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नई दिल्ली, आईएएनएस। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण ( SIR) पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से पहले याचिकाकर्ता एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने उन बिंदुओं को चुनौती दी है, जिस पर चुनाव आयोग ने आधार कार्ड और राशन कार्ड को दस्तावेजों की लिस्ट में शामिल नहीं किया। शनिवार को यह जानकारी एक वकील ने दी।
आधार कार्ड को चुनाव आयोग द्वारा अस्वीकार करना बेतुका
भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा दायर जवाब के प्रत्युत्तर में एडीआर ने कहा कि अनुमोदित सूची में शामिल 11 दस्तावेज भी नकली और गलत तरीके का उपयोग करके प्राप्त किए जा सकते हैं। एडीआर ने कहा, "यह तथ्य कि आधार कार्ड स्थायी निवास प्रमाण पत्र, ओबीसी/एससी/एसटी प्रमाण पत्र और पासपोर्ट के लिए स्वीकार किए जाने वाले दस्तावेजों में से एक है, एसआईआर आदेश के तहत आधार कार्ड को चुनाव आयोग द्वारा अस्वीकार करना बेतुका है।"
अपील करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया
एनजीओ ने निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों (ईआरओ) की विवेकाधीन शक्तियों और एक निश्चित प्रक्रिया के अभाव पर भी चिंता जताई, जो उन्हें मनमाने ढंग से कार्य करने की अनुमति दे सकती है। यह भी आरोप लगाया गया कि जिन मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं, उन्हें चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए पर्याप्त समय नहीं दिया गया है।
10 जुलाई को, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, लेकिन चुनावी राज्य में चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया को रोकने से इनकार कर दिया।
मतदाता सूची में शामिल कराने का समय नहीं
एडीआर ने अपने प्रत्युत्तर में आरोप लगाया कि मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि बिहार में मतदाताओं की अनुपस्थिति में गणना फॉर्म भरे जा रहे थे। एनजीओ ने कहा, "चुनाव अक्टूबर-नवंबर में होने की बात कही गई है, इसलिए बड़ी संख्या में मतदाताओं के पास, जिनके पास दस्तावेज नहीं हैं, लेकिन उन्होंने फॉर्म जमा कर दिया है और जिनके नाम ड्राफ्ट रोल में नहीं हैं, उनके पास खुद को मतदाता सूची में शामिल कराने का समय नहीं है। इसके अलावा अगर प्रवासी मतदाताओं को कुछ ही निर्वाचन क्षेत्रों और जनसांख्यिकी के भीतर समूहीकृत किया जाता है तो उनके नाम हटाने का प्रभाव काफी बड़ा हो सकता है।"
नागरिकता की पुष्टि करना ईआरओ का काम नहीं
एनजीओ ने कहा कि जब चुनाव आयोग ने असम में एसआईआर जैसी प्रक्रिया अपनाई थी तो उन्होंने कहा था कि नागरिकता की पुष्टि करना ईआरओ का काम नहीं है, लेकिन बिहार के मामले में उनका रुख अलग है। इसने गैर-मौजूद मतदाताओं के नाम जोड़ने, विपक्षी दलों का समर्थन करने वाले वास्तविक मतदाताओं के नाम हटाने और मतदान समाप्त होने के बाद वोट डालने के मुद्दे पर राजनीतिक दलों की चिंताओं को भी उजागर किया।
इससे पहले चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए लोगों से भारतीय नागरिकता के प्रमाण मांगने के अपने फैसले का बचाव किया था। आयोग ने कहा कि अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत यह सुनिश्चित करना उसकी जिम्मेदारी है कि सिर्फ भारतीय नागरिकों के नाम ही मतदाता सूची में दर्ज हों। Bihar SIR News | 2025 election Bihar | Bihar | 2025 assembly election Bihar | Aadhaar Card Controversy