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WAQF ACT 2025: वक्फ बिल पर छाए संदेहों के बादल, क्या सुप्रीम कोर्ट रद्द कर सकता है संसद में पारित कानून?

सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून पर फिलहाल अंतरिम रोक लगा दी है। फिलहाल यह कानून ठंडे बस्ते में चला गया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि जब तक यह मामला कोर्ट के सामने लंबित है, तब तक सरकार इस कानून के किसी भी हिस्से को लागू करने की कोशिश न करे।

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Mukesh Pandit
WAQF BILL NEWS
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नई दिल्ली, वाईबीएन नेटवर्क। WAQF ACT 2025: वक्फ बोर्ड इन दिनों काफी सुर्खियों में है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ कानून पर फिलहाल अंतरिम रोक लगा दी है। एक तरह से कह सकते हैं कि फिलहाल यह कानून ठंडे बस्ते में चला गया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि जब तक यह मामला कोर्ट के सामने लंबित है, तब तक सरकार इस कानून के किसी भी हिस्से को लागू करने की कोशिश न करे। मामले की अगली सुनवाई 5 मई 2025 को होगी, जिसके बाद नया आदेश आ सकता हैं। वक्फ को लेकर कुल 73 याचिकाएं दायर की गई थीं।

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लेकिन 5 मई को पांच ही याचिकाओं पर सर्वोच्च अदालत सुनवाई करेगी। पिछले करीब एक माह से यह मामला राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में बना हुआ है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में विरोध प्रदर्शन के दौरान जिस तरह हिंसा की घटनाएं हुईं और उसे सांप्रदायिक रंग देकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशें दोनों तरफ से की जा रही हैं, वह भी गंभीर चिंता का विषय है। उधर, यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट रद्द कर सकता है संसद में पारित कोई कानून? आइए इस खास रिपोर्ट में डालते हैं एक नजर।..supreme court on waqf board | supreme court on waqf law | supreme court on waqf act | supreme court on land rights 

Waqf case

क्या है सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश

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  1. वक्फ बाय यूजर जारी रहेगा: सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि जो संपत्तियां वक्फ को दी गई हैं, उनका डीनोटिफिकेशन नहीं होगा और न ही उनका दोबारा रजिस्ट्रेशन होगा।
  2. कलेक्टरों को अतिरिक्त काम नहीं: कलेक्टर अपना रूटीन का काम करते रहेंगे, उन्हें वक्फ कानून से संबंधित कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी।
  3. वक्फ बोर्ड और काउंसिल का पुनर्गठन रुका: वक्फ बोर्ड और वक्फ काउंसिल के पुनर्गठन पर भी अंतरिम रोक लगा दी गई है। यानी, अभी जो व्यवस्था है, जिसमें गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते, वही जारी रहेगी।

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अब किन 5 याचिकाओं पर होगी सुनवाई

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सुप्रीम कोर्ट में वक्फ मामले की सुनवाई के लिए वे पांच लीड याचिकाएं कौन सी होंगी इसका फैसला हो गया है। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में अभी तक बहुत सी याचिकाएं (73 से ज्यादा) दायर हो चुकी हैं और लगातार दायर हो रही हैं। इस कारण लगातार दायर होने वाली याचिकाओं के चलते सुनवाई में दिक्कत हो सकती है, इसलिए याचिकाकर्ताओं को मिलकर पांच याचिकाएं को चुन लेना चाहिए जो लीड याचिका मानी जाएंगी और मुख्य सुनवाई उन्हीं पर होगी। बाकी याचिकाओं को इंटरवेंशन या इमप्लीडमेंट एप्लीकेशन माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा देर रात जारी ऑर्डर में जिन पांच याचिकाओं का जिक्र किया गया है, वे इस तरह हैं।

  1. अरशद मदनी
  2.  मुहम्मद जमील मर्चेंट.
  3.  मुहम्मद फजलुररहीम
  4.  शेख नूरुल हसन
  5. असदुद्दीन ओवैसी।

waqf case Supreme court

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कैसे हुआ फैसला, अब तक अस्पष्ट

इन पांच याचिकाओं को चुनने का फैसला किस तरह हुआ है, यह अभी तक यह स्पष्ट नहीं है। लीड याचिकाएं तय हो जाने का एक अर्थ यह भी हुआ है कि पांच मई को जब मामले की अगली सुनवाई होगी तो मुख्य रूप से इन्हीं के वकील अदालत में बहस करेंगे। हालांकि बाकी याचिकाएं को इंटरवेंशन का दर्जा दिया गया है तो उनके वकील भी जरूरत पड़ने पर दखल दे सकेंगे। अभी तक इस मामले में जो सुनवाई चली है उसमें मुख्य रूप से सलमान खुर्शीद, कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, हफ्जा अहमदी ने बहस में भाग लिया था। अब इनमें से कईं मुख्य भूमिका में नहीं होंगे। जो पांच लीड याचिकाएं तय हुई हैं उनमें उपरोक्त वकीलों से राजीव धवन का नाम है जो मुहम्मद जमील मर्चेंट के वकील हैं।

1.सुप्रीम कोर्ट ने कहा, '110 से 120 फाइलें पढ़ना संभव नहीं हैं। ऐसे में सिर्फ 5 मुख्य आपत्तियों पर ही सुनवाई होगी। सभी याचिकाकर्ता मुख्य बिंदुओं पर सहमति बनाएं। नोडल काउंसिल के जरिए इन आपत्तियों को तय करें।' हालांकि बेंच ने 10 याचिकाएं लिस्ट कर लीं।

2. इसके अलावा तीन नोडल वकील नियुक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे तय करें कि कौन बहस करेगा। 5 मई अंतरिम आदेश के लिए होगी। कोर्ट ने मामले का कॉज टाइटल भी बदलकर ‘इन रि: वक्फ अमेंडमेंट एक्ट’ कर दिया।

3. CJI संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार, जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच इस मामले पर सुनवाई कर रही है। केंद्र की ओर से SG तुषार मेहता जबकि कानून के खिलाफ कपिल सिब्बल, राजीव धवन, अभिषेक मनु सिंघवी, सीयू सिंह दलीलें रख रहे हैं।

4.इन लीड याचिकाओं के अलावा अदालत ने तीन नोडल काउंसिल नियुक्त किए हैं। इनमें से एक हैं एडवोकेट एजाज अहमद जो याचिकाकर्ताओं की तरफ से नोडल काउंसिल होंगे। एडवोकेट कनु अग्रवाल सरकार की तरफ से नोडल काउंसिल होंगे। इसके अलावा एडवोकेट विष्णु शंकर जैन इंटरवेंशन करने वालों की तरफ से नोडल काउंसिल होंगे।

5. बता दें कि सुनवाई के बाद कोर्ट ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए 7 दिन का वक्त दिया है। सरकार के जवाब के बाद याचिकाकर्ताओं को 5 दिन में जवाब देना होगा। अगली सुनवाई 5 मई को दोपहर 2 बजे होगी।

6. केंद्र सरकार ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि 5 मई तक किसी भी वक्फ संपत्ति (वक्फ बाय यूजर संपत्ति, पहले से पंजीकृत या अधिसूचना के जरिये घोषित) से कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। उन्हें डी-नोटिफाई भी नहीं किया जाएगा, न ही केंद्रीय वक्फ परिषद और वक्फ बोर्डों में किसी गैर-मुस्लिम की नियुक्ति की जाएगी।

7. सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने दोनों ओर की दलीलें सुनने के बाद कहा कि बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी।

क्या रद्द हो सकते हैं संसद में पारित कानून

सवाल उठ रहे हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट रद्द कर सकता है संसद में पारित कोई कानून? तो इसका जवाब हां हैं...
सुप्रीम कोर्ट के पास न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) की शक्ति है, जिसके तहत वह संसद द्वारा पारित किसी भी कानून को रद्द कर सकता है, यदि वह संविधान के प्रावधानों, विशेष रूप से मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) या संविधान की मूल संरचना (Basic Structure Doctrine) का उल्लंघन करता हो। यह शक्ति संविधान के अनुच्छेद 13, 32, और 136 के तहत प्राप्त है। अनुच्छेद 13 स्पष्ट रूप से कहता है कि कोई भी कानून जो मौलिक अधिकारों के खिलाफ हो, वह अमान्य होगा। केसवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मूल संरचना सिद्धांत की स्थापना की, जिसके तहत संसद की संविधान संशोधन करने की शक्ति भी सीमित है।

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द किए गए कुछ प्रमुख कानून:

आईटी एक्ट, 2000 की धारा 66A (2015):
श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ

 इस धारा के तहत सोशल मीडिया पर "आपत्तिजनक" सामग्री पोस्ट करने पर सजा का प्रावधान था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया, क्योंकि यह अस्पष्ट थी और दुरुपयोग की आशंका थी।

राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम, 2014:
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (2015)
 NJAC अधिनियम के तहत न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए एक नया तंत्र प्रस्तावित था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मूल संरचना का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया। कोलेजियम प्रणाली को बरकरार रखा गया।

आधार अधिनियम की कुछ धाराएँ (2018):

जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ
 सुप्रीम कोर्ट ने आधार अधिनियम को बड़े पैमाने पर वैध ठहराया, लेकिन इसकी कुछ धाराओं, जैसे निजी कंपनियों द्वारा आधार डेटा का उपयोग और कुछ सेवाओं के लिए इसे अनिवार्य करना, को निजता के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन मानते हुए रद्द किया।

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (आंशिक रूप से, 2018):
 नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ
 इस धारा के तहत समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 14 (समानता) और अनुच्छेद 21 (निजता और गरिमा) का उल्लंघन मानते हुए आंशिक रूप से रद्द किया, जिससे समलैंगिकता को अपराधमुक्त किया गया।

भारतीय दंड संहिता की धारा 497 (2018):
 जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ
इस धारा के तहत व्यभिचार (Adultery) को अपराध माना जाता था, लेकिन केवल पुरुष को दंडित किया जाता था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे लैंगिक समानता (अनुच्छेद 14) और निजता (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया।

संविधान (99वाँ संशोधन) अधिनियम, 2014:
 इस संशोधन के जरिए NJAC की स्थापना की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खिलाफ मानते हुए रद्द किया।

प्रिवेंशन ऑफ आतंकवाद अधिनियम (POTA) की कुछ धाराएँ:
 सुप्रीम कोर्ट ने POTA की कुछ धाराओं को असंवैधानिक घोषित किया, क्योंकि वे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उचित प्रक्रिया के अधिकारों का उल्लंघन करती थीं।

याचिका दायर करना: कोई व्यक्ति या संगठन सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका (अनुच्छेद 32) या विशेष अनुमति याचिका (अनुच्छेद 136) दायर कर सकता है, जिसमें कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी जाती है।
न्यायिक समीक्षा: कोर्ट कानून की संवैधानिकता की जाँच करता है। यह देखा जाता है कि क्या कानून संविधान के प्रावधानों, मौलिक अधिकारों, या मूल संरचना का उल्लंघन करता है।
निर्णय: यदि कानून असंवैधानिक पाया जाता है, तो कोर्ट इसे पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से रद्द कर सकता है। कोर्ट अपने निर्णय में यह भी निर्देश दे सकता है कि कानून को संशोधित किया जाए।
बाध्यकारी प्रभाव: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सभी न्यायालयों और सरकारों पर बाध्यकारी होता है (अनुच्छेद 141)।

कोर्ट के सवाल

वक्फ एक्ट पर कोर्ट ने पूछा- क्या हिंदू धार्मिक ट्रस्ट में मुसलमान को शामिल होने देंगे
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने के खिलाफ दलील दी। न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, उन्होंने कहा कि पहले वक्फ परिषद और बोर्ड में केवल मुसलमान ही शामिल होते थे लेकिन संशोधन के बाद अब हिंदू भी इसका हिस्सा बन सकते हैं, यह संसदीय कानून द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का सीधा हनन है।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या वे मुसलमान को हिंदू धार्मिक ट्रस्टों का हिस्सा बनने की अनुमति देने के लिए तैयार हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि पदेन सदस्यों को बोर्ड में नियुक्त किया जा सकता है, चाहे उनका धर्म कोई भी हो लेकिन अन्य सदस्यों का मुस्लिम होना अनिवार्य है।

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वक्फ बाय यूजर को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता

‘वक्फ बाय यूजर' का मतलब ऐसी संपत्तियों से है जिनका लंबे समय से धार्मिक या धर्मार्थ कार्यों में इस्तेमाल हो रहा होता है और इस वजह से उन्हें वक्फ माना जाता है. भले ही उनके पास औपचारिक दस्तावेज ना हों. संशोधित कानून में यह छूट दी गई है कि यह प्रावधान उन संपत्तियों पर लागू नहीं होगा जो विवादित हैं या सरकारी भूमि पर हैं. याचिकाकर्ताओं ने सुनवाई के दौरान इस पर अपनी आपत्ति जताई। सुनवाई के अंत में जजों ने तीन बिंदु उठाए और उन पर एक अंतरिम आदेश जारी करने का संकेत दिया, जिसके तहत संशोधित कानून के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई जा सकती थी. हालांकि, केंद्र और राज्यों ने इन बिंदुओं पर अपनी दलीलें पेश करने के लिए और समय मांगा, जिसके बाद कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं किया.

‘वक्फ  बाय यूजर'

कोर्ट ने कहा कि ‘वक्फ  बाय  यूजर' प्रावधान को हटाने के बड़े परिणाम होंगे और केंद्र सरकार से इसे लेकर स्पष्टीकरण मांगा। कोर्ट ने कहा कि 14वीं से 16वीं शताब्दी के दौरान बनी ज्यादातर मस्जिदों के पास विक्रय पत्र यानी सेल डीड नहीं होंगे और ऐसी मस्जिदों से पंजीकृत दस्तावेज मांगना असंभव होगा। कोर्ट ने प्रस्ताव दिया कि न्यायालयों द्वारा वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा, फिर चाहे वे ‘वक्फ बाई यूजर' हों या ‘वक्फ बाई डीड'।

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आखिर होता क्या है वक्फ?

इस्लामी परंपरा में, वक्फ मुसलमानों द्वारा समुदाय के लाभ के लिए किया गया धर्मार्थ या धार्मिक दान है। ऐसी संपत्तियों को बेचा या किसी अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और ना ही उन्हें विरासत में हासिल किया जा सकता है, बल्कि वे हमेशा अल्लाह के लिए समर्पित रहती हैं। वक्फ की गई संपत्ति पर दोबारा दावा नहीं किया जा सकता। भारत में इनमें से बड़ी संख्या में संपत्तियों का इस्तेमाल मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और यतीमखानों के लिए किया जाता है, और कई अन्य संपत्तियां खाली पड़ी हैं या उन पर अतिक्रमण हो चुका है।

सरकार का दावा

सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड भारत में सबसे बड़े भूस्वामियों में से एक है। देश भर में कम से कम 8,72,351 वक्फ संपत्तियां हैं, जो 9,40,000 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैली हुई हैं, जिनका अनुमानित मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपये है। वक्फ बोर्ड भारत में सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद सबसे बड़ा भूस्वामी है. केंद्र की बीजेपी सरकार का कहना है कि वक्फ संपत्तियों और वक्फ बोर्डों में व्यापक भ्रष्टाचार है और इन्हें सुधारने के लिए वक्फ संशोधन कानून लाया गया है। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी।

दिल्ली में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की संख्या 

दिल्ली में वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की संख्या और उन पर दावे को लेकर सटीक आंकड़े समय-समय पर बदलते रहते हैं, क्योंकि यह एक जटिल और विवादास्पद मुद्दा है। वक्फ बोर्ड एक इस्लामिक संस्था है जो धार्मिक और परोपकारी उद्देश्यों के लिए दान की गई संपत्तियों का प्रबंधन करती है। भारत में वक्फ बोर्ड के पास रेलवे और सेना के बाद सबसे अधिक संपत्ति होने का दावा किया जाता है, और दिल्ली जैसे महानगर में इसकी मौजूदगी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। हालांकि, सरकारी और गैर-सरकारी स्रोतों से उपलब्ध जानकारी में अंतर होता है, और वक्फ की संपत्तियों पर दावे को लेकर कई कानूनी विवाद भी चल रहे हैं।

वक्फ बोर्ड के पास 8.7 लाख से अधिक अचल संपत्तियां 

वक्फ ऐसेट्स मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया (WAMSI) और विभिन्न सरकारी रिपोर्टों के अनुसार, देश भर में वक्फ बोर्ड के पास 8.7 लाख से अधिक अचल संपत्तियां हैं, जो लगभग 9.4 लाख एकड़ जमीन पर फैली हुई हैं। दिल्ली में वक्फ की संपत्तियों की संख्या को लेकर कोई एकीकृत आधिकारिक आंकड़ा सार्वजनिक रूप से आसानी से उपलब्ध नहीं है, लेकिन कुछ अनुमानों और संसदीय चर्चाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि दिल्ली में सैकड़ों संपत्तियां वक्फ के अधीन हैं। उदाहरण के लिए, 2024 की एक संसदीय रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि दिल्ली में 200-240 सरकारी संपत्तियों को वक्फ घोषित किया गया था, जो एक विवाद का विषय बना हुआ है। इसके अलावा, दिल्ली वक्फ बोर्ड ने कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों, जैसे मस्जिदों, कब्रिस्तानों और दरगागों पर अपना दावा पेश किया है।

पुरानी दिल्ली में सर्वाधिक वक्फ संपत्तियां

दिल्ली का कुल क्षेत्रफल लगभग 1,484 वर्ग किलोमीटर (3.66 लाख एकड़) है। इस संदर्भ में, वक्फ की संपत्तियों का एक बड़ा हिस्सा पुरानी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली जैसे इलाकों में केंद्रित है, जहां मुस्लिम आबादी ऐतिहासिक रूप से अधिक रही है। इनमें से कई संपत्तियां मस्जिदों, मदरसों और कब्रिस्तानों के रूप में उपयोग की जाती हैं। एक चर्चित उदाहरण है दिल्ली में 123 संपत्तियों का मामला, जिसे 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंप दिया था। इनमें कई मूल्यवान सरकारी और निजी संपत्तियां शामिल थीं, जिन पर बाद में कानूनी विवाद शुरू हो गया। यह निर्णय वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 40 के तहत लिया गया था, जो वक्फ बोर्ड को किसी संपत्ति पर दावा करने की व्यापक शक्ति देता है।

दान के माध्यम से प्राप्त हुई हैं संपत्तियां

वक्फ बोर्ड का दावा है कि उसकी संपत्तियां दान के माध्यम से प्राप्त हुई हैं, जो इस्लामिक कानून के अनुसार "अल्लाह के नाम" समर्पित की जाती हैं। दिल्ली में इनमें से कई संपत्तियों पर दावा ऐतिहासिक दस्तावेजों, लंबे समय तक उपयोग, या सर्वेक्षण के आधार पर किया जाता है। हालांकि, इन दावों को लेकर विवाद भी कम नहीं हैं। विशेष रूप से सरकारी संपत्तियों पर वक्फ के दावे को लेकर सवाल उठते रहे हैं, क्योंकि कानूनन सरकारी जमीन को दान नहीं किया जा सकता। वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024, जो हाल ही में संसद में चर्चा में रहा, इस मुद्दे को संबोधित करने का प्रयास करता है। इस विधेयक के तहत वक्फ के दावों का सत्यापन अनिवार्य किया गया है, ताकि अवैध अतिक्रमण और विवादों को रोका जा सके।

वक्फ बोर्ड का 300 से 500 संपत्तियों पर दावा

दिल्ली में वक्फ की संपत्तियों की संख्या को लेकर एक और जटिलता यह है कि कई संपत्तियां मुकदमेबाजी में फंसी हुई हैं। कुछ अनुमानों के अनुसार, दिल्ली में वक्फ बोर्ड 300 से 500 संपत्तियों पर दावा करता है, जिनमें से कई पर निजी मालिकों या सरकार के साथ विवाद चल रहा है। उदाहरण के लिए, कुछ कब्रिस्तान और मस्जिदों के आसपास की जमीन को वक्फ ने अपनी संपत्ति घोषित किया, लेकिन स्थानीय प्रशासन और निजी दावेदारों ने इसे चुनौती दी। इसके अलावा, दिल्ली जैसे शहर में जहां जमीन की कीमत बेहद अधिक है, वक्फ की संपत्तियों का आर्थिक मूल्य भी अरबों रुपये में आंका जाता है, जिससे यह मुद्दा और संवेदनशील हो जाता है।

वक्फ बोर्ड को सबसे अधिक जमीन किसने की दान 

हैदराबाद के निजाम (मीर उस्मान अली खान)
मुगल शासक (अकबर, शाहजहां, औरंगजेब)
जहानारा बेगम
सूफी संतों के अनुयायी (हजरत निजामुद्दीन औलिया, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती)
अमीर मुस्लिम व्यापारी और जमींदार (सर सैयद मुहम्मद, अहमदाबाद के वकील परिवार)
इन्होंने भी किया दान
जहानारा बेगम जैसी महिलाओं ने भी बड़ा योगदान दिया. सूफी संतों के अनुयायियों, जैसे हजरत निजामुद्दीन औलिया (दिल्ली) और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (अजमेर) ने उनकी दरगाहों के लिए संपत्तियां दान की. अमीर मुस्लिम व्यापारियों और जमींदारों जैसे सर सैयद मुहम्मद और अहमदाबाद के वकील परिवार ने भी वक्फ को दान दिया. पूर्व उपराष्ट्रपति अब्दुल हामिद अंसारी और विप्रो के मालिक अजीम प्रेमजी ने शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए वक्फ संपत्तियां दीं।

 

 

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