “फ्रैंकलैंड जेल एक बड़े आतंकी हमले की ओर बढ़ रही थी। जेल प्रशासन की लापरवाही अब खुलकर सामने आ रही है।” 2024 तक ब्रिटेन की जेलों में मुस्लिम कैदियों की संख्या 16,000 तक पहुंच गई है, जो 2002 के 5,500 से तीन गुना ज्यादा है। यह बढ़ती संख्या और गिरोहों का संगठित ढांचा जेलों को आतंक का गढ़ बनाने की ओर इशारा करता है।
कट्टरपंथी कैदी न सिर्फ अन्य कैदियों को भर्ती करते हैं, बल्कि जेल से बाहर भी अपने नेटवर्क को मजबूत करते हैं। ड्रग्स, हथियार, और काले धन का कारोबार इन गिरोहों की ताकत बढ़ाता है। कुछ मामलों में, भ्रष्ट जेल कर्मचारियों की मिलीभगत से अल-कायदा के वीडियो और कट्टरपंथी साहित्य तक कैदियों तक पहुंचाया गया।
सुरक्षा विशेषज्ञों की अहम
सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक जेल प्रशासन कट्टरपंथी गिरोहों के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाएगा, यह खतरा बढ़ता जाएगा। सेपरेशन सेंटर्स को और प्रभावी करना, जेल कर्मचारियों को बेहतर प्रशिक्षण देना, और कट्टरपंथी साहित्य पर रोक लगाना जरूरी है। साथ ही, चैपलेंसी सिस्टम में सुधार और कट्टरपंथी इमामों पर निगरानी बढ़ानी होगी।
सलाखों के पीछे का सच
ब्रिटेन की जेलें अब सिर्फ अपराधियों को सजा देने की जगह नहीं रहीं। वे एक ऐसी खतरनाक दुनिया बन चुकी हैं, जहां शरिया का कानून चलता है, कट्टरपंथी विचार पनपते हैं, और मासूम कैदी हिंसा और डर के साये में जीते हैं। हाशिम अबेदी का हमला इस बात का सबूत है कि जेल प्रशासन इस जंग में कमजोर पड़ रहा है। सवाल यह है- क्या ब्रिटेन अपनी जेलों को कट्टरपंथ के चंगुल से छुड़ा पाएगा, या ये सलाखें आतंक का नया ठिकाना बन जाएंगी?