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न्यायमूर्ति सूर्यकांत: जानिए कौन हैं अनुच्छेद 370, ओआरओपी जैसे प्रमुख फैसले देने वाले चीफ जस्टिस>
नई दिल्ली, वाईबीएन डेस्क। भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में बृहस्पतिवार को नियुक्त किये गये न्यायमूर्ति सूर्यकांत जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, बिहार मतदाता सूची संशोधन, पेगासस स्पाइवेयर मामला, भ्रष्टाचार और लैंगिक समानता पर कई ऐतिहासिक फैसलों और आदेशों का हिस्सा रहे हैं। उच्चतम न्यायालय के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत 24 नवंबर को पद की शपथ लेंगे। वह लगभग 15 महीने तक प्रधान न्यायाधीश के पद पर बने रहेंगे। वह 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर नौ फरवरी, 2027 को सेवानिवृत्त होंगे।
हिसार जिले में 10 फरवरी, 1962 को जन्मे थे सूर्यकांत
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केंद्रीय कानून मंत्रालय के न्याय विभाग ने एक अधिसूचना जारी करके उनकी नियुक्ति की घोषणा की। न्यायमूर्ति सूर्यकांत को वर्तमान प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त करने की प्रक्रिया पिछले सप्ताह विधि मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी। वह 24 मई, 2019 को शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीश बने थे। न्यायमूर्ति गवई ने 27 अक्टूबर को केंद्र को अगले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम की सिफारिश की थी। हरियाणा के हिसार जिले में 10 फरवरी, 1962 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे न्यायमूर्ति सूर्यकांत एक छोटे शहर के वकील से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचे, जहां वह राष्ट्रीय महत्व और संवैधानिक मामलों के कई फैसलों और आदेशों का हिस्सा रहे।
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कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से प्रथम श्रेणी में Law पोस्टग्रेजुएट
उन्हें 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून में स्नातकोत्तर में ‘प्रथम श्रेणी में प्रथम’ स्थान प्राप्त करने का गौरव भी प्राप्त है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में कई उल्लेखनीय फैसले लिखने वाले न्यायमूर्ति सूर्यकांत को पांच अक्टूबर, 2018 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। उन्हें 2019 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किया गया। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल अनुच्छेद 370 को हटाने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकता के अधिकारों पर फैसले देने के लिए जाना जाता है।
औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून का स्थगित किया था
न्यायमूर्ति सूर्यकांत हाल में राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से संबंधित राष्ट्रपति के परामर्श पर सुनवाई करने वाली न्यायालय की पीठ में शामिल हैं। वह उस पीठ का हिस्सा थे जिसने औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून को स्थगित रखा था, तथा निर्देश दिया था कि सरकार के समीक्षा करने तक इसके तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाएगी।
एसआईआर पर 65 लाख मतदातओं का ब्यौरा देने का कहा था
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने निर्वाचन आयोग से बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर रखे गए 65 लाख मतदाताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने को भी कहा था। उन्होंने निर्वाचन आयोग द्वारा चुनावी राज्य में मतदाता सूची में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह निर्देश दिया था। जमीनी स्तर पर लोकतंत्र और लैंगिक न्याय पर जोर देने वाले एक आदेश में, उन्होंने एक ऐसी पीठ का नेतृत्व किया जिसने गैरकानूनी तरीके से पद से हटाई गई एक महिला सरपंच को बहाल किया और मामले में लैंगिक पूर्वाग्रह को उजागर किया। उन्हें यह निर्देश देने का श्रेय भी दिया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन समेत बार एसोसिएशनों में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएं।
कई महत्वपूर्ण फैसले देने वाली बैंचों का हिस्सा रहे
न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 2022 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पंजाब यात्रा के दौरान सुरक्षा चूक की जांच के लिए शीर्ष अदालत की पूर्व न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा ​​की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की थी।उन्होंने रक्षा बलों के लिए ‘वन रैंक-वन पेंशन’ (ओआरओपी) योजना को भी बरकरार रखा था और इसे संवैधानिक रूप से वैध बताया तथा सशस्त्र बलों में स्थायी कमीशन में समानता का अनुरोध करने वाली महिला अधिकारियों की याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखी। एक अन्य उल्लेखनीय मामले में, उन्होंने उत्तराखंड में चार धाम परियोजना को बरकरार रखा तथा पर्यावरणीय चिंताओं को संतुलित करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इसके सामरिक महत्व पर जोर दिया। उनकी पीठ ने पॉडकास्टर रणवीर इलाहबादिया को “अपमानजनक” टिप्पणियों के लिए चेतावनी देते हुए कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन करने का लाइसेंस नहीं है।
दिव्यांगों का उपहास उड़ाने वालों को लगाई थी फटकार
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने “इंडियाज गॉट लेटेंट” के मेजबान समय रैना सहित कई स्टैंड-अप कॉमेडियन को उनके शो में दिव्यांग लोगों का उपहास करने के लिए फटकार लगाई और केंद्र को ऑनलाइन सामग्री को विनियमित करने के लिए दिशानिर्देश लाने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह की कर्नल सोफिया कुरैशी पर की गई टिप्पणी के लिए उनकी खिंचाई की। कुरैशी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर प्रेस वार्ता के लिए देशभर में प्रसिद्धि हासिल की थी।
केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ का हिस्सा रहे
पीठ ने कहा था कि एक मंत्री द्वारा बोला गया प्रत्येक शब्द जिम्मेदारी की भावना के साथ होना चाहिए। उन्होंने सीबीआई के आबकारी नीति मामले में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जमानत देने वाली पीठ का भी नेतृत्व किया था, तथा टिप्पणी की थी कि एजेंसी को ‘पिंजरे में बंद तोता’ होने की धारणा को दूर करने के लिए काम करना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नति के बाद से वह 300 से अधिक पीठों का हिस्सा रहे हैं, तथा आपराधिक, संवैधानिक और प्रशासनिक कानून के क्षेत्र में न्यायशास्त्र में योगदान दिया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत उन सात न्यायाधीशों की पीठ में भी थे, जिसने 1967 के एएमयू के फैसले को खारिज कर दिया था, जिससे उसके अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का रास्ता खुल गया था। वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने 2021 में भारत में कुछ लोगों की निगरानी के लिए इजराइली स्पाइवेयर पेगासस के कथित उपयोग की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी। chief justice of india | Justice Surya Kant | Next Chief Justice of India
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