/young-bharat-news/media/media_files/2025/06/14/jpHivNF4giasaqCt7Q7X.jpg)
Ahmedabad Plane Crash: गुजरात के अहमदाबाद में जो भयानक दर्दनाक हादसा हुआ। उसने पूरे देश को झकझोर दिया है। एयर इंडिया 171 (बोइंग 787 ड्रीमलाइनर) विमान हादसे पर विमानन विशेषज्ञ अब ‘विंग फ्लैप’ की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। शुरुआती जांच और सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में कुछ जानकारों का कहना है कि हादसे के वक्त फ्लैप शायद पूरी तरह से खुले नहीं थे या सही से काम नहीं कर रहे थे। यही वजह है कि टेकआफ के कुछ ही समय बाद विमान दुर्घटना का शिकार होकर आग के गोले में बदल गया। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि विंग फ्लैप क्या होते हैं, क्यों इतने जरूरी हैं और इनकी गड़बड़ी से कैसे बड़ा हादसा हो सकता है।
विंग फ्लैप का कार्य
विंग फ्लैप (Wing Flaps) विमान के पंखों पर लगे यांत्रिक उपकरण हैं, जो उड़ान के दौरान विमान की गति, लिफ्ट (उठान) और नियंत्रण को प्रभावित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये पंखों के पिछले हिस्से (ट्रेलिंग एज) पर स्थित होते हैं और उड़ान के विभिन्न चरणों, विशेष रूप से टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान, विमान की वायुगतिकीय विशेषताओं को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। विंग फ्लैप विमान की उड़ान को सुरक्षित और कुशल बनाने में मदद करते हैं। विंग फ्लैप का मुख्य उद्देश्य विमान के पंखों की सतह के आकार और वक्रता (कैंबर) को बदलना है।
क्यों हैं इतने जरूरी ?
फ्लैप की खासियत ये है कि जब विमान धीमी रफ्तार से उड़ रहा होता है या उतरने वाला होता है, तब ये बाहर की ओर निकलते हैं। इससे पंखों का आकार बड़ा और घुमावदार हो जाता है, जिससे लिफ्ट बढ़ती है। ये लिफ्ट विमान को हवा में टिकाए रखती है, जिससे सुरक्षित टेक-ऑफ और लैंडिंग संभव हो पाती है।
फ्लैप का काम कैसे होता है उड़ान के समय?
टेक-ऑफ से पहले फ्लैप को एक तय पोजिशन तक सेट किया जाता है। यह काम टैक्सीवे या रनवे पर आने से पहले होता है और ये पूरी प्रक्रिया बिफोर टेक-ऑफ चेकलिस्ट का हिस्सा होती है। फ्लैप के बिना विमान को उड़ाने के लिए ज्यादा स्पीड और लंबी रनवे की जरूरत होती है जो जोखिम से भरा होता है।
लिफ्ट में वृद्धि : फ्लैप नीचे की ओर झुकने पर पंख की वक्रता बढ़ जाती है, जिससे कम गति पर भी अधिक लिफ्ट उत्पन्न होती है। यह टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान विशेष रूप से उपयोगी होता है, जब विमान को कम दूरी में उड़ान भरने या उतरने की आवश्यकता होती है।
ड्रैग में वृद्धि: फ्लैप के उपयोग से वायु प्रतिरोध (ड्रैग) बढ़ता है, जिससे विमान की गति कम होती है। यह लैंडिंग के दौरान विमान को धीमा करने में मदद करता है।
नियंत्रण में सुधार: फ्लैप विमान की स्थिरता और नियंत्रण को बेहतर बनाते हैं, खासकर कम गति पर।
विंग फ्लैप के प्रकार
कई प्रकार के होते हैं विंग फ्लैप
- प्लेन फ्लैप: ये सबसे साधारण फ्लैप होते हैं, जो पंख के पिछले हिस्से को नीचे की ओर झुकाते हैं।
- स्लॉटेड फ्लैप: इनमें फ्लैप और पंख के बीच एक छोटा सा गैप होता है, जो हवा को सुचारु रूप से प्रवाहित करता है, जिससे लिफ्ट बढ़ती है और ड्रैग कम होता है।
- फाउलर फ्लैप: ये फ्लैप पंख की सतह को बढ़ाते हैं और साथ ही वक्रता को भी बदलते हैं, जिससे अधिक लिफ्ट मिलती है।
- स्प्लिट फ्लैप: ये फ्लैप पंख के निचले हिस्से को नीचे की ओर मोड़ते हैं, जिससे ड्रैग अधिक बढ़ता है।
उपयोग और महत्व
विंग फ्लैप का उपयोग मुख्य रूप से टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान किया जाता है। टेकऑफ के समय, फ्लैप को आंशिक रूप से नीचे किया जाता है ताकि पर्याप्त लिफ्ट मिले और विमान कम दूरी में उड़ान भर सके। लैंडिंग के दौरान, फ्लैप को पूरी तरह या अधिक झुकाया जाता है ताकि विमान धीमा हो और सुरक्षित रूप से रनवे पर उतर सके। इसके अलावा, फ्लैप का उपयोग विशेष परिस्थितियों में, जैसे खराब मौसम या छोटे रनवे पर, विमान को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है। विंग फ्लैप विमान की डिजाइन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो उड़ान की सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाते हैं। ये पायलट को विभिन्न उड़ान स्थितियों में विमान को बेहतर ढंग से नियंत्रित करने में मदद करते हैं। आधुनिक विमानों में, फ्लैप स्वचालित सिस्टम और कंप्यूटर के माध्यम से नियंत्रित किए जाते हैं, जो उनकी प्रभावशीलता को और बढ़ाते हैं।
अब बात करते हैं टेक-ऑफ के वक्त की तीन अहम स्पीड की जिसमें,
V1 (Take-off Decision Speed) – इस पॉइंट तक पायलट तय करता है कि टेक-ऑफ रोकनी है या जारी रखनी है. इसके बाद रुकना मुश्किल हो जाता है।
Vr (Rotation Speed)– इस पॉइंट पर विमान की नाक ऊपर उठाई जाती है और विमान हवा में उठने लगता है।
V2 (Take-off Safety Speed)–ये वो न्यूनतम स्पीड होती है जिस पर विमान एक इंजन फेल होने के बाद भी सुरक्षित उड़ सकता है।
अहमदाबाद हादसे के वीडियो में देखा गया कि एयर इंडिया 171 ने V1 और Vr को पार कर लिया था लेकिन चढ़ाई के वक्त यानी क्लाइंब फेज में कुछ गड़बड़ी आई।
बोइंग 787 ड्रीमलाइनर में फ्लैप कैसे काम करते हैं?
बोइंग 787 ड्रीमलाइनर की तो इसमें डबल-स्लॉटेड फ्लैप्स लगे होते हैं जो दो हिस्सों में खुलते हैं। इनसे विमान को धीमी गति पर भी उड़ने और उतरने में मदद मिलती है। फ्लैप को हाइड्रॉलिक पावर और कंप्यूटर कंट्रोल सिस्टम से चलाया जाता है। पंखों के अंदर और बाहर दोनों हिस्सों में इनके अलग-अलग सेट होते हैं।
अगर फ्लैप्स फेल हो जाएं तो क्या होता है?
अगर फ्लैप्स फेल हो जाएं तो हालात काफी नाजुक हो सकते हैं । टेक-ऑफ के वक्त अगर फ्लैप नहीं खुलते तो विमान को तेज रफ्तार और ज्यादा लंबी रनवे की जरूरत होती है। हालांकि आधुनिक विमानों में ‘टेक-ऑफ कॉन्फिगरेशन वॉर्निंग सिस्टम’ होता है जो फ्लैप्स ना खुलने पर जोरदार अलार्म बजाता है। लैंडिंग के समय अगर फ्लैप फेल हो जाएं तो विमान तेज रफ्तार से जमीन पर टकराता है और उसे रोकने के लिए सामान्य से 60 फीसदी ज्यादा दूरी लग सकती है. पायलटों को इसके लिए खास ट्रेनिंग दी जाती है जिसे ‘फ्लैपलेस लैंडिंग’ कहा जाता है।
फ्लैप्स खराब होने पर हादसे का खतरा इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि बिना फ्लैप के टेक-ऑफ में जरूरत से ज्यादा रफ्तार और देर हो जाती है जिससे इंजन और रनवे पर लोड बढ़ जाता है. वहीं लैंडिंग के वक्त रनवे खत्म हो सकता है जिससे विमान रनवे से बाहर जा सकता है या जमीन से टकरा सकता है. अगर फ्लैप्स एक तरफ खुले और दूसरी तरफ ना खुले तो विमान एक ओर झुक सकता है जिससे कंट्रोल खोने का खतरा होता है।
/young-bharat-news/media/media_files/2025/06/12/NdzcMpLCgxg4VCGTpuOZ.jpg)
बोइंग 787 में सुरक्षा के क्या इंतजाम?
बोइंग 787 में इन खतरों से निपटने के लिए कई सुरक्षा उपाय होते हैं. इनमें,
फ्लैप असिमेट्री प्रोटेक्शन– अगर एक पंख का फ्लैप खुले और दूसरा ना खुले तो सिस्टम खुद सभी फ्लैप को फ्रीज कर देता है.
हाइड्रॉलिक बैकअप सिस्टम – फ्लैप को चलाने के लिए कई हाइड्रॉलिक लाइनें होती हैं. एक फेल हो जाए तो दूसरी काम करती है.
आपातकालीन उपाय – फ्लैप फेल होने पर भी बोइंग 787 के पावरफुल इंजन विमान को ऊपर चढ़ा सकते हैं. स्पीड को कंट्रोल करने के लिए स्पीडब्रेक, स्पॉयलर्स और ऑटो-ब्रेक लगे होते हैं. फ्लैपरोन्स नाम का सिस्टम आंशिक रूप से फ्लैप की कमी को पूरा करता है.
अब बात करें पायलट की भूमिका की तो ऐसे वक्त में पायलट क्या करते हैं.
फ्लैपलेस लैंडिंग – तेज रफ्तार पर लैंडिंग की जाती है. रनवे की लंबाई और मौसम का खास ख्याल रखा जाता है.
पार्शियल फ्लेयर – उतरते वक्त विमान की नाक थोड़ी ऊपर कर दी जाती है ताकि झटका कम लगे.
गो-अराउंड – अगर पायलट को लगता है कि लैंडिंग खतरनाक हो सकती है तो वो दोबारा चक्कर लगाकर सुरक्षित पोजिशन में लैंड करता है.
बोइंग 787 जैसी आधुनिक विमानन तकनीकों में फ्लैप फेल होने की स्थिति से निपटने के पूरे इंतजाम होते हैं लेकिन फिर भी अगर फ्लैप सही से काम ना करें तो खतरा बना रहता है. हादसे की असल वजह क्या थी, इसका जवाब जांच एजेंसियों की रिपोर्ट से ही साफ होगा।
ahmedabad mein plane crash | ahmedabad gujarat plane crash | Air India Plane Crash | air india plane prash