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बेंगलुरु से पुरी तक: आखिर कब सीखेंगे हम भगदड़ से बचना ?

श्रद्धा और भक्ति का यह अवसर अचानक अफरा-तफरी और मातम में बदल गया। हजारों सुरक्षाकर्मियों की तैनाती, ड्रोन, सीसीटीवी कैमरे और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे अत्याधुनिक निगरानी उपकरणों के बावजूद यह हादसा नहीं टाला जा सका। 

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Mukesh Pandit
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Dr Satendarji

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बेंगलुरु में हुई भगदड़ की त्रासदी को देश अभी भूला नहीं था, जिसमें 11 लोगों की जान चली गई थी, और अब एक और दर्दनाक हादसा पुरी की पवित्र रथ यात्रा के दौरान हुआ। इस भगदड़ में तीन श्रद्धालुओं की मौत हो गई और कई घायल हो गए। श्रद्धा और भक्ति का यह अवसर अचानक अफरा-तफरी और मातम में बदल गया। हजारों सुरक्षाकर्मियों की तैनाती, ड्रोन, सीसीटीवी कैमरे और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे अत्याधुनिक निगरानी उपकरणों के बावजूद यह हादसा नहीं टाला जा सका। 

बचने की ठोस व्यवस्था क्यों नहीं हो पाई?

यह सवाल एक बार फिर उठता है—जब हमने पहले भी ऐसे हादसे देखे हैं, तो अब तक इससे बचने की ठोस व्यवस्था क्यों नहीं हो पाई? और क्या किया जा सकता है ताकि करोड़ों श्रद्धालु, जो आस्था और विश्वास के साथ इन आयोजनों में शामिल होते हैं, सुरक्षित रह सकें? भारत में धार्मिक आयोजनों, मंदिरों और तीर्थ यात्राओं के दौरान भगदड़ की घटनाएं आम हैं। 1996 से अब तक 4,000 से अधिक ऐसी घटनाएं दर्ज हो चुकी हैं, जिनमें हजारों लोगों की जान गई है। कुंभ मेला जैसे विशाल आयोजनों में भी बार-बार भगदड़ की घटनाएं देखने को मिली हैं, भले ही योजनाएं कितनी भी व्यापक क्यों न हों। पुरी की हालिया घटना यह दर्शाती है कि केवल बैरिकेड्स और पुलिस बल से काम नहीं चलेगा, बल्कि एक समग्र और सूझबूझ भरी रणनीति की आवश्यकता है जो भीड़ की मनोवृत्ति को समझकर पहले से खतरे को पहचान सके।

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मानव व्यवहार की अनिश्चितता

दरअसल, भीड़ प्रबंधन की सबसे बड़ी चुनौती होती है—मानव व्यवहार की अनिश्चितता। भगदड़ अक्सर किसी छोटे से कारण—जैसे अचानक हुई भयावह आवाज या विस्फोट, अफवाह या रास्ते में रुकावट—से शुरू होती है और कुछ ही क्षणों में जानलेवा बन जाती है। पुरी की घटना में भी प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार, असंगठित भीड़ प्रबंधन और समय पर भीड़ का फैलाव न होने के कारण यह हादसा हुआ। भले ही वर्षों में प्रशासन ने भीड़ नियंत्रण के उपायों को मजबूत किया हो, लेकिन भीड़ की मनोविज्ञान और गतिशीलता की प्रवृत्तियों को समझना अब भी एक महत्वपूर्ण कमी बनी हुई है। 

क्या शरारती तत्व अशांति फैलाने की साजिश कर रहे हैं 

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ऐसे में और भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि भीड़ वाले इस प्रकार के आयोजनों में निहित स्वार्थ के कारण कुछ असामाजिक तत्व जानबूझकर अफरातफरी फैलाने की कोशिश कर सकते हैं। सोशल मीडिया और स्थानीय सूत्रों से ऐसे संकेत मिले हैं कि भीड़भाड़ वाले आयोजनों के दौरान कुछ संगठित समूह या शरारती तत्व अशांति फैलाने की साजिश कर सकते हैं। ऐसे में यह बेहद जरूरी हो जाता है कि खुफिया तंत्र को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि स्थानीय स्तर पर भी मजबूत किया जाए। इसके लिए भरोसेमंद मुखबिरों, समुदायिक नेताओं और स्थानीय पुलिस संपर्कों को सक्रिय रूप से जोड़ा जाना चाहिए, ताकि किसी भी संभावित खतरे या अव्यवस्था की कोशिश की जानकारी समय रहते मिल सके।

खुफिया आधारित रणनीति अपनाएं

अब समय आ गया है कि हम प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण से आगे बढ़कर एक सक्रिय, खुफिया आधारित रणनीति अपनाएं। योजना केवल भीड़ के अनुमान और बैरिकेड लगाने तक सीमित न रहे, बल्कि जोखिम मूल्यांकन, ढांचागत तैयारियों और सुरक्षा इनपुट पर आधारित हो। सेंडाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन जैसे अंतरराष्ट्रीय मानक इस दिशा में मार्गदर्शन दे सकते हैं, जो जोखिम को समझने, रोकथाम में निवेश और पूर्व चेतावनी व्यवस्था को मजबूत करने पर जोर देते हैं।

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क्राउड मैनेजमेंट

तकनीक इस कार्य में बहुत मदद कर सकती है, लेकिन यह अकेले पर्याप्त नहीं है। ड्रोन, थर्मल इमेजिंग, फेसियल रिकग्निशन और AI आधारित क्राउड एनालिटिक्स तभी उपयोगी होंगे जब उन्हें संचालित करने वाले लोग प्रशिक्षित हों और तुरंत कार्रवाई कर सकें। सुरक्षा कर्मियों को भीड़ की मनोविज्ञान, आपातकालीन प्रतिक्रिया और त्वरित संवाद कौशल में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। मोबाइल ऐप्स जो रियल टाइम अलर्ट, भीड़ से बचने के मार्ग और इमरजेंसी सेवाएं प्रदान करें, श्रद्धालुओं के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकते हैं।

एक्सेस कंट्रोल सिस्टम

बायोमेट्रिक और RFID आधारित एक्सेस कंट्रोल सिस्टम भी संवेदनशील क्षेत्रों में अनावश्यक भीड़ को रोकने में सहायक हो सकते हैं। लेकिन इन हाईटेक उपायों को जमीनी स्तर पर समुदाय की भागीदारी के साथ जोड़ना ज़रूरी है। स्थानीय निवासी, दुकानदार और स्वयंसेवक—जो स्थल की स्थिति भलीभांति जानते हैं—सुरक्षा योजना में शामिल हों। उनकी सतर्कता और त्वरित रिपोर्टिंग से बड़ा हादसा रोका जा सकता है। भारत को वैश्विक अनुभवों से भी सीखना चाहिए। जापान जैसे देशों में बड़े आयोजनों का कुशल प्रबंधन देखा गया है—जहां स्पष्ट निकासी मार्ग, अनुशासित भीड़ नियंत्रण और प्रभावशाली संचार व्यवस्था होती है। इन मॉडलों को भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढाला जा सकता है, बशर्ते राजनीतिक इच्छाशक्ति और ठोस योजना हो।

इसके साथ ही, हर घटना के बाद सीखना बेहद जरूरी है। हर भगदड़ की गहराई से जांच होनी चाहिए, खामियों की पहचान की जाए, और सुधारात्मक उपायों को संस्थागत रूप दिया जाए। आयोजकों, पुलिस और प्रशासन की भूमिका स्पष्ट हो और एकीकृत कमान के अंतर्गत समन्वय सुनिश्चित किया जाए। जांच रिपोर्टों को सार्वजनिक करना और उनके सुझावों पर कार्रवाई करना पारदर्शिता और जनविश्वास को मजबूत करेगा।

पुरी की घटना केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि मानवीय चूक है—जो हमें याद दिलाती है कि सतर्कता में थोड़ी भी कमी जानलेवा हो सकती है। जैसे-जैसे धार्मिक आयोजनों की संख्या और आकार बढ़ रहा है, हमें तुरंत ठोस कदम उठाने होंगे ताकि श्रद्धा का यह संगम डर का कारण न बने।
केवल खुफिया, सामुदायिक सहभागिता, व्यवहारिक समझ और आधुनिक तकनीक को मिलाकर बनाई गई संयुक्त रणनीति ही ऐसे आयोजनों को सुरक्षित बना सकती है। अब समय आ गया है कि हम कार्रवाई करें—इससे पहले कि कोई और पवित्र दिन एक और राष्ट्रीय शोक दिवस में बदल जाए।

पिछले दो दशकों में हुई प्रमुख भगदड़ की घटनाएं:

  • •जनवरी 2005 – महाराष्ट्र के सतारा ज़िले स्थित मंधर देवी मंदिर में धार्मिक मेले के दौरान लगी आग और अत्यधिक भीड़ के कारण भगदड़ मच गई, जिसमें 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
  • अगस्त 2008 – हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में हुई भगदड़ में 145 श्रद्धालुओं की जान गई, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे शामिल थे।
  • सितंबर 2008 – राजस्थान के जोधपुर स्थित चामुंडा देवी मंदिर में नवरात्रि के अवसर पर 220 से अधिक लोगों की मौत एक भयावह भगदड़ में हो गई।
  • जनवरी 2011 – केरल के सबरीमाला तीर्थ स्थल की संकरी पगडंडी पर एक वाहन पलटने के बाद भगदड़ मच गई, जिसमें 104 श्रद्धालु मारे गए।
  • फरवरी 2013 – उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में कुंभ मेले के दौरान रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में कम से कम 36 लोगों की जान चली गई।
  • अक्टूबर 2013 – मध्य प्रदेश के रतनगढ़ मंदिर के पास पुल गिरने की अफ़वाह से मची भगदड़ में लगभग 115 श्रद्धालु मारे गए।
  • जुलाई 2015 – आंध्र प्रदेश में गोदावरी महा पुष्करम उत्सव के दौरान 27 लोगों की मौत भगदड़ में हो गई।
  • सितंबर 2017 – मुंबई में एल्फिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन और परेल स्टेशन को जोड़ने वाले पुल पर अत्यधिक भीड़ के कारण हुई भगदड़ में 23 लोग मारे गए और 36 घायल हो गए।
  • जनवरी 2022 – जम्मू-कश्मीर के वैष्णो देवी मंदिर के भवन क्षेत्र में भारी भीड़ के कारण हुई भगदड़ में कम से कम 12 श्रद्धालुओं की मौत हो गई।
  • जुलाई 2024 – उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक धार्मिक प्रवचन के बाद भीड़ पर नियंत्रण न रहने के कारण हुई भगदड़ में 120 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई, जिनमें अधिकांश महिलाएं थीं।
  • 8 जनवरी 2025 – आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर में भीड़ नियंत्रण में विफलता के कारण भगदड़ मची, जिसमें 6 लोगों की जान गई और कई घायल हो गए।
    •फरवरी 2025 – उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान हुई भगदड़ में 30 से अधिक श्रद्धालुओं की मौत हो गई और कई घायल हुए, जो भीड़ प्रबंधन की कमियों को फिर उजागर करता है।
  • मई 2025 – गोवा के शिरगांव गांव में श्री लैराई देवी मंदिर के वार्षिक उत्सव के दौरान तड़के हुई भगदड़ में 6 लोगों की मृत्यु और 100 से अधिक लोग घायल हो गए।
  • जून 2025 – बेंगलुरु में कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन (KSCA) स्टेडियम में आरसीबी (रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु) के समर्थकों की भारी भीड़ के बीच मची भगदड़ में 11 प्रशंसकों की मौत हो गई और 47 से अधिक लोग घायल हुए।
  • 27 जून 2025 – ओडिशा के पुरी में रथ यात्रा के दौरान रथ खींचने के स्थान पर हुई भगदड़ में 3 श्रद्धालुओं की जान गई और 50 से अधिक लोग घायल हो गए।
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